चाणक्य नीति:- आत्मा को पहचानें Date : 08-Jan-2025 नास्ति कामसमो व्याधिर्नास्ति मोहसमो रिपु: | नास्ति कोप समो वन्ही र्नास्ति ज्ञानातपरं सुखम || यहां आचार्य परम सुख का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए सुख का ही बखान करते हुए कहते हैं कि ‘काम’ के समान व्याधि नहीं है, मोह - अज्ञान के समान कोई शत्रु नहीं है, क्रोध के समान कोई आग नहीं है तथा ज्ञान के समान कोई सुख नहीं है | अर्थात् काम-वासना मनुष्य का सबसे बड़ा रोग है, मोहमाया या अज्ञान सबसे बड़ा शत्रु है, क्रोध के समान कोई आग नहीं है तथा ज्ञान के समान कोई सुख नहीं है | यहां मोह और ज्ञान वेदांत दर्शन के पारिभाषिक शब्द है, माया के भ्रम में जीव आत्मा को भूल जाता है, इसी को मोह, अज्ञान या माया कहा जाता है | आत्मा को जानना ही ज्ञान कहा जाता है |