बाल सुरक्षा - भारत के बच्चों को हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण से बचाना
18 वर्ष से कम आयु के सभी व्यक्ति बच्चे हैं। बचपन एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे हर इंसान गुजरता है। बचपन में बच्चों के अलग-अलग अनुभव होते हैं। सभी बच्चों को दुर्व्यवहार और शोषण से बचाने की आवश्यकता है।
भारत में बच्चों की सुरक्षा के लिए अनेक कानून हैं और बाल सुरक्षा को सामाजिक विकास के मुख्य घटक के रूप में तेजी से स्वीकार किया जा रहा है। जमीनी स्तर पर मानव संसाधन क्षमता की कमी और गुणवत्ता निवारण और पुनर्वास सेवाओं की कमी इन कानूनों को लागू करने में चुनौती है। परिणामस्वरूप लाखों बच्चे हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण का शिकार होते हैं।
हिंसा कहीं भी हो सकती है : घर, स्कूल, बाल देखभाल केंद्र, कार्यस्थल और समुदाय में अक्सर बच्चे को जानने वाले के द्वारा ही हिंसा की जाती है
कठोर वास्तविकता है। भारत में लड़कियों और लड़कों, दोनों को जल्द शादी, घरेलू शोषण, यौन हिंसा, घर और स्कूल में हिंसा, तस्करी, ऑनलाइन हिंसा, बाल मजदूरी और डराने-धमकाने का सामना करना पड़ता है। हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण के सभी प्रकारों का बच्चों के जीवन पर दीर्घावधिक प्रभाव पड़ता है।
हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण पर सटीक डेटा पर्याप्त नहीं है, लेकिन कुल मिलाकर भारत में बच्चों के विरुद्ध हिंसा, विशेषकर यौन शोषण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। अनेक मामले जिन्हें पहले अनदेखा कर दिया जाता था, अब सूचित किए जा रहे हैं।
भारत अभी परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जिसमें वर्ष 2005-2006 में 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियों की बाल विवाह दर 47 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2015-2016 में 27 प्रतिशत हो गई है। भारत में समग्र गिरावट के बावजूद राष्ट्रीय औसत जिला स्तर की वास्तविकता छिपा लेती है और कुछ जिलों में बाल विवाह की उच्च दर अभी भी जारी है।
भारतीय संदर्भ में, बाल श्रम जटिल समस्या है। भारत में सक्रिय कानूनी उपायों और नीतियों के बावजूद, इस समस्या का मुकाबला करने के लिए बच्चों के काम करने की दर में कमी अपेक्षा से कम हो रही है। बच्चे अक्सर खेतों और घरों में काम करते हुए पाए जाते हैं, जबकि लड़कियों के बारे में अक्सर जानकारी नहीं मिल पाती।
यौन हिंसा पर डेटा दुर्लभ है और यह मुख्यत: मामलों की रिपोर्टिंग पर आधारित है। इसका मतलब यह है कि आंकड़े समस्या की भयावहता को कम करके दर्शाते हैं, क्योंकि अधिकतर मामलों की रिपोर्ट नहीं की जाती। रिपोर्ट किए गए मामलों से पता चलता है कि यौन शोषण करने वाले मुख्य रूप से पुरुष होते हैं और वे अक्सर बच्चों के जानकार होते हैं।
हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण समाप्त करने हेतु समाधान
बच्चों के प्रति हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण समाप्त करने की दिशा में सामाजिक जागरूकता पैदा करने, कानून को बढ़ावा देने और पोषित करने की दिशा में प्रगति हुई है, लेकिन पीडि़त लोगों और उनके परिवारों को संवेदनशील, समयबद्ध और कुशल संरक्षण और सेवाएं प्रदान करने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
बच्चों में व्यक्तिगत सुरक्षा को बढ़ावा देना,स्कूलों में बाल संरक्षण नीतियों और बच्चों के यौन शोषण को रोकने के लिए माता-पिता की बढ़ती जागरूकता आवश्यक है। छोटे बच्चे अपने बचाव करने में और भी अधिक अशक्त होते हैं। उनके लिए परिवारों और शिक्षा संस्थानों की सुरक्षात्मक भूमिका को मजबूत करने के लिए विशिष्ट तरीके अपनाने होंगे।
प्रत्येक बच्चे को हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार से मुक्त रहने का अधिकार है । बच्चे हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार के कपटी रूपों का अनुभव करते हैं। यह हर देश में होता है, और उन जगहों पर जहाँ बच्चों को सबसे अधिक सुरक्षित किया जाना चाहिए - उनके घर, स्कूल और ऑनलाइन।
बच्चों के लिए कौन कौन से कानून है?
· निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009.
· किशोर न्याय अधिनियम, 2000.
· किशोर न्याय अधिनियम, 2015.
· बाल-विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006.
· बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005.
