बलरामपुर, 1 सितंबर। बलरामपुर जिले से होकर बहने वाली जीवनदायिनी नदी कन्हर केवल एक सदानीरा पवित्र नदी मात्र नहीं है बल्कि दो संस्कृतियों का मेल कराती और उन्हें एक दूसरे में समाहित करती हुई बहने वाली अजस जलधारा है।
उल्लेखनीय है कि, कन्हर नदी बलरामपुर जिले की सबसे बड़ी नदी है। इसी नदी में जिले का आधे से ज्यादा जल प्रवाहित होता है। जशपुर जिले से उद्गम पश्चात यह नदी जैसे ही बलरामपुर में प्रवेश करती है उसकी सबसे पहली मुलाकात ग्राम सागरपुर से होती है। यहां से झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमारेखा का विभाजन प्रारंभ हो जाता है। इसके बाद यह नदी जहां से भी प्रवाहित होती है। बलरामपुर (छग) और झारखंड के विभिन्न ग्राम और नगरों की यह सीमा बनाती जाती है। ऐसा संयोग भी कम ही देखने को मिलता है। कहीं यही नदी अपराधियों के लिए वारदात के बाद बरदान बन जाती है तो कहीं लोग इसे गंगा की तरह पवित्र मानकर इसकी पूजा करते हैं और संध्या आरती करते हैं। रामानुजगंज और झारखंड के गोदारमाना के निवासियों के लिए तो कन्हर नदी वास्तव में जीवन देने वाली नदी का काम करती है। यहां रहने वालों के लिए इस नदी का होना सांस की तरह है।
अद्भुत सांस्कृतिक संगम की मिसाल
कन्हर नदी के दोनों किनारे पर बसे नगर रामानुजगंज और गोदरमाना मात्र एक नदी के दोनों किनारे पर बसे चहल-पहल भरे नगर ही नहीं है बल्कि दो राज्यों का सांस्कृतिक और सामाजिक संगम भी है। दोनों के बीच अगर कन्हर नहीं बहती तो यह फर्क करना बहुत मुश्किल हो जाता कि आप छत्तीसगढ़ मैं है या झारखंड में। दोनों राज्यों की भाषा बोलचाल, रहन-सहन, खान-पान तथा अन्य सांस्कृतिक विशेषताएं यहां आकर कनहर नदी को निर्मल जलधारा में मिलकर एकाकार हो जाती है। रामानुजगंज आकर झारखंड वालों को यह महसूस नहीं होता है कि वह दूरररे प्रांत का है। यही एहसास रामानुजगंज वालों को झारखंड जाकर होता है। दरअसल दोनों जगहों के बीच की दूरी एक चौथाई किलोमीटर मात्र है। इसलिए यहां के लोगों के सामाजिक सरोकार बहुत गहरे हैं और फर्क कर पाना मुश्किल है।