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हिमालयन इकोज साहित्य और कला महोत्सव में गूंजे शब्द, सुर और संस्कृति के स्वर

Date : 02-Nov-2025

 नैनीताल, 2 नवंबर । सरोवर नगरी नैनीताल के प्रसाद भवन में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद और उत्तराखंड पर्यटन के सहयोग से आयोजित हिमालयन इकोज साहित्य और कला महोत्सव का दसवां संस्करण पारंपरिक शंखनाद के साथ प्रारंभ हुआ। सम्मेलन में देश-विदेश के 70 से अधिक साहित्यकार, कलाकार और चिंतक प्रतिभाग कर रहे हैं।

 
इस अवसर पर नेपाल से आये साहित्यकार सुजीव शाक्य ने अपनी पुस्तक ‘नेपाल 2043: द रोड टू प्रॉस्पेरिटी’ पर चर्चा करते हुए नेपाल में जेनजी आंदोलन और विकास की दिशा पर विचार रखे। लेखिका अनुराधा राय ने अपनी आगामी पुस्तक और पहाड़ से जुड़े अपने अनुभव साझा किये। उन्होंने कहा कि पर्वतीय जीवन उनके लेखन की संवेदना और दृष्टिकोण को आकार देता है। भूटान की कलाकार लेकी त्शेवांग ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर भूटानी, हिंदी और पहाड़ी गीतों की प्रस्तुति दी। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े सत्र में नेहा सिन्हा और पत्रकार गार्गी रावत ने भारत के वन्यजीवों की सुरक्षा पर विचार रखे। इसके साथ ही अरुंधति नाथ और निहारिका बिजली ने बंगाली भूत कथाओं की परंपरा पर चर्चा की, जबकि ‘नैनीताल मेमोरीज, स्टोरीज एंड हिस्ट्री’ नामक पुस्तक का विमोचन किया गया।
 
मुख्य वक्ता प्रसिद्ध कला इतिहासकार डॉ. अल्का पांडे ने इतिहास, पौराणिक कथाओं और पर्यावरण के अंतर्संबंधों पर विस्तार से विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आदिवासी ज्ञान प्रणालियां हमें बताती हैं कि आध्यात्मिकता और पर्यावरण एक ही सत्य के दो पहलू हैं। उन्होंने कवि कालिदास के संदर्भ में हिमालय को जीवंत आत्मा के रूप में देखने की प्रेरणा दी। राहुल भूषण और शगुन सिंह ने पर्यावरण-अनुकूल वास्तुकला और टिकाऊ जीवनशैली पर अपने अनुभव साझा किए। सम्मेलन स्थल पर सजे ‘कुमाऊं बाजार’ में स्थानीय शिल्प, वस्त्र और व्यंजनों की झलक ने आगंतुकों को आकर्षित किया। ‘पियोली’, ‘पाला’, ‘म्यार’, ‘बैनी’, ‘पिकल सिकल’ और ‘रस्टीक स्लाइस कैफे’ जैसे स्थानीय ब्रांडों की प्रस्तुतियों ने भी लोगों का ध्यानाकर्षण किया। आगे पोषण विशेषज्ञ रुजुता दिवेकर ने ‘भारतीय रसोई से भोजन का ज्ञान’ विषय पर संवाद किया, जबकि समापन सूफी संगीत प्रस्तुति ‘रेहमत-ए-नुसरत’ के साथ हुआ।
 
आयोजक जाह्नवी प्रसाद ने कहा कि दस वर्ष पूर्व छह वक्ताओं और 50 श्रोताओं से शुरू हुआ यह आयोजन आज हिमालयी संस्कृति और रचनात्मकता का जीवंत उत्सव बन गया है, जो पहाड़, समुदाय और प्रकृति को एक सूत्र में बांधता है।
 
 
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