पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने आज नई दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हरित वित्त (Green Finance) लचीली और प्रतिस्पर्धी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ बन चुका है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उद्योगों को अपने मुनाफे से परे जाकर पर्यावरणीय लागतों को भी समझना और स्वीकार करना चाहिए।
श्री यादव ने बताया कि सरकार ने हरित निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें शामिल हैं:
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सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी करना
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हरित निवेश उपकरणों में पारदर्शिता सुनिश्चित करना
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मिश्रित वित्त मॉडल के ज़रिए निजी निवेश को आकर्षित करना
उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत को 2070 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 10 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के निवेश की आवश्यकता होगी। इस दिशा में हरित वित्त की भूमिका निर्णायक होगी।
मंत्री ने यह भी रेखांकित किया कि विकसित देशों की वैश्विक दक्षिण का समर्थन करने की नैतिक ज़िम्मेदारी है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2035 तक निर्धारित 300 बिलियन डॉलर के जलवायु वित्त लक्ष्य को अपर्याप्त बताते हुए कहा कि यह वास्तविक चुनौती के पैमाने को नहीं दर्शाता।
भविष्य के विकास के बारे में बोलते हुए, भूपेंद्र यादव ने कहा कि भारत को 21वीं सदी में विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना होगा। उन्होंने कहा:
“हमें अपने विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और पारिस्थितिक क्षरण से ग्रह की रक्षा भी करनी है। यह हमारी दोहरी ज़िम्मेदारी है।”
यह भाषण हरित अर्थव्यवस्था और जलवायु लक्ष्यों को लेकर भारत की वैश्विक प्रतिबद्धता को फिर से रेखांकित करता है।