विश्व संत्रस्त है। अनेक देश युद्ध की विभीषिका में हैं। मानवता कराह रही है। स्त्रियों, वृद्धों, मासूम बच्चों की लाशें गिनती से बाहर हैं। पश्चिम में बारूद ही बारूद है। भारत के पास -पड़ोस में भी बारूदी धुएं से वातावरण दूषित है। मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन बनकर रक्त पिपासु हो गया है। किसी देश का नाम लें यह जरूरी नहीं किंतु दृश्य भयावह हैं। कई वर्षों से असमान में तोप, रॉकेट और सुपरसोनिक युद्ध विमान कोहराम मचाए हुए हैं। ऐसे माहौल में भारत की सनातन संस्कृति अपने सृष्टि पर्व के माध्यम से विश्व के कल्याण का उद्घोष कर रही है। गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी तट पर प्रयाग राज में करोड़ों लोग आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। यह अद्भुत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विश्वगुरु भारत का सपना साकार हो रहा है। प्रयाग की धरती से भारत विश्व को मानवता और लोक कल्याण का संदेश दे रहा है। भारत की संस्कृति, अध्यात्म और आस्था के आगे विश्व नतमस्तक है। धरती का हर कोना प्रयागराज से आकर्षित है। सभी यहां आना चाहते हैं। सभी पवित्र त्रिवेणी में डुबकी भी लगाना चाहते हैं। यह वास्तव में विश्व के अन्वेषकों और चिंतनशील शोधार्थियों के लिए कौतुक जैसा है।
ऐसा क्यों है, यह विचारणीय है। अभी कुछ ही दिन हुए, 26 दिसंबर 2024 को द हिंदू ने हिंसाग्रस्त विश्व के हालात पर रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2024 में कई ऐसे अंतरराष्ट्रीय संघर्ष हुए, जिन्होंने भू-राजनीतिक परिदृश्य और वैश्विक स्थिरता को चुनौती दी। यूक्रेन में चल रहे युद्ध से लेकर मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव तक, इस वर्ष गठबंधनों में बदलाव और विनाशकारी सैन्य अभियान देखने को मिले। इन संकटों का प्रभाव उनके तत्काल क्षेत्रों से कहीं आगे तक फैला, जिसने दुनिया भर में राजनयिक संबंधों और रणनीतिक प्राथमिकताओं को प्रभावित किया। रिपोर्ट में कहा गया कि बीते वर्ष की शुरुआत रूस द्वारा यूक्रेन के विरुद्ध 2022 के युद्ध को जारी रखने के साथ हुई , जिसका उद्देश्य उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) को अपनी सीमाओं की ओर बढ़ने से रोकना था।
अक्टूबर 2023 में उग्रवादी समूह हमास ने गाजा में हमला किया, जिसमें 1,000 से अधिक लोग मारे गए और फिलिस्तीन के विरुद्ध इजरायल की ओर से बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई की गई। जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, इजरायल की लड़ाई ईरानी प्रॉक्सी के खिलाफ अन्य क्षेत्रों में भी फैल गई, जिनमें हमास भी शामिल है। यमन में हूती विद्रोहियों ने जहाजों और अन्य जहाजों को रोका और उन पर हमला किया जिन्हें उन्होंने इजरायल की सहायता करने वाला बताया। लेबनान में हिज्बुल्लाह के आतंकवादियों ने सीमा पर इजरायल के साथ गोलीबारी की। सितंबर में, इज़राइल ने हिज़्बुल्लाह के पेजिंग उपकरणों को निशाना बनाया, जिससे दर्जनों लोग मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए। नवंबर में एक युद्धविराम समझौते ने क्षेत्रीय तनाव को कम कर दिया। हालाँकि, सीरियाई विद्रोहियों ने ईरान समर्थित असद सरकार के खिलाफ़ तेज़ हमले शुरू कर दिए और उनकी सरकार को गिरा दिया, जिससे हिंसा का एक नया दौर शुरू हो गया। