डॉ. रमेश ठाकुर
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटें ही तय कर देंगी कि प्रदेश में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सत्ता में वापसी होगी या विपक्षी गठबंधन सत्ता की सवारी करेगा।अधिकांश धुरंधर नेताओं की किस्मत का फैसला इस चरण में ही होने वाला है। बिहार विधानसभा के मौजूदा चुनाव में भी जतीय टकराव की अंतर्ध्वनि साफ तौर पर सुनी जा सकती है। पहले चरण की 121 सीटों में 26 सीटें ऐसी जहां सवर्ण उम्मीदवारों और पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों में सीधा मुकाबला है। 33 सीटों पर जदयू और राजद उम्मीदवारों में सीधी टक्कर है। वहीं, 23 सीटों पर भाजपा और राजद में आमने-सामने की भिड़ंत है। इनमें बिहार के उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और मंगल पांडे, नितिन नवीन, कृष्ण कुमार मंटू, रामकृपाल यादव की चुनावी किस्मत दांव पर है।
भाजपा के 13 सवर्ण उम्मीदवारों का मुकाबला राजद के कद्दावर नेताओं से होगा, जिनमें ज्यादातर सवर्ण उम्मीदवार हैं। मंगल पांडे का सामना पूर्व स्पीकर अवध बिहारी चौधरी से है। उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को राजद उम्मीदवार अरुण कुमार टक्कर दे रहे हैं। सबसे चर्चित मुकाबला महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव का माना जा रहा है। उन्हें भी उन्हीं की जाति के उम्मीदवार यानी भाजपा के सतीश कुमार टक्कर दे रहे हैं। कुल मिलाकर पहला चरण बिहार में नई सरकार बनाने का रास्ता बहुत हद तक साफ कर देगा।
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि 21वीं सदी में भी हम जातियों में ऐसे जकड़े हैं, जिनके लिए विकास-रोजगार की बात भी बेमानी है। मौजूदा चुनाव में सभी दलों ने हमेशा की तरह जाति-समुदाय को ध्यान में रख कर ही टिकटों का वितरण किया है। सामाजिक समरसता, विकासन्मुख चेहरा आदि बातें सिर्फ कागजी साबित हुईं। ऊपर से कोई दल ऐसा नहीं जिसने इस बार भी बाहुबलियों को टिकट न दिया हो। सभी दल दबंगों का साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं। यही कारण है कि चुनाव में हिंसक घटनाएं भी हो रही हैं। मोकामा में हुई हत्या ने चुनाव के रक्तरंजित होने के अंदेशे को बल दे दिया है। बाहुबली अनंत सिंह इस मामले में जेल में हैं और चुनाव उम्मीदवार भी हैं।
बहरहाल, पहले चरण में भिड़ंत सवर्ण और पिछड़े उम्मीदवारों के बीच होगी। करीब 18 विधानसभा सीटों पर चुनावी लड़ाई सीधे-सीधे सवर्ण बनाम सवर्ण है। 18 सीटों पर एनडीए-महागठबंधन दोनों ने सवर्ण उम्मीदवार मैदान में उतरे हुए हैं। 8 सीटों पर भूमिहार, 4 सीटों पर ब्राह्मण आमने-सामने हैं। दरभंगा की अलीनगर से भाजपा उम्मीदवार लोक गायिका मैथिली ठाकुर को राजद के विनोद मिश्रा टक्कर दे रहे हैं। वहीं, बेनीपुर सीट पर जदयू-कांग्रेस के दोनों उम्मीदवार ब्राह्मण हैं।
जातियों की बहती हवा में सियासी दलों ने जातियों का समीकरण अच्छे से बिठाया है।उम्मीदवारों की जातीय पृष्ठभूमि पर गौर करें तो यादव को यादव से, ब्राह्मण को ब्राह्मण से, राजपूत को राजपूत से, भूमिहार को भूमिहार से, दलित को दलित से लड़ाया जा रहा है। इसलिए बिहार का मौजूदा चुनाव मतदाताओं की समझ पर निर्भर है। मतदाता चाहें तो चुनाव का परिदृश्य बदल सकते हैं।राजनीतिक दलों को जातीय गणित और बाहुबल के समीकरण की बजाय शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा, विकास जैसे आम जनता के जरूरी मुद्दों पर वापस लौटने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
