स्तर संभाग मुख्यालय में 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा में बस्तर संभाग के समस्त ग्रामों के देवी-देवताओं को बकायदा तहसीलदार जगदलपुर के द्वारा बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा जाता है। जिसमें 6166 ग्रामीण प्रतिनिधि बस्तर दशहरे की पूजा विधान को संपन्न कराने के लिए विशेष तौर पर शामिल होते हैं। पहली फूल रथ परिक्रमा 16 अक्टूबर के साथ ही हजारों देवी-देवताओं के साथ लाखों ग्रामीण के बस्तर दशहरा में शामिल होने का सिलसिला शुरू हो जायेगा।
पंचमी तिथि को विशेष तौर पर बस्तर के राजपरिवार के द्वारा दंतेवाड़ा स्थित दंतेश्वरी मंदिर में पूजा अनुष्ठान के साथ मावली परघाव पूजा विधान में शामिल होने के लिए मावली माता सहित समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। इसके साथ ही बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर में देवी-देवताओं के आस्था का महाकुंभ में शामिल होने के लिए बस्तर संभाग सहित बस्तर से लगे अन्य प्रदेशों के देवी-देवताओं सहित सभी ग्रामों के देवी-देवता को लेकर ग्रामीण बस्तर दशहरा में शामिल होते हैं। बस्तर दशहरे पर आमंत्रित देवी-देवताओं की संख्या को देखते हुए कहा जा सकता है कि, यह पर्व बस्तर के वनवासी जनजातियों की आस्था का महाकुंभ है।
बस्तर राजवंश की कुल देवी दंतेश्वरी के विभिन्न रूप इस पर्व पर नजर आते हैं। राज परिवार की कुलदेवी दंतेश्वरी के बस्तर में स्थापित होने के बाद यहां कई ग्रामों की देवी को दंतेश्वरी के रूप में पूजा जाता है। वहीं दूसरी ओर बस्तर की स्थानीय मूल देवी मावली माता को माना जाता है। यही कारण है कि बस्तर दशहरा का सबसे आकर्षण का केंद्र मावली परघाव पूजा विधान के रूप में हमें देखने को मिलता है। बस्तर दशहरे में दंतेवाड़ा से यहां पहुंचने वाली मावली माता की डोली मणिकेश्वरी के नाम पर दंतेवाड़ा में देखने को मिलती है। क्षेत्र और परगने की विशिष्टता एवं परम्परा के आधार पर मावली माता के एक से अधिक संबोधन देखने-सुनने को मिल जाते हैं। जैसे घाट मावली (जगदलपुर), मुदरा (बेलोद), खांडीमावली (केशरपाल), कुंवारी मावली (हाटगांव) और मोरके मावली (चित्रकोट) है।
रियासतकाल से चली आ रही है परम्परा
बस्तर में रियासतकाल से देवी-देवताओं को दशहरा पर्व पर आमंत्रित करने की परम्परा आज भी जारी है। माई दंतेश्वरी सोनारपाल, धौड़ाई नलपावंड, कोपरामाडपाल, फूलपदर, बामनी, सांकरा, नगरी, नेतानार, सामपुर, बड़े तथा छोटे डोंगर, मावली माता की स्थापना माड़पाल, मारकेल, जड़ीगुड़ा, बदरेंगा, बड़ेमारेंगा, मुण्डागांव और चित्रकोट में हैं। इसी तरह हिंगलाजिन माता की स्थापना विश्रामपुरी, बजावंड, कैकागढ़, बिरिकींगपाल, बनियागांव भंडारवाही और पाहुरबेल में है। इसी तरह कंकालीन माता जलनी माता की भी स्थापना बस्तर के विभिन्न गांवों में है।
भैरमदेव माने जाते हैं सबसे शक्तिशाली
देवी-देवताओं को उनकी शक्ति, पद और प्रतिष्ठा के अनुरूप दिये गये सम्मान में भैरमदेव को सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता है। भैरम के और भी रूप जद भैरम, बूढ़ा भैरम और पीला भैरम मिलते हैं। घोड़ावीर, कालवाम, गायतादेव, सिंगदेव, जांगड़ादेव तथा भीमादेव भी पूजे जाते हैं। इन देवताओं का रूप प्राय: देवी माता में नजर आता है। कानों में कुण्डल, बाह में बाहड़ा, कलाई में कड़ा और लहंगा-जम्पर पहने होते हैं।
बस्तर दशहरा के प्रारंभ होने के साथ ही संभाग मुख्यालय के भंगाराम चौक में स्थित काछन देवी का स्थान है जहां काछन गादी पूजा विधान के तहत काछन देवी के द्वारा बस्तर दशहरा के प्रारंभ करने एवं निर्विघ्न संपन्न करने हेतु आशीर्वाद प्राप्त होने के बाद भी बस्तर दशहरा के विभिन्न पूजा विधान प्रारंभ हो जाते हैं। जोगी बिठाई के रूप में माता मावली के मंदिर से परंपरानुसार जोगी परिवार के देवी-देवताओं के साथ पूजा विधान संपन्न कर रियासत कालीन खड़क अर्थात तलवार धारण कर दशहरा के निर्विघ्न संपन्नता की कामना के साथ 09 दिनों तक एक स्थान पर बैठ जाता है। इसके साथ ही नवरात्रि की पूजा विधान के साथ रथ परिक्रमा बस्तर दशहरा का सबसे आकर्षण का केंद्र प्रारंभ हो जाता है।
रथ परिक्रमा पूजा विधान में कई देवी-देवताओं के आह्वान के साथ अग्रसर होता है। बेल पूजा विधान के तहत ग्राम सरगीपाल से जोड़ा बेल लाकर दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित किया जाता है। जोड़ा बेल की स्थापना को मणिकेश्वरी और दंतेश्वरी की स्थापना के रूप में परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इसके पश्चात महाष्टमी पूजा विधान निशा जात्रा पूजा विधान, मावली परघाव पूजा विधान, भीतर रैनी, बाहर रैनी पूजा विधान, काछन जात्रा पूजा विधान, कुटुंब जात्रा पूजा विधान, के साथ ही मावली माता की विदाई पूजा विधान के साथ बस्तर दशहरा अपनी संपन्नता के साथ अगले वर्ष के लिए परायण होता है।