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के साथ ही यूक्रेन को अमेरिका से मिलने वाले समर्थन में बदलाव आने की संभावना बनी। इस बीच, क्षेत्र में ईरानी प्रॉक्सी कमजोर हो गए हैं, जिससे इजरायल को अपनी क्षेत्रीय स्थिति को और मजबूत करने का मौका मिल गया है।
सशस्त्र संघर्ष स्थान और घटना डेटा (ACLED) डेटाबेस हर संघर्ष घटना और उससे जुड़ी मौतों को रिकॉर्ड करता है। इस डेटा के आधार पर, संघर्ष सूचकांक तैयार किया जाता है। सूचकांक प्रत्येक देश को चार मापदंडों के आधार पर रैंक करता है- घातकता (मृत्यु की संख्या), खतरा (नागरिकों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं की संख्या), प्रसार (हिंसा कितनी व्यापक है) और विखंडन (गैर-राज्य सशस्त्र, संगठित समूहों की संख्या)। इन मापदंडों के आधार पर प्रत्येक देश को संघर्ष श्रेणी और रैंकिंग दी जाती है। 12 दिसंबर 2024 से पहले के 12 महीनों के लिए 10 देशों को चरम संघर्ष वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है। ये हैं- फिलिस्तीन, म्यांमार, सीरिया, मैक्सिको, नाइजीरिया, ब्राज़ील, लेबनान, सूडान, कैमरून और कोलंबिया। जैसे-जैसे 2024 खत्म होने को आ रहा था, नए और चल रहे युद्धों के कारण संघर्ष क्षेत्रों में मौतों में वृद्धि हो रही थी जो 2025 के आरम्भ में अभी बढ़ ही रही है। 2024 में साल एक जनवरी से 13 दिसंबर तक, युद्धों, विस्फोटों, दूरस्थ हिंसा और नागरिकों के खिलाफ हिंसा में 200,000 से अधिक लोग मारे गए। इस मृत्यु दर का लगभग आधा हिस्सा मुख्य रूप से तीन देशों से आता है: यूक्रेन, फिलिस्तीन और म्यांमार। हालांकि वास्तविक मौतों का आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है।
पिछले वर्षों में, अफ़गानिस्तान में संघर्ष से संबंधित मौतों का एक बड़ा हिस्सा रहा है, खासकर तालिबान द्वारा सरकार पर कब्ज़ा करने से पहले। हालाँकि, पिछले वर्षों में, यूक्रेन और फिलिस्तीन में होने वाली मौतों ने मरने वालों की संख्या में एक बड़ा हिस्सा बना लिया है। इस बीच, म्यांमार में सरकार को उखाड़ फेंकने वाले एक सैन्य तख्तापलट के बाद, देश ने भी हाल के वर्षों में बढ़ती मृत्यु दर में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह कितना अमानवीय है कि विश्व केवल मौतों के सामान जुटाने और आंकड़े इकट्ठा करने में लगा है।2024 में इस तरह की हिंसा के कारण हर महीने औसतन लगभग 5,500 मौतें हुईं, जो 2023 में लगभग 5,300 प्रति माह और 2020 में लगभग 3,100 प्रति माह थी। जैसे-जैसे साल 2024 खत्म हो रहा था, ये संकट अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, संघर्ष समाधान और मानवीय हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता की कड़ी याद दिलाते रहे। इस रिपोर्ट में सबकुछ सत्य नहीं है किंतु सत्य के काफी निकट अवश्य है।
