महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर पपीते का सेवन पाचन क्रिया से लेकर बालों एवं त्वचा के लिए भी काफी फायदेमंद है। पर सही लाभ लेने के लिए जरूरी है कि आप इसे खाने का सही तरीका और समय जानती हों।
पपीता के खेती की शुरुआत सेंट्रल अमेरिका और साउथ मेक्सिको में हुई थी। पर अब पपीता भारत सहित दुनिया भर में खूब खाया जाता है। फिटनेस फ्रीक्स तो इसके दीवाने हैं, क्योंकि इसका स्वाद भी बहुत खास होता है।
स्वाद और पोषण से भरपूर पपीता कई ऐसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों का भंडार है, जो हमारी समग्र सेहत के लिए फायदेमंद हैं। पर इसके फायदे आपको तभी मिल सकते हैं, जब आप इसे सही समय और सही तरीके से खाएं।पपीता न केवल सेहत के लिए, बल्कि सौंदर्य के लिए भी काफी फायदेमंद है। इसे डाइट में शामिल करने के साथ ही त्वचा पर टॉपिकली इस्तेमाल करने से भी कई फायदे मिलते हैं। तो आइए जानते हैं, पोषक तत्वों से भरपूर पपीते के कुछ महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ।
मेथी का इस्तेमाल सब्जी से लेकर पराठे तक में किया जाता है। जहां यह खाने में स्वादिष्ट है, वहीं आयुर्वेद के नजरिए से भी इसके कई फायदे हैं। भारत में सदियों से इसके पत्ते और दानों को आयुर्वेदिक औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। इससे स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में मदद मिल सकती है। वहीं, अगर कोई बीमार है, तो इसे गुण ठीक होने के मदद कर सकते हैं। हां, अगर किसी को कोई गंभीर समस्या है, तो डॉक्टरी इलाज को प्राथमिकता दें।
मेथी एक प्रकार की खाद्य सामग्री है, जिसे कई तरह से आहार में उपयोग किया जा सकता है। जब इसके हरे पत्तों का सेवन सब्जी के रूप में किया जाता है। वहीं, भोजन बनाते समय इसके दानों का भी उपयोग किया जाता है। इसका पौधा दो-तीन फुट लंबा होता है और इसकी फली में छोटे-छोटे पीले-भूरे रंग के सुगंधित दाने होते हैं। भूमध्य क्षेत्र, दक्षिण यूरोप और पश्चिम एशिया में इसकी खेती बहुतायत में होती है।
मधुमेह के मरीजों को खान-पान पर खासतौर से ध्यान देना चाहिए। ऐसे लोग अपनी डाइट में मेथी के दाने शामिल कर सकते हैं। इस बात की पुष्टि करने के लिए एक वैज्ञानिक शोध किया गया, जिसके मुताबिक, मेथी के बीज का सेवन करने से रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही यह टाइप-2 मधुमेह के रोगियों में इंसुलिन प्रतिरोध को भी कम करने का काम कर सकता है । वहीं, एक दूसरे शोध के मुताबिक, मधुमेह पर इसका लाभदायक असर इसमें मौजूद हाइपोग्लिसेमिक प्रभाव के कारण हो सकता है। इसे रक्त में शुगर की मात्रा को कम करने के लिए जाना जाता है । इसलिए, सामान्य रक्त शुगर वालों को इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से बचना चाहिए।
शरीर में कोलेस्ट्रॉल के बढ़ने से कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने के लिए मेथी का उपयोग अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। दरअसल, एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, मेथी के दानों में नारिंगेनिन नामक फ्लेवोनोइड होता है। यह रक्त में लिपिड के स्तर को कम करने का काम कर सकता है। साथ ही इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जिस कारण मरीज का उच्च कोलेस्ट्रॉल कम हो सकता है । इसलिए, कहा जा सकता है कि मेथी के बीज के लाभ कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए हो सकते हैं।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ जोड़ों में सूजन होने लगती है, जिस कारण असहनीय दर्द हो सकता है। इसे जोड़ों का दर्द या फिर अर्थराइटिस कहा जाता है। इससे निपटने के लिए मेथी रामबाण नुस्खा है, जिसे सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा है। मेथी में एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। ये गुणकारी तत्व जोड़ों की सूजन को कम करके अर्थराइटिस के दर्द से राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं। मेथी में आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए, मेथी के औषधीय गुण से हड्डियों व जोड़ों को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं, जिससे हड्डियां स्वस्थ व मजबूत रह सकती हैं ।
हृदय बेहतर तरीके से काम कर सके, उसके लिए मेथी का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। जो लोग नियमित रूप से मेथी का सेवन करते हैं, उन्हें दिल का दौरा पड़ने की आशंका कम हो सकती है और अगर दौरा पड़ भी जाए, तो जानलेवा स्थिति से बचा जा सकता है। विभिन्न शोधों में पाया गया है मृत्यु दर के पीछे दिल का दौरा एक प्रमुख कारण होता है। यह तब होता है, जब हृदय की धमनियों में रुकावट आ जाती है। वहीं, मेथी के दाने इस स्थिति से बचाने में सक्षम हो सकते हैं। अगर किसी को दिल का दौरा पड़ भी जाए, तो मेथी ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को पैदा होने से रोकने का काम कर सकती है। हृदयाघात के दौरान ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस की स्थिति जानलेवा साबित हो सकती है। साथ ही मेथी के बीज शरीर में रक्त प्रवाह को संतुलित रखने में सहायक हो सकते हैं, जिस कारण धमनियों में किसी भी प्रकार की रुकावट पैदा नहीं हो सकती । ऐसे में मेथी दाना खाने के फायदे में हृदय को स्वस्थ रखना भी शामिल है।
