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बुंदेलखंड की अनूठी होली: रंग, संगीत और संस्कृति का अद्भुत संगम

Date : 04-Mar-2025

बुंदेलखंड में होली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि लोक संस्कृति, वीरता और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम है। यहाँ की होली अपने विशेष रस्मों, रंगों, लोकगीतों (फाग गायन) और पारंपरिक व्यंजनों के कारण बेहद खास होती है। यह पर्व न केवल उमंग और उल्लास का प्रतीक है, बल्कि समाज में प्रेम, भाईचारे और एकता का संदेश भी देता है।

फाग गायन: बुंदेलखंड की होली की पहचान

बुंदेलखंड की होली में सबसे बड़ा आकर्षण फाग गायन होता है। इसमें वीर रस, श्रृंगार रस और भक्ति रस से ओतप्रोत लोकगीत गाए जाते हैं, जो राधा-कृष्ण की प्रेममयी नोंकझोंक, ऐतिहासिक वीरता और लोकगाथाओं को जीवंत कर देते हैं।

गाँवों और कस्बों में ढोलक, मृदंग, झांझ, मंजीरे के साथ फाग गायक विशेष पारंपरिक वेशभूषा में झूमते-गाते दिखाई देते हैं। ये गायन समूह गली-मोहल्लों में घूमकर अपनी मस्ती और रंगों की छटा बिखेरते हैं, जिससे वातावरण उल्लास से भर जाता है। लोग खुद को रोक नहीं पाते और इस मधुर संगीत में झूम उठते हैं।

कुछ प्रसिद्ध फाग गीतों में शामिल हैं—

  1. "सिर बांधे मुकुट खेले होरी..."
    (यह गीत भगवान श्रीराम और सीता जी की अयोध्या में खेली गई होली का वर्णन करता है।)
  2. "होरी खेले बनवारी, संग में बृषभान दुलारी..."
    (यह गीत श्रीकृष्ण और राधा की होली की मधुर छवि प्रस्तुत करता है।)

पारंपरिक व्यंजन: स्वाद का रंग भी होली में शामिल

बुंदेलखंड की होली विशेष व्यंजनों के बिना अधूरी है। इस अवसर पर घर-घर में गुजिया, मालपुआ, दाल की कचौरी, बेसन की बर्फी, दही बड़े, रब के मंगोड़े बनाए जाते हैं। इसके अलावा महुआ की मिठाइयाँ, भांग मिश्रित ठंडाई और सूखे मेवों से बनी मिठाइयाँ भी इस त्योहार का विशेष हिस्सा होती हैं।

होलिका दहन: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक

बुंदेलखंड में मान्यता है कि होलिका दहन अशुभ शक्तियों के नाश का प्रतीक है। यहाँ किसान अपनी नई फसल का अंश होलिका में समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

होली के पंद्रह दिन पहले से ही गाँवों और कस्बों में होलिका दहन की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। लोग गोबर, सूखी लकड़ियाँ, उपले (कंडे) और भूसा इकट्ठा कर होलिका की रचना करते हैं। बच्चे टोली बनाकर घर-घर जाकर चंदा एकत्रित करते हैं और सामूहिक रूप से यह पारंपरिक गीत गाते हैं—
"होली की लकड़ी दो, तीन-चार कंड़े (उपले) दो..."

होलिका दहन के समय गौधूलि बेला से अर्धरात्रि तक परिवार के सभी सदस्य मिलकर होलिका माता की पूजा करते हैं। यह परंपरा हमें यह संदेश देती है कि अपनी शक्तियों का उपयोग समाज कल्याण के लिए करना चाहिए, न कि अहंकार और बुराई के लिए।

धुलेंडी: रंगों से भरा उल्लासमयी दिन

होली के दिन, जिसे धुलेंडी कहा जाता है, लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर बधाइयाँ देते हैं। यहाँ के लोग टेसू के फूल, गुलाब, अपराजिता, गेंदे के फूलों और बेसन से बने प्राकृतिक रंगों से होली खेलते हैं। पीली और काली माटी भी पारंपरिक रूप से रंगोत्सव में प्रयुक्त होती है।

बुंदेलखंड की होली में एक और खासियत है—यहाँ होली सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि पूरे पाँच दिन मनाई जाती है। फाल्गुन पूर्णिमा के बाद धुलेंडी से रंग पंचमी तक यह उत्सव चलता है। इसमें प्रतिपदा, भाई दूज, तृतीय, चतुर्थी और रंग पंचमी के विशेष पर्व शामिल होते हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का पर्व

बुंदेलखंड की होली समरसता का प्रतीक है। यहाँ सभी जाति, वर्ग और धर्मों के लोग मिलकर इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं। बुंदेलखंड के विभिन्न क्षेत्रों में होली की अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं, जैसे—

ये सभी स्थान बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं और यह साबित करते हैं कि होली केवल रंगों का ही नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और भाईचारे का पर्व भी है।

लेखिका - डॉ. नूपुर निखिल देशकर

 
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