वैश्विक परिदृश्य में सनातन भारत की यह खगोलीय महाविज्ञानिक घटना अपने 46 दिनों की इस अवधि में बहुत कुछ स्थापित करने वाली है। यह सनातन भारत की आत्मिक शक्ति है जिसके आगे दुनिया नतमस्तक है। यही है कुंभ और यही है भारत की वह भारतीय सनातनी परंपरा जो भारत को विश्वगुरु बना देती है।
लेखक:- संजय तिवारी
बालवय से ही राष्ट्र केलिये जीवन समर्पित
भारतीय सवाधीनता संग्राम असंख्य बलिदानों का इतिहास है। हजारों लाखों जीवन की आहूति के बाद ही भारत में स्वतंत्रता का सूर्य उदित हो सका । ऐसे ही एक अमर बलिदानी हैं हेमू कालाणी। संभवतः उनका जन्म ही स्वाधीनता संग्राम के लिये हुआ था । वे अपनी वालवय सात वर्ष की आयु से ही हाथ में तिरंगा लेकर प्रभात फेरियों में शामिल होने लगे थे । बचपन से स्वतंत्रता संघर्ष का नशा कुछ ऐसा चढ़ा जो जीवन के बलिदान के बाद ही शाँत हो सका ।
क्राँतिकारी हेमू कलाणी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिन्ध प्राँत के सुक्कुर में हुआ था । यह क्षेत्र अब पाकिस्तानमें में है । परिवार जैन परंपरा का अनुयायी था पर पिता की सक्रिय भागीदारी आर्यसमाज के आयोजनों में थी । इस कारण परिवार में स्वत्व स्वाभिमान, साँस्कृतिक और राष्ट्र जागरण का भाव था । संयोग से बलिदानी हेमू कालाणी का जन्म ठीक उसी दिन हुआ था जिस दिन इतिस प्रसिद्ध क्राँतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दी गई थी। उनके पिता पेसुमल कलाणी व्यवसायी थे और माता जेठी बाई धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के लिये समर्पित रहीं । पंजाब और सिन्ध का यह क्षेत्र तीन परंपराओ से बहुत जाग्रत था । एक तो आर्यसमाज के सांस्कृतिक अभियान से, दूसरा क्राँतिकारियों के आंदोलन से तीसरा गाँधी जी के स्वदेशी आव्हान से । उस क्षेत्र का बच्चा बच्चा स्वदेशी और राष्ट्र जागरण के रंग में रंग रहा था । गांव गांव में प्रभात फेरियाँ निकलने लगी थीं। जब हेमू केवल सात वर्ष के थे तब उन्होंने हाथ में तिरंगा लेकर प्रभात फेरियों में हिस्सा लेना आरंभ कर दिया था । स्वदेशी का यह भाव जो उनके बचपन में पनपा अंतिम श्वांस तक यथावत रहा । किशोर अवस्था में वे क्रांतिकारी गतिविधियों के प्रति आकर्षित हुए और क्रान्तिकारियो के संपर्क में आ गये । वे टोली बनाकर दोनों दिशाओं में एक साथ काम करने लगे । अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्र कराने के जलसे जुलूस में भी और क्राँतिकारी गतिविधियों में भी हिस्सा लेते । भगाने के उद्देश्य से विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने लगे। वे पढ़ने में भी बहुत होशियार थे । इसके साथ खेल कूद, तैराकी और दौड़ स्पर्धाओं में भी हिस्सा लेते थे । खेल गतिविधियों में कई बार पुरस्कृत हुए । अभी वे केवल उन्नीस वर्ष के थे कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन आरंभ हो गया । यह आव्हान गांधी जी ने किया था । गाँधी जी ने 'अंग्रेजो से भारत छोड़ने को कहा और भारतीयों को 'करो या मरो' का नारा दिया। यह आंदोलन पूरे देश में फैला । यद्यपि आंदोलन की पूर्व बेला में गाँधी जी और काँग्रेस के लगभग सभी नेता बंदी बना लिये गये थे । पर आँदोलन न रुका। आँदोलन स्वस्फूर्त हो गया । जो जहाँ था वह आंदोलन मे टूट पड़ा।