अगर कोई वजन कम करना चाहता है, तो इसके लिए मेथी का उपयोग सहायक सिद्ध हो सकता है। दरअसल, मेथी शरीर में फैट को जमा होने से रोकने का काम कर सकती है। इसमें फाइबर की अच्छी मात्रा पाई जाती है, जो आहार को पचाने के साथ ही भूख को शांत रखने का काम कर सकता है। इससे वजन को बढ़ने से रोका जा सकता है । इसके अलावा, मेथी में विभिन्न प्रकार के पॉलीफेनॉल्स पाए जाते हैं, जिससे वजन कम हो सकता है । इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि मेथी खाने के फायदे वजन घटाने के लिए हो सकते हैं।
उच्च रक्तचाप कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकता है, जिनमें हृदय की समस्या भी शामिल है। मेथी के औषधीय गुण इस समस्या को कम करने में मदद कर सकते हैं। एक वैज्ञानिक शोध के मुताबिक, मेथी में एंटीहाइपरटेंसिव प्रभाव पाया जाता है, जो रक्तचाप की समस्या को कम करने का काम कर सकता है ।
कई वैज्ञानिक शोधों में इस बात का दवा किया गया है कि किडनी के लिए मेथी फायदेमंद है। मेथी को अपने भोजन में शामिल करने से किडनी अच्छी तरह काम कर सकती है। मेथी के दानों में पॉलीफेनोलिक फ्लेवोनोइड पाया जाता है, जो किडनी को बेहतर तरीके से काम करने में मदद करता है। साथ ही यह किडनी के आसपास एक रक्षा कवच का निर्माण करता है, जिससे इसके सेल नष्ट होने से बच जा सकते हैं। इस बात की पुष्टि एनसीबीआई की ओर से उपलब्ध एक शोध से होती है ।
मेथी के नुकसान
इसमें कोई दो राय नहीं कि मेथी के दाने सेहत के लिए लाजवाब हैं। इसे अपने भोजन में शामिल करने से कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ हो सकते हैं, लेकिन इतने फायदों के साथ-साथ इसके नुकसान भी हैं। कुछ मामलों में इसके सेवन से कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
दस्त
हालांकि, पाचन तंत्र के लिए मेथी के दाने अच्छे होते हैं, लेकिन कई बार यह दस्त का कारण भी बन जाते हैं। जरूर से ज्यादा मेथी खाने से पेट खराब हो सकता है और दस्त लग जाते हैं। अगर स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसे खाने से पेट खराब होता है, तो उससे शिशु को भी दस्त लग सकते हैं। इसलिए, ऐसे कोई लक्षण नजर आते ही इसका सेवन बंद कर दें।
गर्भाशय संकुचन
जैसा कि इस लेख में पहले बताया गया है कि मेथी दाने की तासीर गर्म होती है। अगर गर्भवती महिला इसका अधिक सेवन करती है, तो समय से पहले गर्भाशय संकुचन जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है। मेथी के दानों में ऑक्सीटोसिन होता है, जो गर्भाशय संकुचन का कारण बनता है। इसलिए, गर्भवती महिलाएं मेथी दाने का सेवन डॉक्टर की सलाह पर ही करें।
एलर्जी
कुछ लोगों को मेथी दाने के सेवन से एलर्जी हो सकती है। यह एलर्जी चेहरे पर सूजन के तौर पर नजर आ सकती है। वहीं, कुछ को शरीर पर रैशेज हो सकते हैं, सांस फूलने जैसी समस्या हो सकती है और कुछ बेहोश तक हो जाते हैं। इसके अलावा, कई लोगों को मेथी के सेवन से छाती में दर्द जैसी शिकायत होने लगती है। यह तासीर में गर्म होती है, इसलिए कुछ लोगों को बवासीर, गैस व एसिडिटी तक की शिकायत हो जाती है ।
बच्चों के लिए हानिकारक
बच्चों के लिए मेथी दाने को सुरक्षित नहीं माना गया है। यह तो हम पहले ही बता चुके हैं कि इसे खाने से दस्त लग सकते हैं। वहीं, इसकी हर्बल चाय पीना भी बच्चों के लिए ठीक नहीं है, क्योंकि इससे उनकी मस्तिष्क की क्षमता पर असर पड़ सकता है। इसलिए, बेहतर यही है कि मेथी के सप्लीमेंट्स बच्चों को न दें। अगर देना ही चाहते हैं, तो डॉक्टर की सलाह पर सब्जियों में डालकर दे सकते हैं।
बच्चे एग्जाम फोबिया के चलते कई बार इतने परेशान हो जाते हैं कि इससे पहले ही उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है. इसके लिए बच्चे को समझदारी भरी सलाह देने के साथ साथ ऐसी डाइट की जरूरत पड़ती है जो तनाव दूर करके बच्चे के दिमाग के फंक्शन को तेज कर सके।
एग्जाम का टाइम नजदीक आ गया है. छोटी कक्षाओं की परीक्षाओं के साथ साथ बोर्ड एग्जाम भी आ रहे हैं और तैयारी के बावजूद एग्जाम का तनाव बच्चों के साथ साथ बच्चों के पेरेंट्स पर भी देखने को मिलता है. कई बच्चे एग्जाम फोबिया के चलते इतने परेशान हो जाते हैं कि इसका बुरा असर उनकी सेहत पर पड़ने लगता है. कई बार नींद की कमी और तैयारी पूरी ना होने के डर से भी उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है और ऐसे में हर मां बाप का फर्ज बनता है कि वो अपने बच्चे की सेहत का पूरा ख्याल रखें ताकि बच्चा अपने एग्जाम में बेहतर प्रदर्शन कर पाए. इसके लिए बच्चे को समझदारी भरी सलाह देने के साथ साथ उसे स्ट्रेसफ्री बनाने के लिए ऐसी डाइट की जरूरत पड़ती है जो तनाव दूर करके बच्चे के दिमाग के फंक्शन को तेज कर सके. चलिए जानते हैं कि अच्छी डाइट की मदद से कैसे तनाव को दूर किया जा सकता है।
अन्नानास भी तनाव दूर करने में काफी मदद करता है. इसमें पाया जाने वाला विटमिन-सी टेस्ट बड्स को स्मूद करता है और इसके पोषक तत्व से दिमाग पर पॉजिटिव असर पड़ता है और स्ट्रेस से राहत दिलाने में मददगार हो सकता है।
केला
बच्चे को रोज एक केला खिलाने से भी उसका तनाव कम हो सकता है और वो रिलेक्स फील करेगा. दरअसल, केले में भरपूर मात्रा में पोटैशियम, मैग्निशियम और आयरन होता है और इसके सेवन से बच्चे के शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा और ऑक्सीजन का स्तर भी बढ़ जाएगा. इससे दिमाग की तनाव भरी कोशिकाएं शांत होंगी और तनाव कम हो सकता है.
चांवल
चांवल प्री बायोटिक होता है जिससे पेट हल्का और स्मूद रहता है और नींद भी अच्छी आती है. चावल खाने से पेट में ब्लोटिंग की दिक्कत खत्म हो जाती है जिससे स्ट्रेस भी कम होता है. वहीं नींद पूरी होने के बाद बच्चे का तनाव कम होगा.
सुबह जल्दी उठना मनुष्य को स्वस्थ, धनी और बुद्धिमान बनाता है। स्वस्थ रहने के लिए सुबह जल्दी उठने की आदत डालें। यह दिमाग, शरीर और आत्मा को तरोताजा करने के साथ इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करता है। सूर्योदय से पहले उठने से शरीर और दिमाग फ्रेश रहता है और कब्ज व अपच की समस्या भी नहीं होती।
सुबह जल्दी उठने से और भी अनेक फायदे हैं या फिर यह कहे कि अनगिनत फायदे हैं। सुबह उठने से हमारा शरीर स्वस्थ और फिट रहता है।
सूरज निकलने से पहले उठना बॉडी, माइंड और स्पिरिट के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इस वक्त उठने से माइंड और बॉडी में ब्लड सर्कुलेशन पॉजिटिव रहता है।
जबकि सूरज निकलने के बाद उठना नेगेटिव ब्लड सर्कुलेशन का कारण बनता है। सूर्योदय से पहले उठने से शरीर और दिमाग फ्रेश रहता है और कब्ज व अपच की समस्या भी नहीं होती।
फिर पूरा दिन आपका मूड फ्रेश रहता है। इससे आपकी पावर व कपैसिटी बढ़ती है, याददाश्त तेज होती है और नजर भी कमजोर नहीं होती।
अगर आप जल्दी उठेंगे तो सोएंगे भी जल्दी ही, जो सेहत के लिए और बेहतर है।
चिरचिटा एक गुणकारी पौधा है चिरचिटा पौधे को लटजीरा, चिचींडा और चिरचिटा पौधे के नाम से भी जाना जाता है। लटजीरा और चिरचिटा इस पौधे के हिंदी नाम है। इसे गांव और शहरों के अधिकतर इलाकों में इसी नाम से जाना जाता है। यह पौधा बरसात के समय स्वयं उग जाता है। यह जंगली झाड़ी के समान उग जाता है। यह पौधा खाली जमीन में कहीं पर भी उग जाता है। यह पौधा आपने अपने घर के आस-पास मैदान में या रास्ते में जरूर देखा होगा।
चिरचिटा के पत्ते को तोड़कर इसका रस निकाल लीजिए और इसके रस को आप अगर दांतों में लगाते हैं, तो आपको दांत संबंधी समस्या में फायदा पहुंचता है। इससे दांत का दर्द ठीक हो जाता है।
चिरचिटा के तने से दातुन बना सकते हैं और इस दातुन को रोजाना इस्तेमाल कर सकते हैं। इस दातुन से दांत हमेशा मजबूत रहेंगे और टूटते नहीं है। चिरचिटा के पौधे की दातुन करने से दांतों का हिलना, मुंह से बदबू आना, मसूड़ों की कमजोरी ठीक हो जाती है और दांत साफ रहते हैं।
चिरचिटा चर्म रोग में बहुत लाभ देता है। इसके पत्तों को पीसकर फोड़े फुंसी में लगाना चाहिए। जिससे फायदा मिलता है।
मुंह के छालों में चिरचिटा का उपयोग किया जा सकता है। चिरचिटा के पत्ते का काढ़ा बनाकर पिया जा सकता है, जिससे मुंह के छालों की परेशानी ठीक हो जाती है।
चिरचिटा की पत्ती को पीसकर और गर्म करके संधि शोथ ग्रस्त भाग में लगाने से लाभ मिलता है।
चिरचिटा का उपयोग चोट में किया जा सकता है। इसके प्रयोग से चिरचिटा के पत्तों से रस निकालकर चोट लगे स्थान पर लगाना चाहिए, जिससे खून बहना बंद हो जाता है।
पुराने घाव को चिरचिटा के पत्तों के रस से ठीक किया जा सकता है और घाव भर जाता है।
आंखें अनमोल होती हैं, इसलिए उसका ख्याल भी हमें बखूबी रखना होगा. गर्मी की तेज तपिश और धूप हमारी आंखों को कितना नुकसान पहुंचा सकती है और उससे बचाव में हमें क्या सावधानी बरतनी चाहिए, इस बात को जान लेना हमारे लिए बेहद जरूरी है.
इस बदलते मौसम और तेज धूप भरी गर्मी में आंखों के बचाव और उसकी देखभाल के लिए अहम जानकारी साझा की है, जिससे हम अपनी अनमोल आंखों को इस गर्मी में नुकसान पहुंचने से बचा सकते हैं.
सूरज की तेज धूप और उसमें से निकलने वाली अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से आंखों का बचाव भी बेहद जरूरी है. सूरज की अल्ट्रा वॉयलेट किरणें हमारी आंखों को नुकसान पहुंचा सकती हैं, इसलिए घर से बाहर निकलते समय धूप के चश्मे जरूर पहनें.
सन ग्लास जहां धूल के कण को आंखों में जाने से रोकता है, वहीं सूरज की अल्ट्रा किरणों से भी काफी हद तक बचाव करता है तेज धूप से आंखों के बचाव के लिए सिर पर टोपी का इस्तेमाल भी करें. ऐसा करने से सूरज की किरण आपके चेहरे पर पहुंच नहीं बना पाती. साथ ही आपकी आंखों को उसकी किरणों से सुरक्षित रखती है.
खाने के साथ-साथ फल का सेवन करना भी जरूरी है, लेकिन कई बार वक्त की कमी और फल छिलने के आलस के कारण लोग इन्हें खाने से बचते हैं। ऐसे में एक फल ऐसा भी है, जो बिना मेहनत के खाया भी जा सकता है और गुणों का खजाना भी है। हम यहां बात कर रहे हैं, अंगूर की। ये न सिर्फ स्वादिष्ट होता हैं, बल्कि अंगूर खाने के फायदे भी अनेक हैं।
अंगूर के प्रकार
अंगूर के कई प्रकार हैं। अंगूर के कुछ प्रकारों में बीज होते हैं और कुछ में नहीं। जिन अंगूरों से वाइन बनाई जाती है, आमतौर पर उन्हें खाने के लिए उपयोग नहीं किया जाता है
सुल्ताना – अंगूरों का सबसे सामान्य प्रकार है थॉम्पसन, जिसे सुल्ताना भी कहते हैं। ये हरे, अंडाकार व मध्यम आकार के होते हैं । इनमें बीज नहीं होते हैं और ये मीठे व रसदार होते हैं।
मेनिन्डी अंगूर- सुल्ताना की तरह ही मेनिन्डी अंगूर बिना बीज के होते हैं। हालांकि, इसका स्वाद सुल्ताना की तुलना में थोड़ा तीव्र होता है और ये सिर्फ अंगूर के मौसम में ही होते हैं।
वाल्थम – ये सुनहरे हरे रंग के अंगूर होते हैं। आकार में थोड़े बड़े होते हैं और इनमें बीज भी होता है।
फ्लेम सीडलेस – ये लाल और गोल आकार के होते हैं और ये हल्के स्वाद में खट्टे हो सकते हैं।
रूबी सीडलेस – ये हल्के लाल रंग व मध्यम आकार के होते हैं। इनकी त्वचा कोमल होती है और इसमें भी बीज नहीं होते हैं।
कार्डिनल – ये चेरी-लाल से लाल-बैंगनी रंग के हो सकते हैं। ये अंडाकार आकार के होते हैं और इनमें बीज भी होता है।
रेड ग्लोब – ये लाल रंग के बीज वाले बड़े अंगूर होते हैं।
पर्पल क्रोनिकोन -ये बैंगनी अंगूर होते हैं। ये लंबे अंडाकार आकार, मोटी त्वचा और बीज के साथ गूदा वाले अंगूर हैं।
मस्कट – ये नीले-काले रंग में मध्यम आकार के होते हैं। इनमें बीज होता है और ये काफी रसदार होते हैं।
नोट : देखा जाए तो रंग के अनुसार अंगूर मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं – हरा, लाल व काला/नीला। सामान्यतः बाजार में हरे और काले अंगूर ज्यादा मिलते हैं। कई बार लोग हरे अंगूर के फायदे के लिए उसी का सेवन ज्यादा करते हैं।
अंगूर खाने के फायदे जानने से पहले इसमें मौजूद औषधीय गुणों के बारे में जानते हैं।
अंगूर के औषधीय गुण
अंगूर के अधिकांश भाग उपयोगी होते हैं। मुख्य रूप से अंगूर को एक अलग तरह के प्राकृतिक उत्पादों के स्रोत के रूप में माना जाता है। अंगूर कई फाइटोकेमिकल्स का एक प्रमुख स्रोत है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध में यह बात सामने आई है कि इसका सेवन कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोक सकता है। हृदय संबंधित रोग और अन्य बीमारियों से बचाव कर सकता है। इसका मुख्य घटक रेस्वेराट्रोल यानी एक प्रकार का पॉलीफेनोल है, जो मानव रोगों में विभिन्न औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि अंगूर का उपयोग कई बीमारियों के खिलाफ दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है। इस लेख में हम अंगूर खाने के फायदे के बारे में विस्तार से जानेंगे । आगे जानिए कि अंगूर खाने से क्या फायदा होता है।
अंगूर के फायदे -
दिखने में भले ही यह छोटा-सा फल है, लेकिन अंगूर के गुण अनेक हैं। स्वास्थ्य से लेकर त्वचा की बात करें या बालों की, इसमें मौजूद गुणकारी तत्व हर तरह से लाभकारी हो सकते हैं। नीचे जानिए अंगूर खाने से क्या होता है:
1. स्तन कैंसर से बचाव के लिए अंगूर के गुण
