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ज्ञान ही एकमात्र ऐसा धन है जिसे कोई चुरा नहीं सकता - अज्ञात

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प्रेरक प्रसंग:- दानवीरता

Date : 14-Jan-2025

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन राज्यसभा के सदस्य थे, तब की बात है | एक बार अपने भत्ते का चेक लेने के बाद वे राज्यसभा के कार्यालय में गए | समीप खड़े एक सज्जन से उन्होंने फाउनटेनपेन लेकर वह चेक ‘लोकसेवा मंडल’ के नाम लिख दिया | इन महोदय ने जो देखा, तो उनसे न रहा गया, बोले, “टंडनजी आपको भत्ते के मुश्किल से चार सौ रूपये मिले हैं, उन्हें भी आपने लोकसेवा मंडल को दे डाला ?”

पेन वापस करते हुए टंडनजी कहने लगे, “देखो भाई, मेरे हैं सात लड़के और सातों अच्छी तरह कमाते हैं | मैंने प्रत्येक पर सौ रूपये का ‘कर’ लगा रखा है | इस प्रकार प्रति मास मुझे सात सौ रूपये मिल जाते हैं | इनमें से मुश्किल से तीन-चार सौ रूपये व्यय होते हैं | शेष रकम भी मैं ‘लोकसेवा’ मंडल’ को भेज देता हूँ | इन पैसों का मैं करूंगा भी क्या ?”

 
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