कानपुर। देशभर में गणेश चतुर्थी के साथ ही गणपति उत्सव की धूम मच गई है। जगह-जगह पांडाल सज चुके हैं और हर ओर "गणपति बप्पा मोरया" की गूंज सुनाई दे रही है। ऐसे में कानपुर स्थित श्री सिद्धि विनायक गणेश मंदिर का जिक्र जरूरी हो जाता है, जिसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि बेहद खास है।
यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी इतिहास का भी साक्षी रहा है। मान्यता है कि मराठा नेता बाल गंगाधर तिलक ने जब गणेश उत्सव को जन आंदोलन का माध्यम बनाया, तो उसी भावना की प्रेरणा से कानपुर में भी यह परंपरा शुरू हुई। जिस स्थान पर आज यह मंदिर स्थित है, वहां कभी एक मकान था, जहां क्रांतिकारी गुप्त बैठकें करते थे।
जब अंग्रेजों को इस स्थान को लेकर संदेह हुआ, तब तिलक ने रणनीति के तहत वहां भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करवा दी, जिससे अंग्रेजों को यह एक धार्मिक स्थल प्रतीत हो और क्रांतिकारी गतिविधियों पर संदेह न हो। यही कारण था कि यह स्थान धीरे-धीरे एक भव्य मंदिर में परिवर्तित हो गया।
मंदिर की विशेषताएं:
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यह मंदिर घंटाघर चौराहे के पास स्थित है और करीब 108 साल पुराना है।
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वर्तमान में यह चार मंजिला भव्य इमारत के रूप में खड़ा है।
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मंदिर के मुख्य द्वार पर ही भगवान गणेश की 14 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है, जो भक्तों का ध्यान तुरंत खींच लेती है।
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पहली मंजिल पर अष्टविनायक स्वरूप में गणेश जी विराजमान हैं।
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दूसरे तल पर भगवान गणेश की दशमुख (10 मुखों वाली) प्रतिमा है, जिसे देशमुख गणेश कहा जाता है।
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तीसरे तल पर नवग्रह की वेदियां हैं और
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चौथे तल पर मां गंगा की प्रतिमा विराजमान है।
मंदिर के वरिष्ठ सेवादार विशाल शुक्ला बताते हैं कि यह स्थल कभी क्रांतिकारियों का गुप्त अड्डा था। अंग्रेजों से बचने के लिए इसे मंदिर का रूप दिया गया, और तिलक जी ने खुद यहां भूमिपूजन किया था।
वहीं दूसरे सेवादार बबलू जायसवाल के अनुसार, गणेश चतुर्थी के अवसर पर मंदिर में विशेष कार्यक्रमों की श्रृंखला होती है — जैसे कवि सम्मेलन, गोष्ठियां और भजन संध्याएं। बुधवार के दिन यहां विशेष भीड़ उमड़ती है, और जो भी श्रद्धालु अपने घर या पंडाल में गणेश जी की स्थापना करता है, वह यहां आकर माथा टेकना नहीं भूलता।
कानपुर का सिद्धि विनायक मंदिर एक ऐसा स्थान है जो आस्था, इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम की भावना — तीनों का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। यह मंदिर न सिर्फ भक्ति का केंद्र है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि धर्म और देशभक्ति मिलकर भी बड़े बदलाव का माध्यम बन सकते हैं।