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कैसे हुई थी रंग मंच की शुरुआत

Date : 27-Mar-2023

विश्व रंगमंच दिवस को अंग्रेजी में 'World Theater Day' कहते है। प्रत्येक वर्ष 27 मार्च को रंगमंच को महत्व देते हुए पुरे विश्व में 'विश्व रंगमंच दिवस' मनाया जाता है। विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना वर्ष 1961 में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट  द्वारा की गई थी। रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा भी इस दिन को रंगमंच दिवस के रूप में आयोजित कर मनाया किया जाता है।

विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना

विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना 1961 में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट  द्वारा की गई थी। 1962 में पहला अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश फ्रांस की जीन काक्टे ने दिया था। वर्ष 2002 में यह संदेश भारत के प्रसिद्ध रंगकर्मी गिरीश कर्नाड द्वारा दिया गया था। आख्या के अनुसार पहला नाटक एथेंस में एक्रोप्लिस में स्थित थिएटर ऑफ़ डायोनिसस में आयोजित हुआ था। यह प्ले पांचवीं शताब्दी के शुरुआती दौर में किया गया था। इसके बाद, थिएटर इतना मशहूर हुआ कि पूरे ग्रीस में थिएटर बहुत तेज़ी से प्रसिद्ध होने लगा। प्रत्येक वर्ष विश्व थिएटर दिवस के संदेश को जनता के बीच प्रसारित करने के लिए इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट द्वारा सभी देशों के साथ रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं के साथ यह दिवस मनाया जाता हैं।

विश्व थिएटर दिवस की शुरुवात

इंग्लैंड का इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जा रहा था। ये वह दौर था जब रानी एलिज़ाबेथ 'प्रथम' इंग्लैंड के राजपद पर विराजमान थीं। कई वर्षों की राजकीय उथल-पुथल के बाद देश अब चैन की सांसे ले रहा था। सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक... हर एक मोर्चे पर इंग्लैंड अपने कदम मजबूत कर रहा था। ऐसे में साहित्य और कला क्षेत्र में भी उत्साह का वातावरण उमड़ने लगा। किताबें लिखी जाने लगी, कविताएं रची जाने लगी, रंगमंच पर नए-नए आविष्कार होने लगे... इंग्लैंड के सांस्कृतिक विश्व का सूरज कंचन सुनहरी धूप बिखेरने लगा। 

उन्हीं दिनों साहित्य के क्षेत्र में एक चमचमाता सितारा बड़ी तेजी से लोकप्रियता के बुलंदी की ओर अग्रसर था। उस का नाम था 'विलियम शेक्सपीयर'। सन् 1599 में विलियम शेक्सपीयर ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर लंदन में एक थिएटर की स्थापना की। उस थिएटर का नाम रखा गया 'ग्लोब थिएटर'। 

उस समय नाट्य व्यवसाय फल-फूल ज़रूर रहा था पर फिर भी उसे सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं मिली थी। व्यावसायिक ओहदे की सीढ़ी पर नाटक, रंगमंच का काफी निचला स्थान था। इसी कारणवश 'ग्लोब' को लंदन शहर के बीचों-बीच नहीं बल्कि शहर के बाहर बनवाया गया। ग्लोब अर्धवृत्ताकार में बना एक ओपन एयर थिएटर था। इसके ओपन एयर संरचना के दो बड़े फायदे थे। एक फायदा ये था कि बंद थिएटरों के मुकाबले ग्लोब की प्रेक्षक क्षमता कई गुना ज्यादा थी। 

 करीबन ढ़ाई से तीन हजार लोग एक साथ नाटक देख पाएं इतना बड़ा था ग्लोब थिएटर। दूसरा फायदा ये कि यहां आसानी से मिलने वाली प्राकृतिक रोशनी के कारण मोमबत्तियां, चिरागदान, मशालें इन सब की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। प्रकाश योजना पर कोई खर्चा नहीं करना पड़ता था। खर्चा कम तो टिकटों के दाम भी कम। इस वज़ह से आम से आम आदमी भी अब आसानी से टिकट खरीद कर नाटक देखने का आनंद लेने लगा। नाट्य व्यवसाय और ख़ास कर के शेक्सपीयर के नाटकों को समाज जीवन के सभी स्तरों तक पहुंचाने में ग्लोब की उन कम कीमत वाली 'वन पैनी' टिकटों का सबल योगदान रहा।  