हेमू कालाणी भी अपने दोस्तों और टोली के साथ आँदोलन में कूद पड़े। वे जिस संगठन के माध्यम से क्राँतिकारी गतिविधियों में सक्रिय थे उसका नाम 'स्वराज सेना' था । सिन्ध प्राँत के आँदोलन में इस संगठन की भूमिका महत्वपूर्ण थी । इसी संगठन के आव्हान पर हेमू ने 'अंग्रेजो- भारत छोड़ो' के नारे के साथ पूरे सिंध में स्वदेशी अभियान छेड़ दिया । वे विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार एवं स्वदेशी अपनाने के आव्हान के साभाएँ करते नौजवानों को जाग्रत कर रहे थे । तभी क्रांतिकारियों को जानकारी मिली कि बलूचिस्तान में चल रहे आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेज सैनिकों, हथियारों व बारूद से भरी रेलगाड़ी सिंध के रोहिणी स्टेशन और सक्खर शहर से होकर बलुचिस्तान के क्वेटा नगर जाएगी। यह समाचार सुनकर संगठन ने इस रेलगाड़ी रोकने का दायित्व 19 वर्षीय छात्र हेमू कालाणी और उनकी टोली को दिया । वह 23 अक्टूबर 1942 की रात थी । क्राँतिकारी हेमू कालाणी ने अपने साथ दो सहयोगी नंद और किशन को लिया । तीनों ने रेलगाड़ी के मार्ग का अध्ययन पहले कर लिया था । वे रेलगाड़ी के मार्ग पर पहुँचे।
हेमू कालाणी ने रिंच और हथौड़े की सहायता से रेल की पटरियों की फिशप्लेटों को उखाड़ना आरंभ कर दिया। अन्य दोनों साथी निगरानी के लिये तैनात थे। रात के सन्नाटे के कारण हथौड़ा चलाने की आवाजें दूर तक जा रही थीं। यह आवाज गश्त कर रहे सिपाहियों ने भी सुनी जिसे सुनकर सिपाही दौड़कर आए। सिपाहियों को देखकर निगरानी के लिये तैनात नंद और किशन तो भाग कर अंधेरे में छिप गए । पर हेमू कालाणी को उन्होंने पकड़ लिया । उन्हे क्रूरतम शारीरिक यातनाएँ दी गई। सिपाहियों ने दो लोगों को भागते देख लिया था उनसे साथियों के नाम पूछे गये । पर उन्होंने कठोर यातना सहकर भी अपने साथियों के नाम न बताये । न नंद और किशन के और न अपने संगठन के अन्य साथियों के ।
'सक्खर की मार्शल ला कोर्ट ने उनपर देशद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इस निर्णय के अनुमोदन के लिए निर्णय सिन्ध प्रांत के हैदराबाद स्थित सेना मुख्यालय के प्रमुख अधिकारी कर्नल रिचर्डसन के पास भेजा गया। अंग्रेजों के समय मार्शल लाॅ कोर्ट के आदेश पर अंतिम निर्णय सेना प्रमुख अधिकारी ही करते थे । इसलिए यह फाइल कर्नल रिचर्डसन के पास गई। कर्नल रिचर्डसन ने हेमू कालाणी को ब्रिटिशराज केलिये खतरनाक शत्रु करार दिया और आजीवन कारावास की सजा को फांसी में बदल दिया। अंततः जनवरी, 1943 को प्रात: सात बजकर 55 मिनट पर हेमू कालाणी को फांसी दी गई।
जब क्राँतिकारी हेमू कालाणी का बलिदान हुआ तब वे मात्र उन्नीस वर्ष के थे । वे पूरे सिन्ध में नौजवानों के आदर्श थे । उनकी स्मृति में डाक टिकिट भी जारी हुआ और विभिन्न नगरों में उनके नाम पर सड़क या कालोनियों के नाम भी हैं।
लेखक - रमेश शर्मा
भारत रत्न सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान की पुण्यतिथि 20 जनवरी पर सादर समर्पित