कई लोगों को जानकर हैरानी हो सकती है कि फेफड़ों यानी लंग कैंसर के बाद स्तन कैंसर महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौतों का दूसरा प्रमुख कारण है। ऐसे में वक्त रहते इस समस्या पर ध्यान देना आवश्यक है। इससे बचाव के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल और डाइट मददगार साबित हो सकते हैं । ऐसे में अगर डाइट में अंगूर को शामिल किया जाए, तो स्तन कैंसर से बचाव हो सकता है। दरअसल, एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित स्टडी के अनुसार, अंगूर में मौजूद एंटीऑक्सीडैंट में एंटी-कैंसर गुण होते हैं, जो स्तनों के कैंसर से बचाव करने में सहायक हो सकते हैं। अंगूर कैंसर सेल्स के प्रसार को रोकने में सहायक हो सकता है। हालांकि, सिर्फ अंगूर का ही सेवन नहीं, बल्कि इसके साथ एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना भी जरूरी है । इसके अलावा, अगर किसी को पहले से ही कैंसर है, तो उनके लिए डॉक्टरी चिकित्सा ही पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि अंगूर कैंसर से बचाव कर सकता है, लेकिन इसे कैंसर का इलाज न समझे।
2. आंखों के लिए ग्रेप्स खाने के फायदे
अंगूर के फायदे की बात करें, तो अंगूर का सेवन आंखों के लिए भी लाभकारी हो सकता है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित स्टडी में चूहों पर किए गए अध्ययन में अंगूर युक्त डाइट को आंखों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी देखा गया है। अंगूर ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के कारण होने वाले रेटिनल डिजनरेशन यानी अंधेपन की समस्या को रोकने में सहायक पाया गया है। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और सूजन आंखों की समस्याओं के मुख्य कारणों में से एक है। ऐसे में अंगूर में मौजूद पॉलीफेनोल्स, इन कारकों से लड़ने में मदद कर सकते हैं, जिससे दृष्टि स्वास्थ्य को बढ़ावा मिल सकता है। इन पॉलीफेनोल्स को फोटोरिसेप्टर्स यानी आंखों की खास कोशिकाएं की सुरक्षा के लिए भी पाया गया था |
इतना ही नहीं अंगूर में मौजूद रेस्वेराट्रोल भी उम्र के कारण होने वाली आंखों की समस्या यानी मैक्युलर डिजनरेशन के लिए भी लाभदायक हो सकता है। इसके अलावा, मोतियाबिंद से बचाव करने में भी सहायक हो सकता है |
3. हड्डियों के लिए ग्रेप्स के फायदे
अंगूर हड्डियों के लिए भी एक गुणकारी फल हो सकता है। दरअसल, चूहों पर किए गए परीक्षण में अंगूर को हड्डियों के लिए लाभकारी पाया गया है। ऐसा अंगूर के बीज में मौजूद प्रोएंथोस्यानिडींस नामक पॉलीफेनोल के कारण हो सकता है, जो हड्डियों की मजबूती बढ़ाने में सहायक हो सकता है |अंगूर के बीज भी काफी गुणकारी हो सकते हैं। एक अन्य चूहे के अध्ययन में अंगूर के बीजों में मौजूद प्रोएंथोस्यानिडींस हड्डी निर्माण को बढ़ावा देने के लिए सहायक पाया गया है। अध्ययन का निष्कर्ष है कि जब उच्च कैल्शियम आहार के साथ अंगूर का सप्लीमेंट लिया जाए, तो हड्डी के नुकसान का जोखिम कम हो सकता है |इतना ही नहीं प्रोएंथोस्यानिडींस युक्त अंगूर के बीज ऑस्टियोअर्थराइटिस जैसी हड्डी की समस्या के लिए भी लाभकारी हो सकता है और हड्डियों के स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकता है । इसके अलावा, एक अन्य अध्ययन भी हैं, जिसमें अंगूर के सेवन से चूहों के बोन क्वालिटी में सुधार की बात सामने आई है । यहां एक बात तो सामने आ चुकी है कि अंगूर के साथ-साथ अंगूर के बीज भी लाभकारी हो सकते हैं।
4. मधुमेह के लिए अंगूर के गुण
डायबिटीज की समस्या में मरीजों को फल खाने को लेकर काफी उलझन हो सकती है। ऐसे में अगर किसी को फल खाने की इच्छा हो, तो वो अंगूर् का सेवन कर सकते हैं। दरअसल, स्टडीज में ये बात सामने आयी है कि अंगूर में ग्लाइसेमिक लोड और ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है। ऐसे में अंगूर को एंटी-डाइबिटिक आहार में संतुलित मात्रा में शामिल किया जा सकता है। अंगूर में अन्य महत्वपूर्ण यौगिक, जिसमें रेस्वेराट्रॉल, क्वेरसेटिन और कैटेचिन शामिल हैं, जो ब्लड शुगर लेवल को कम करने में सहायक हो सकते हैं । अगर डायबिटीज में खाए जाने वाले फलों की बात की जाए, तो अंगूर उन्हीं फलों में से एक है, लेकिन ध्यान रहे कि मधुमेह के मरीज फलों का जूस लेने से बचें । इसके अलावा, अंगूर के सेवन से ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से लड़ने और मधुमेह के लक्षणों में सुधार करने में मदद मिल सकती है। लाल अंगूर में मौजूद पॉलीफेनोल एंटी-डाइबिटिक एजेंट की तरह काम कर सकते हैं । सिर्फ अंगूर ही नहीं, बल्कि