प्रेरक प्रसंग:- साधुता का परिणाम Date : 07-Jan-2025 एक बार भगवान् महावीर कहीं जा रहे थे कि रास्ते में लोगों ने उनके पास आकर उन्हें आगे जाने से यह कहकर माना किया कि वहाँ एक भयानक सर्प रहता है, किन्तु महावीर उनकी बात अनसुनी कर आगे बढ़े | यह देख कुछ लोगों ने उन्हें पागल समझा, तो कुछ ने उन्हें महात्मा माना | तथापि कुछ लोग कौतूहलवश उनके पीछे-पीछे हो चले | थोड़ी ही देर में साँप ने उन्हें देखा और उनके समीप आकर फुफकारकर विष छोड़ना आरंभ किया | किंतु महावीर ज्यों का त्यों खड़े रहे | सर्प ने जब देखा कि उसका विष उन पर प्रभावहीन साबित हुआ है, तो उसने सोचा कि यह व्यक्ति निश्चित ही कोई महात्मा है | फिर भी उसने उनके अंगूठे में काट लिया | अचरज से उसने देखा कि खून के स्थान पर दूध बह रहा है अब तो उसे पूर्णतया विश्वास हो गया और वह भी निश्चल पड़ा रहा | महावीर ने जब विषधर को शांत देखा, तो बोले, “नागराज, मैं तुम्हारे समक्ष आत्मसमर्पण करता हूँ, मेरी देह को अपना आहार मानो|” अब तो सर्प को आत्मग्लानी हुई कि उसने व्यर्थ ही एक देवपुरुष को काटा है | उसने तब बांबी में अपना सिर डाल दिया | लोग यह देख विस्मित हो गए | उन्होंने यह जानने के लिए कि वह मृत है अथवा जीवित, उसे पत्थर से मारना शुरू किया | किन्तु वह शांत ही पड़ा रहा | तब तो लोग उसे नागदेवता मानकर उसकी पूजा करने लगे और सम्मुख दही और दूध की कटोरियाँ रखी जाने लगीं | इससे वहाँ चीटियाँ इकट्टी हो गयीं और सर्प को शांत देखकर चीटियों ने उसे अपना आहार बना लिया | विषधर पर महावीर की साधुता का प्रभाव पड़ चुका था | वह शांत ही रहा और उसने चीटियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया | फलस्वरूप उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई |