तृणं ब्रम्हाविद स्वर्गं तृण तृणं शूरस्य जीवनम् |
जिमाक्ष्स्य तृणं नारी नि: स्पृहस्य तृणं जगत ||
आशय यह है कि जो व्यक्ति ब्रम्हा को जान लेता है, उसे स्वर्ग की कोई इच्छा नहीं रहती, क्योंकि स्वर्ग के सुखों को भोगने के बाद फिर जन्म लेना पड़ता है | ब्रम्हज्ञानी ब्रम्हा में मिल जाता है | अत: उसके लिए स्वर्ग का कोई महत्त्व ही नहीं रह जाता | युद्धभूमि में वीरता दिखानेवाला योद्धा अपने जीवन की परवाह नहीं करता | जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को जीत लेता हैं, उसके लिए स्त्री तिनके के समान मामूली वस्तु हो जाती है | जिस योगी की सभी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं वह सारे संसार को तिनके के समान समझने लगता है |