इसके साथ ही अन्य अध्ययनों से पता चलता है कि अंगूर के बीज भी लाभकारी हो सकते हैं। दरअसल, अंगूर के बीजों में मौजूद प्रोएन्थोसाइनिडिन्स पेरीफेरल न्यूरोपैथी यानी नसों की समस्या को रोकने में भी सहायक हो सकता है। यह समस्या भी डायबिटीज की गंभीर जटिलताओं में से एक है । खासतौर पर हरे अंगूर की जगह काले अंगूर का सेवन मधुमेह में उचित हो सकता है। इनकी मिठास भी कम होती है और बीज युक्त होने के कारण एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होते हैं। फिर भी इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करें और जरूरत पड़े, तो डॉक्टर से इसकी मात्रा के बारे में भी राय-परामर्श जरूर लें।
5. कोलेस्ट्रॉल के लिए अंगूर खाने के फायदे
कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से शरीर में कई तरह की समस्याएं जैसे – दिल की बीमारी, डायबिटीज और ऐसी ही कई परेशानियां हो सकती हैं। इसलिए, कोलेस्ट्रॉल का सही रहना बहुत जरूरी है । कोलेस्ट्रॉल को संतुलित रखने के लिए अंगूर को आहार में शामिल किया जा सकता है। अंगूर में मौजूद पॉलीफेनोल्स में हायपोलिपिडेमिक यानी कोलेस्ट्रॉल को कम करने का गुण पाया गया है। इसके सेवन से शरीर से हानिकारक कोलेस्ट्रॉल (LDL) कम हो सकता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL) में वृद्धि हो सकती है। चाहें तो, लाल अंगूर के जूस का सेवन भी किया जा सकता है। इसके सेवन से भी शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल की वृद्धि हो सकती है ।
6. दमा के लिए अंगूर के फायदे
दमा के मरीजों के लिए मौसम में बदलाव, धूल-मिट्टी और प्रदूषण काफी दुखदायी हो सकता है । ऐसे में डाइट में थोड़े अंगूर शामिल करके दमा के लक्षणों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। दरअसल, वायुमार्ग में सूजन दमा का एक बहुत बड़ा कारण है। ऐसे में इस विषय में किए गए शोध में यह पाया गया है कि अंगूर के बीज में मौजूद प्रोएंथोसायडीन सूजन को कम कर सकता है और दमा के लिए एक अच्छा उपचार साबित हो सकता है । हालांकि, ये अध्ययन अंगूर के बीज को लेकर है और अंगूर से संबंधित शोध की अभी जरूरत है, इसलिए अस्थमा के गंभीर मरीज अंगूर के सेवन से पहले एक बार डॉक्टरी सलाह भी लें, क्योंकि सभी की शारीरिक स्थिति और रोग-प्रतिरोधक क्षमता एक जैसी नहीं होती है।
7. कब्ज के लिए अंगूर के गुण
कई लोग कब्ज की समस्या की शिकायत करते हैं। इससे निजात पाने के लिए फाइबर युक्त डाइट लेनी चाहिए | वहीं, अंगूर में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इससे कब्ज की परेशानी से कुछ हद तक राहत मिल सकती है । हालांकि, अगर किसी को कब्ज की समस्या बार-बार हो रही है, तो वो एक बार डॉक्टरी सलाह भी जरूर ले।
8. अल्जाइमर के लिए अंगूर के गुण
भूलने की आदत आम है, लेकिन अगर यही ज्यादा होने लगे, तो इसे खतरे की घंटी समझना चाहिए। कुछ लोगों को उम्र के साथ-साथ भूलने की बीमारी होने लगती है, जिसे अल्जाइमर कहते हैं। हालांकि, इस बीमारी के कारण का अभी तक कोई सटीक पता नहीं चल पाया है, लेकिन बढ़ती उम्र और जीन्स इसके कारण हो सकते हैं । ऐसे में अंगूर के सेवन से इस बीमारी के जोखिम से बचा जा सकता है। बूढ़े चूहों पर किए गए अध्ययनों में लाल अंगूर् का जूस उनकी याददाश्त में सुधार करता हुआ पाया गया है। इसके अलावा, रेड ग्रेप से बनी रेड वाइन में कुछ विशेष पॉलीफेनोल्स जैसे- रेस्वेराट्रोल और प्रोएन्थोसाइनिडिन होते हैं, जो डिमेंशिया जैसी उम्र से संबंधित न्यूरोनल कमियों के जोखिम को कम कर सकते हैं। इन परिणामों से पता चलता है कि लाल अंगूर का रस, जिसमें पॉलीफेनोलिक यौगिक जैसे – फ्लेवोनोइड्स और रेस्वेराट्रोल्स एंटीऑक्सीडेंट मौजूद हैं, अल्जाइमर के उपचार में काफी हद तक प्रभावी हो सकते हैं । रेस्वेराट्रोल्स एक शक्तिशाली एजेंट की तरह काम कर न सिर्फ अल्जाइमर रोग से बचाव या उसके प्रभाव को कम करने में सहायक हो सकता है, बल्कि संज्ञानात्मक नुकसान से भी सुधार करने में सहायक हो सकता है । इससे यह बात सिद्ध होती है कि हरे अंगूर की तरह ही स्वास्थ्य के लिए लाल अंगूर के फायदे के साथ-साथ रेड वाइन के फायदे भी हो सकते हैं। हम स्पष्ट कर दें कि हमारा उद्देश्य अल्कोहल सेवन को बढ़ावा देना नहीं है।
9. ब्लड प्रेशर के लिए अंगूर के फायदे