तब निर्मातागण नाटक में वेशभूषा, सेट्स पर ज्यादा पूंजी नहीं लगाते थे। ऊंचे कपड़े और कीमती सेट्स का ज्यादा महत्व नहीं था। सारा दारोमदार हुआ करता था भारी भरकम डायलॉग्स पर। कलाकारों की बुलंद आवाज़ें नाट्यशाला में गूंजती तो दर्शकों में ज़ोश की लहर-सी दौड़ जाती थी। तालियों की गड़गड़ाहट आसमान चीरती थी। प्रेक्षकों को नाटक 'देखने' से अधिक रूचि नाटक 'सुनने’ में हुआ करती थी। संवाद जबरदस्त तो नाटक हिट। 

रंगमंच के ठीक आगे की जगह उपरोक्त 'वन पैनी' टिकट धारकों के लिए निर्धारित थी जिसे 'पीट' कहते थे। पीट में बैठने के लिए आसन नहीं होते थे। बस खड़े होने भर के लिए जगह होती थी वहां। या तो खड़े रहिए या तो जमीन पर अपना आसन जमाइए। नाट्यगृह के प्रवेश द्वार पर एक बक्सा 'बॉक्स' रखा जाता था जिसमें एक पैसा (पैनी) डाल कर नाट्यगृह के अंदर प्रवेश मिलता था। इस 'बॉक्स' में जमा हुई राशि उस दिन के खेल का नफ़ा या नुकसान निर्धारित करती थी। 'बॉक्स ऑफ़िस' और 'बॉक्स ऑफ़िस कलेक्शन' की संकल्पना उन दिनों से आज तक चली आ रही है। 

ग्लोब की एक बड़ी मज़ेदार खासियत थी। जब रंगमंच पर शो चल रहा हो तब भरे शो में प्रेक्षकों को कलाकारों के साथ बातें करने की, उन्हें अपनी प्रतिक्रिया देने की पूरी छूट थी। दर्शकों के खास डिमांड पर कभी संवाद रिपीट किए जाते तो कई बार बदले भी जाते थे। प्रशंसा की तालियां जी भर बजाई जाती तो आलोचना की फटकार भी जमकर रसीद की जाती थी। पीट के इर्दगिर्द तीन सतह पर प्रेक्षक दीर्घाएं बनी थी। इन दीर्घाओं में बैठने की व्यवस्था होती थी और सिर के ऊपर छत होती थी। जाहिर हैं कि इन टिकटों की कीमत भी अधिक हुआ करती थी।

सन् 1613, जून के महीने का एक दिन था। ग्लोब के रंगमंच पर हमेशा की तरह नाटक का खेल हो रहा था। स्टेज पर किसी समारोह का सीन था। इस सीन में बतौर स्पेशल इफेक्ट मंच पर तोप की सलामी हुई। दुर्भाग्यवश तोप की चिंगारी सीधे ग्लोब के छत पर जा गिरी। लकड़ी से बना ग्लोब थिएटर धधक उठा। केवल दो ही घंटे के भीतर पूरा थिएटर जल कर राख़ हो गया। इस घटना के बाद मात्र दो सालों में ही ग्लोब दोबारा बनाया गया।

1642 में फिर एक बार देश में राजकीय अस्थिरता का माहौल बन गया। राजसत्ता की खिलाफ जनता ने विद्रोह कर दिया। नई सरकार बनी। नए सरकार ने समूचे नाट्य जगत पर प्रतिबंध लगा दिया। अब इंग्लैड में नाटक बनाना और देखना क़ानूनन जुर्म बन गया। देश के सारे थिएटरों की तरह ग्लोब भी बंद हुआ। उसकी इमारत भी नष्ट हुई। कुछ वर्षों के बाद राजसत्ता फिर प्रस्थापित हुई और नाटकों की पाबंदी भी हट गई पर ग्लोब मलबे के ढ़ेर तले दबा का दबा रह गया। 

