चाणक्य नीति: बुद्धि सदैव भाग्य का अनुसरण करती है | The Voice TV

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तुम खुद अपने भाग्य के निर्माता हो - स्वामी विवेकानंद

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चाणक्य नीति: बुद्धि सदैव भाग्य का अनुसरण करती है

Date : 19-Mar-2025

तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायोऽपि तादृशः ।

सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ॥

 

आचार्य चाणक्य यहां भाग्य को महत्त्व देते हुए बुद्धि के भाग्य के अनुगामी होने को प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि मनुष्य जैसा भाग्य लेकर आता है उसकी बुद्धि भी उसी के समान बन जाती है, कार्य-व्यापार भी उसी के अनुरूप मिलता है। उसके सहयोगी, संगी-साथी भी उसके भाग्य के अनुरूप ही होते हैं। सारा क्रियाकलाप भाग्यानुसार ही संचालित होता है।

 

कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य की होनी प्रबल है। जो होना है वह होकर रहेगा | इसलिए कई बार मनुष्य द्वारा सोची हुई बातें, उसकी कुशलता और उसके प्रयास सब बेकार हो जाते हैं। शास्त्रों में यह लिखा भी है कि विपत्ति के आने पर मनुष्य की निर्मल बुद्धि भी मलीन हो जाती है यानी विनाश काले विपरीत बुद्धि हो जाती है। इतिहास में भी ऐसे अनेक उदाहरण मिलेंगे कि अनेक महापुरुषों ने भावी के इस चक्र में पड़कर भयंकर भूलें कीं | उदाहरण के लिए श्रीराम को ही देखें, मर्यादा पुरुषोत्तम होकर भी वे मायावी स्वर्ण मृग के पीछे भाग पड़े और सीताहरण की महान् घटना घटी। इससे सब अच्छी तरह परिचित हैं। किन्तु इसका यह अभिप्राय भी नहीं कि मनुष्य होनहार के भरोसे अपने उद्यम का परित्याग कर दे| उसे कर्मफल की इच्छा न रखकर कर्म करते रहना चाहिए। कर्म भाग्य को भी बदलने की क्षमता रखता है।

 

 

 

 

 

 
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