अंगूर के सेवन से सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर कम हो सकता है । हालांकि, ब्लड प्रेशर की दवाइयों के मुकाबले इसका असर कम होता है। साथ ही अंगूर के बीज का अर्क, खासकर कम उम्र और मोटापे के शिकार लोगों में ब्लड प्रेशर की समस्या के लिए प्रभावकारी हो सकते हैं । साथ ही एक और बात सामने आई है कि लाल अंगूर के जूस का सेवन करने से आराम करते व्यक्ति के ब्लड प्रेशर में सुधार हो सकता है। साथ ही एक्सरसाइज करने के बाद ब्लड प्रेशर में भी सुधार आ सकता है, लेकिन यह सब कुछ व्यक्ति के यह शुरुआती बीपी पर निर्भर करता है । कई अध्ययनों में अंगूर में हाइपोटेंसिव प्रभाव पाया गया है । इसलिए, निम्न रक्तचाप वाले लोग इसका सेवन सावधानी से करें या किसी विशेषज्ञ की राय लेकर करें।
10. ह्रदय स्वास्थ्य के लिए अंगूर खाने के फायदे
अंगूर में मौजूद फ्लेवोनोइड्स, फेनोलिक एसिड और रेस्वेराट्रोल हृदय रोग से बचाने में मदद कर सकते हैं। अंगूर में मौजूद पॉलीफेनोल्स में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। ये खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद कर सकते हैं, जिससे एथेरोस्क्लेरोसिस (एक गंभीर हृदय स्थिति) को रोका जा सकता है । इसके अलावा, अंगूर में मौजूद रेसवेरेट्रॉल में भी कार्डिओ प्रोटेक्टिव गुण होता है, जिस कारण हृदय रोग का जोखिम कम हो सकता है । हालांकि, हृदय रोग के मरीज डॉक्टरी परामर्श के अनुसार दवाई लेने को पहली प्राथमिकता दें और उसी अनुसार अंगूर को अपने डाइट में शामिल करें।
11. गठिया के लिए अंगूर के फायदे
जोड़ों में दर्द होना गठिया के सामान्य लक्षणों में से एक है। इस स्थिति में अगर पहले से अंगूर का सेवन किया जाए, तो रूमेटाइड अर्थराइटिस , जो कि गठिया का ही एक प्रकार है, उससे बचा जा सकता है। दरअसल, अंगूर में मौजूद रेस्वेराट्रोल्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण गठिया से राहत दिला सकते हैं | इसके साथ ही अंगूर के बीज में मौजूद पॉलीफेनोल में एंटी-अर्थराइटिक गुण मौजूद होते हैं, जो गठिया से बचाव करने में सहायक हो सकते हैं ।
12. अंगूर में एंटीऑक्सीडेंट गुण
एंटीऑक्सीडेंट शरीर के लिए जरूरी है। शरीर को घातक बीमारियों से बचाने के लिए एंटीऑक्सीडेंट की आवश्यकता होती है। एंटीऑक्सीडेंट कई फलों और सब्जियों में पाया जाता है और अंगूर उन्हीं में से एक है। अंगूर में कई प्रकार के फाइटोकेमिकल्स होते हैं, जैसे कि फेनोलिक एसिड ,स्टिलबेन ,एंथोसायनिन और प्रोएंथोसायडीन ,ये सभी मजबूत एंटीऑक्सीडेंट हैं । यही कारण है कि अंगूर की गिनती हाई एंटीऑक्सीडेंट फलों में की जाती है |
13. किडनी के लिए अंगूर के फायदे
अगर बात करें किडनी की समस्या की तो अंगूर बीज के पाउडर का सेवन किडनी की समस्या से बचाव करने में सहायक हो सकता है। इस विषय में हुई एक स्टडी के मुताबिक, जिन किडनी पेशेंट्स को अंगूर के बीज का सप्लीमेंट दिया गया, उनमें सुधार पाया गया था। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण किडनी की समस्या से बचाव करने में सहायक हो सकते हैं । इसके अलावा, अगर मोटापे और डायबिटीज का शिकार व्यक्ति हर रोज अंगूर के पाउडर का सेवन करे, तो वो भी किडनी की बीमारी से बच सकता है । हालांकि, यह अंगूर के बीज के पाउडर को लेकर किया गया शोध है। अंगूर सीधे तौर पर किडनी के लिए फायदेमंद हो सकता है या नहीं इस बारे में वैज्ञानिक शोध की आवश्यकता है, लेकिन किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीज अपनी डाइट में अंगूर को शामिल कर सकते हैं । चाहें तो इस बारे में एक बार डॉक्टरी सलाह भी ले सकते हैं।
14. पेट के लिए अंगूर
हाई फाइबर डाइट के साथ अगर आहार में अंगूर शामिल किया जाए, तो यह पेट के लिए फायदेमंद हो सकता है। सीमित अवशोषण और पाचन होने के बावजूद, अंगूर के पॉलीफेनोल्स पेट को पैथोजन्स (- वायरस, बैक्टीरिया संक्रमण पैदा करने वाले एजेंट), ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और सूजन से बचाव करने में सहायक हो सकते हैं। इसके अलावा, अंगूर में मौजूद पॉलीफेनोल्स एककरमानसिया मुसिनिफिला जैसे बैक्टीरिया, जो आंतों के लिए लाभकारी होते हैं, उनके विकास को बढ़ावा दे सकते हैं। इससे पाचन में सुधार हो सकता है। चूहों पर किए गए अध्ययन के अनुसार, अंगूर के अर्क आंतों के संक्रमण, चयापचय संबंधी विकार और मोटापे की समस्या से बचाव कर सकते हैं |
15. वजन कम करने के लिए अंगूर
