चाणक्य नीति:- मूर्ख का त्याग करें
Date : 01-Jan-2025
अन्यथा वेदपांडित्यं शास्त्रमाचार मान्यथा |
अन्यथा वदत: शान्तं लोका: क्लिश्यन्ति चान्यथा ||
आचार्य चाणक्य महत्वपूर्ण स्थापित स्थितियों को निरर्थक और बेकार कहनेवालों के प्रति विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि जो लोग वेदों को, पांडित्य को, शास्त्रों कों, सदाचार को तथा शांत मनुष्य को बदनाम करते हैं, वे बेकार कष्ट करते हैं |
अर्थात् यदि कोई वेदों, शास्त्रों, बुद्धिमान, सदाचारी तथा शांत व्यक्ति की बुराई करता है, तो वह मूर्ख है | ऐसा करने से इनका महत्त्व कम नहीं होता | क्योंकि अनेक ऋषि – मुनियों ने वर्षो की साधना के पश्चात् जिस तत्वज्ञान को प्राप्त किया और उसका प्रकाश व्यावहारिक वेद- शास्त्रों के रूप में किया तथा जनसाधारण के कल्याण के लिए जिन नियमों का विधान किया, उस तत्वज्ञान तथा आचार-परंपरा का विरोध करना एवं उन महान तापोधार्मा, परोपकारी धर्मात्मा महात्माओं के प्रति अवज्ञा का भाव दिखाना जहाँ व्यक्ति की मूर्खता की पराकाष्ठा है, वहां परंपरागत एवं लोकप्रतिष्ठित धर्माचरण की उपेक्षा कर समाज को अधर्म के गहरे गर्त में धकेलना भी है | इसे कभी लोकहित की भावना से प्रेरित कर्म नहीं माना जा सकता | अत: वेद-शास्त्र एवं महात्माविरोधी व्यक्ति त्याज्य व निंदनीय हैं | समाज के व्यापक हितों की दृष्टि से ऐसे व्यक्ति हर प्रकार से दुःखदायी ही होते हैं, अत: इनका त्याग करने में ही समाज का हित है |