1 - स्कूल से बाहर ना निकलें
सबसे पहले बच्चों को यह समझाएं कि स्कूल से किसी भी काम के लिए बाहर ना निकलें और अगर वे बाहर जा भी रहे हैं तो अपने साथ स्कूल के किसी कर्मचारी या अध्यापक को बता कर जाएं। बच्चों को ये भी समझाएं कि बिना बताए स्कूल से बाहर जाने पर आप को न केवल स्कूल से निकाला जा सकता है बल्कि ऐसा करने से आप किसी दुर्घटना के शिकार भी हो सकते हैं।
2 - अनजान व्यक्ति से ना करें बात
बच्चों को बताएं कि स्कूल में अध्यापक, दोस्तों और कर्मचारियों के अलावा कुछ ऐसे लोग भी मिल सकते हैं जो आपके लिए अनजान हैं। ऐसे में उन लोगों से दूरी बनाए रखें और अगर वह बात करने की कोशिश करें तो उनका ज्यादा मनोरंजन ना करें। बच्चों को यह भी समझाएं कि अनजान व्यक्ति आपको नुकसान भी पहुंचा सकता है।
3 - जब स्कूल से जुड़ा कोई सदस्य करे परेशान
कभी-कभी बच्चे स्कूल में काम करने वाले सदस्यों से ही परेशान हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें समझाएं कि इस प्रकार की परिस्थिति आने पर बच्चे तुरंत माता-पिता को बताएं। वहीं अगर किसी की बातों से आपको ठेस पहुंची है तब भी माता-पिता को उसके बारे में बताएं। साथ में हल के बारे में भी बताएं। माता-पिता ध्यान दें जब बच्चा इस प्रकार की कोई शिकायत आपके पास लेकर आए तो उसकी बातों को अच्छे से सुनें और उस पर तुरंत एक्शन लें।
4 - स्कूल में देर तक ना बैठना
कुछ बच्चों की आदत होती है कि वे स्कूल खत्म होने के बाद भी अपने दोस्तों के साथ खाली क्लास रूम में बैठकर बातें करते हैं या उनके साथ खेलते हैं। उन्हें समझाएं कि ऐसा करना गलत है। समय पर स्कूल जाएं और समय पर स्कूल से आना बेहद जरूरी है। साथ ही बच्चों को कहें कि सुबह के समय भी स्कूल में सबसे पहले जाकर ना बैठें। अपने टाइम पर ही स्कूल पहुंचे।
5 - बच्चों को बनाएं निडर
बच्चों को निडर बनाना जरूरी है। ऐसे में माता-पिता उन्हें ऐसी कहानियां सुनाएं, जिससे उनके अंदर पर डर खत्म हो जाए और बच्चों का आत्मविश्वास मजबूत हो। इससे अलग आप अपने अनुभव को भी बच्चों के साथ शेयर कर सकते हैं। उन्हें समझाएं कि यदि कोई व्यक्ति आपके साथ गलत व्यवहार कर रहा है तो खुद के लिए खड़ा होना बेहद जरूरी है।
6 - घर की बातों को ना करें शेयर
अकसर बच्चे दोस्तों से बात करने के लिए नए-नए टॉपिक को चुनते हैं लेकिन अपने बच्चों को समझाएं कि स्कूल में किसी भी व्यक्ति या दोस्त के साथ अपने घर की बात साझा ना करें। खासकर पैसों से जुड़ी बातें किसी को भी ना बताए। नहीं तो पैसों से जुड़ी जानकारी सुनकर कोई भी व्यक्ति आपको लालच में आकर हानि पहुंचा सकता है।
7 - सीनियर्स पर भी पाएं काबू
अपने बच्चे को समझाएं कि यदि कोई मनमानी करें या आप पर अपने विचारों को थोपे तो उसकी हर बात मानने की जरूरत नहीं है और आपके बात ना मानने पर यदि वह बच्चा आपको हानि पहुंचाए तो ऐसे में तुरंत टीचर से जाकर कहें। यदि टीचर आपके बात नहीं सुन रहा है तो घर पर आकर हमें बताएं।
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8 - इधर उधर ना घूमें
स्कूल में कई ऐसी जगह होती है जैसे खेलकूद का हॉल, साइंस लैब, लाइब्रेरी, आर्ट रूम, जहां बच्चे को जाना पसंद है। लेकिन जब ऐसे रूम खाली हो तो उस दौरान बच्चों को वहां नहीं जाना चाहिए। इस बारे में माता-पिता अपने बच्चों को समझाएं। साथ ही ये बताएं कि जब उससे संबंधित पीरियड हो तभी ऐसी जगह पर जाएं। खाली समय में इन जगहों पर जाकर अकेले ना बैठें।
9 - चिल्लाना भी है जरूरी
कुछ बच्चे बेहद शर्मीले या नाजुक स्वभाव के होते हैं। ऐसे में माता-पिता इन बच्चों से कहें कि यदि अपने आसपास कुछ नकारात्मक लगे या खतरा लगे तो ऐसे समय में चिल्लाने से ना शर्माएं क्योंकि हो सकता है कि आपके चिल्लाने पर आपके आसपास का खतरा खुद ही दूर हो जाए और आपकी मदद के लिए कोई आपके पास आ जाए।
बच्चे अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करते हैं। इस क्रम में अध्यापक एक सुगमकर्त्ता के रूप में बच्चों की ज्ञान निर्माण प्रक्रिया में सहभागिता निभाता है जिससे सीखना बच्चों के लिए अर्थपूर्ण बन सके। इस विचार को संरचनावाद (constructivism) के नाम से जाना जाता है। इसके लिए गहन संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है।
बच्चों को संरक्षित, जागरूक एवं शिक्षित करने शिक्षकों एवं समाज की महती भूमिका है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत प्रत्येक बच्चों को शिक्षा पाने का पूरा अधिकार है।