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75 साल, 25 मुख्यमंत्री : किसका दौर रहा, किसका डांवाडोल? पढ़िए पूरी रिपोर्ट

Date : 20-Nov-2025

पटना, 20 नवम्बर । बिहार की राजनीति आज जिस मुकाम पर खड़ी है, उसकी पूरी कहानी 75 साल के मुख्यमंत्री इतिहास में दर्ज है। स्वतंत्र भारत के शुरुआती दिनों में कांग्रेस का दबदबा, फिर सामाजिक न्याय की लहर और अब सुशासन मॉडल। इन सबके केंद्र में वे चेहरे रहे, जिन्होंने राज्य की दिशा तय की। बिहार के मुख्यमंत्री पद पर बैठने वाले नेताओं की सूची सिर्फ सत्ता परिवर्तन का ब्यौरा नहीं, बल्कि राजनीति, समाज और जातीय समीकरणों के उतार-चढ़ाव की जीवंत दास्तान है।

साढ़े सात दशक की राजनीतिक यात्रा, कौन कब मुख्यमंत्री रहा?

1946 में श्रीकृष्ण सिंह के साथ शुरू हुई बिहार के मुख्यमंत्री पद की यात्रा कई उथल-पुथल, प्रयोगों और बदलावों से गुजरती हुई आज नीतीश कुमार के सबसे लंबे शासनकाल तक पहुंच चुकी है। श्रीकृष्ण सिंह लगभग 14 साल 9 माह तक सत्ता में रहे और उन्हें आधुनिक बिहार का निर्माता माना जाता है।

1960 और 70 का दशक अस्थिरताओं का दौर था दीप नारायण सिंह, कृष्ण बल्लभ सहाय, महामाया प्रसाद सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर, अब्दुल गफूर, जगन्नाथ मिश्रा, रामसुंदर दास, चंद्रशेखर सिंह, बिंदेश्वरी दुबे, भगवत झा आजाद, एसएन सिंह जैसे नेताओं के छोटे-छोटे कार्यकाल सत्ता संघर्ष और राजनीतिक खींचतान को उजागर करते रहे।

1990 में जब लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने, तब बिहार की राजनीति पूरी तरह बदल चुकी थी। सामाजिक न्याय, एमवाई समीकरण और नई जातीय राजनीति ने राज्य की सत्ता संरचना को पुनर्परिभाषित कर दिया। लालू 1990 से 1997 तक लगातार 7 साल 4 महीने सत्ता में रहे। उनके बाद राज्य की बागडोर उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने संभाली और 2005 तक बिहार में आरजेडी युग का दबदबा बरकरार रहा।

2005 में बिहार ने नया रास्ता चुना- नीतीश कुमार। सड़क, शिक्षा और सुशासन के मॉडल के साथ नीतीश ने राज्य की राजनीति का सबसे स्थायित्वपूर्ण अध्याय लिखा। पिछले 20 साल में वे 7 बार मुख्यमंत्री रहे और कुल मिलाकर 18 साल से अधिक सत्ता संभालकर बिहार के सबसे लंबे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री बन गए।

बिहार की राजनीति के तीन मुख्य स्तंभ माने जाते हैं।

श्रीकृष्ण सिंह- स्थापना का दौर

- लंबे समय तक निर्बाध सत्ता

- उद्योग, शिक्षा, प्रशासन की नींव

- राजनीतिक स्थिरता का स्वर्णकाल

लालू प्रसाद यादव- सामाजिक न्याय का दौर

- 90 के दशक में अजेय राजनीतिक शक्ति

- एमवाई समीकरण का उभार

- संगठनात्मक पकड़ और करिश्मा

नीतीश कुमार- सुशासन और विकास का दौर

- सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री

- गठबंधन राजनीति के सबसे दक्ष खिलाड़ी

- शासन में स्थिरता, कानून-व्यवस्था सुधार और बुनियादी ढांचा

तीनों ने अपने-अपने समय में लगभग सर्वशक्तिमान दौर देखे, लेकिन स्थायित्व, नीति और समय-सीमा के पैमाने पर नीतीश कुमार सबसे आगे निकल गए।

सबसे बड़ा रिकॉर्ड : नीतीश कुमार का ‘विकास युग’

2005 के बाद से नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति को अपनी शर्तों पर चलाया। कभी भाजपा के साथ, कभी विपक्ष के साथ तो कभी महागठबंधन की कमान संभालकर। उनकी खासियत यह रही कि वे हर राजनीतिक परिस्थिति में खुद को सत्ताधारी समीकरण के केंद्र में बनाए रखने में सफल रहे। 2015–17 का महागठबंधन, 2017 का भाजपा संग वापसी, 2022 का पलटवार और 2024 का फिर एनडीए। हर बार नीतीश सत्ता समीकरण की धुरी रहे।

छोटे कार्यकाल और अस्थिरता के दौर

1960, 70 और 80 के दशक में बिहार में सत्ता अक्सर बदलती रही। कई मुख्यमंत्री कुछ माह से लेकर एक-दो साल तक ही टिक सके। दीप नारायण सिंह 18 दिन, नीतीश कुमार का पहला कार्यकाल सिर्फ 7 दिन, बीपी मंडल (बोगेंद्र नारायण मंडल) 4 माह, कर्पूरी ठाकुर दो बार लेकिन छोटे कार्यकाल। इस दौर में जातीय राजनीति, राजनीतिक अस्थिरता और केंद्र-राज्य संबंधों की खींचतान साफ दिखती है।

फिर नीतीश के साथ बिहार

2025 में एनडीए संग एक बार फिर सत्ता में लौटकर नीतीश ने स्पष्ट कर दिया कि बिहार की राजनीति में उनकी प्रासंगिकता अभी खत्म नहीं हुई है। आज भी राज्य में विकास, शासन और राजनीतिक संतुलन की हर चर्चा की धुरी वे ही हैं।

नीतीश ने सबसे लंबे और स्थिर शासन का मॉडल बनाया

बिहार का मुख्यमंत्री इतिहास सिर्फ नामों की सूची नहीं। यह बिहार के सामाजिक, राजनीतिक और जातीय परिवर्तनों का दर्पण है। श्रीकृष्ण सिंह ने बुनियाद रखी, लालू प्रसाद यादव ने सामाजिक समीकरण बदले और नीतीश कुमार ने सबसे लंबे और स्थिर शासन का मॉडल बनाया। तीनों युग मिलकर बिहार की राजनीति का संपूर्ण इतिहास रचते हैं।

 
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