अगले साढ़े तीन सौ सालों में ग्लोब थिएटर का नाम इंग्लैंड की धरती से और जनता के दिलों-दिमाग से पूरी तरह से मिट गया। जूलियस सीज़र, हैमलेट, ऑथेलो, मैकबेथ, किंग लेयर जैसी कहानियां जिस रंगमंच के लिए लिखी गई, जहां सर्वप्रथम प्रदर्शित की गई वह रंगमच, वह वस्तु किसी को याद तक नहीं रही।

तीन सदियां बीतीं, समयचक्र फिर घूमा। एक अमरिकन लेखक और दिग्दर्शक सैम वनमाकर ने पहल की और ग्लोब थिएटर के पुनर्निर्माण का बीड़ा उठाया। 1999 में पुनर्निर्माण का काम संपन्न हुआ। मूल ग्लोब का रंग रूप लेकर ही इस नए ग्लोब का निर्माण किया गया। 'यू टू ब्रूटस...', 'टू बी ऑर नॉट टू बी' जैसे अजरामर संवादों का जहां सर्वप्रथम उच्चारण हुआ वह ग्लोब थिएटर विनाश की खक से फीनिक्स की तरह उभरा। दुनिया भर के नाट्यकर्मियों के लिए अब वह मानों एक तीर्थस्थल बन गया हैं। साहित्य के भीष्म पितामह विलियम शेक्सपीयर का ग्लोब थिएटर अपने गौरवपूर्ण विरासत को माथे पर सजाएं लंदन में आज बड़े शान से खड़ा हैं।

विश्व रंगमंच दिवस का महत्व -

रंगमंच दिवस विश्व के सभी तरह के कलाकारों के लिए काफी महत्व रखती है। रंगमंच दिवस के रूप में कलाकारों को सम्मान देने और उनके कला प्रदर्शन का प्रोत्साहन करने के लिए, विश्व रंगमंच दिवस की शुरुआत की गयी। दुनिया भर में विश्व रंगमंच दिवस (वर्ल्ड थिएटर डे) 27 मार्च को मनाया जाता है, जैसा कि यह दिन विश्व की नामी हस्तियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विश्व रंगमंच दिवस के रूप में संदेश का प्रसार करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष विश्व थिएटर दिवस के संदेश को जनता के बीच प्रसारित करने के लिए इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट, 90 से अधिक देशों में अपने समस्त संस्थानों के साथ रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा इस दिन को विशेष दिवस के रूप में आयोजित करता है।
विश्व रंगमंच दिवस का लक्ष्य -

यू तो रंगमंच दिवस के बहुत सारे लक्ष्य है जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है :-

·         इस दिवस पर दुनिया भर में सभी रूपों में रंगमंच को बढ़ावा देना इसका पहला लक्ष्य रहता है।

·         लोगों को रंगमंच के सभी रूपों के महत्त्व के बारे में बताना।

·         थिएटर समुदायों के काम को बड़े स्तर पर बढ़ावा देना ताकि सरकारें और वैचारिक नेता रंगमंच के सभी रूपों में नृत्य के महत्व को जाने और साथ में सहयोग भी करें।

·         विश्व रंगमंच दिवस का सबसे खास लक्ष्य ये रहता है कि कलाकारों को उनकी भावनाओं तथा संदेशों को व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने के लिए एक मंच प्रदान किया जाता है।

उपसंहार -

प्रत्येक वर्ष 27 मार्च को रंगमंच को महत्व देते हुए पुरे विश्व में 'विश्व रंगमंच दिवस' मनाया जाता है। विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना वर्ष 1961 में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट द्वारा की गई थी। रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा भी इस दिन को रंगमंच दिवस के रूप में आयोजित कर मनाया किया जाता है। रंगमंच दिवस विश्व के सभी तरह के कलाकारों के लिए काफी महत्व रखती है। रंगमंच दिवस के रूप में कलाकारों को सम्मान देने और उनके कला प्रदर्शन का प्रोत्साहन करने के लिए, विश्व रंगमंच दिवस की शुरुआत की गयी। विश्व रंगमंच दिवस का लक्ष्य, कलाकारों को उनकी भावनाओं तथा संदेशों को व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने का कार्य करती है।

 

 
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