अगर बात की जाए वजन कम करने की, तो एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध में, फ्लेवोनोल्स ,फ़्लेवन-3-ओल्स , एंथोसायनिन और फ्लेवोनोइड पॉलिमर से समृद्ध खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन वजन को संतुलित रखने में सहायक हो सकता है। ऐसे में अगर अंगूर की बात करें, तो अंगूर में भी फ्लेवोनोइड जैसे- एंथोसायनिन मौजूद होते हैं, इस स्थिति में अंगूर को एक हेल्दी स्नैक्स के तौर पर संतुलित मात्रा में शामिल किया जा सकता है । डॉक्टरों का कहना है कि अंगूर में कैलोरी की मात्रा ज़्यादा नहीं होती है, हरे की तुलना मे काले अंगूर में कैलोरी कम ही होती हैं, हालांकि आप दोनों ही तरह के अंगूर को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। वहीं, सीधे तौर पर अंगूर खाने से वजन कम हो सकता है या नहीं इस विषय पर सटीक शोध की कमी है। वहीं, अंगूर में कैलोरी की मात्रा ज़्यादा नहीं होती है, हरे की तुलना मे काले अंगूर में कैलोरी कम ही होती हैं, हालांकि आप दोनों ही तरह के अंगूर को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। हालांकि, अंगूर का सेवन संतुलित मात्रा में और जरूरत पड़े तो डायटीशियन के सलाह अनुसार ही करना बेहतर है।
16. त्वचा के लिए अंगूर के फायदे
अंगूर खाने के लाभ में बेहतर त्वचा भी शामिल है। दरअसल, अंगूर में मौजूद रेस्वेराट्रॉल (resveratrol) यौगिक बहुत ही अहम् भूमिका निभा सकता है। यह यौगिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस का मुकाबला कर सकता है। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस एक कारक है, जो त्वचा के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। ऐसे में अंगूर एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम कर सकता है। यह न सिर्फ स्किन एजिंग, बल्कि स्किन कैंसर से भी बचाव कर सकता है ।
इतना ही नहीं इसमें मौजूद पॉलीफेनोल सनबर्न से बचाव कर सकते हैं और अल्ट्रावॉयलेट के प्रभाव को कम कर सकते हैं । इसके साथ ही अंगूर कील-मुंहासों के लिए एंटीऑक्सीडेंट थेरेपी की तरह भी काम कर सकता है |हालांकि, इस संबंध में अभी और शोध की जरूरत है, लेकिन त्वचा को स्वस्थ रखने के लिए अंगूर का सेवन किया जा सकता है।
17. बालों के लिए अंगूर
बालों के लिए अगर अंगूर की बात करें, तो अंगूर एक पौष्टिक फल है ,जिसका सेवन बालों को स्वस्थ बनाने में सहायक हो सकता है । इसके साथ ही अंगूर के बीज में मौजूद प्रोएंथोस्यानिडींस बालों को घना करने में मददगार साबित हो सकते हैं । ये पॉलीफेनोल अंगूर के छिलके में भी मौजूद होते हैं। हालांकि, सीधे तौर पर इस विषय में कोई सटीक शोध उपलब्ध नहीं है, लेकिन पोषण प्रदान करने के लिए इसका सेवन किया जा सकता है, क्योंकि बालों को स्वस्थ रखने के लिए डाइट भी अहम होती है।
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फायदों के बाद, अब जानते हैं कि अंगूर में कौन सा विटामिन पाया जाता है।
अंगूर के पौष्टिक तत्व –अंगूर के कई सारे फायदे जानने के बाद अब वक्त है इसमें मौजूद पौष्टिक तत्वों के बारे में जानने की। अंगूर के फायदे और पौष्टिक तत्वों के बारे में जानने के बाद इससे जुड़ी कुछ और जानकारी हासिल करते हैं।8
अंगूर को लंबे समय तक सुरक्षित कैसे रखें
सबसे पहले ऐसे अंगूरों का चुनाव करें, जो ताजे हों। नर्म, गले हुए और भूरे अंगूरों को खरीदने से बचें। ऐसे अंगूर सड़े हुए हो सकते हैं।
अंगूर को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए किसी प्लास्टिक जिपर बैग में या प्लास्टिक में डालकर फ्रिज में रखें।
अंगूरों को कभी भी धोकर फ्रिज में न रखें, धोकर रखने से अंगूर जल्दी खराब हो सकते हैं।
अंगूरों को खाने के तुरंत पहले धोएं।
अंगूर खरीदने के दो से तीन दिन के अंदर उन्हें खा लें।
लेख के इस भाग में हम अंगूर के औषधीय गुण के लिए उसे उपयोग करने के अलग-अलग तरीके बता रहे हैं।
अंगूर का उपयोग –
अंगूर के औषधीय गुण को अवशोषित करने के लिए व इसके स्वाद को बढ़ाने के लिए इसे कई तरीकों से खाया जा सकता है। नीचे जानिए अंगूर खाने के अलग-अलग तरीके :
· हरे और काले अंगूर के फायदे के लिए इनका सेवन फ्रूट चाट में कर सकते हैं।
· अंगूर का जूस बनाकर पी सकते हैं।
· अंगूर की आइसक्रीम खा सकते हैं।
· अंगूर को कस्टर्ड में डालकर सेवन कर सकते हैं।
· अंगूर को केक में डालकर खा सकते हैं।
· अंगूर के बीज का तेल लगा सकते हैं।
· किशमिश के रूप में भी अंगूर का सेवन कर सकते हैं।
· अंगूर को दही में डालकर सेवन किया जा सकता है।
· अंगूर को ऐसे ही खा सकते हैं।
अंगूर का जूस बनाने की विधि
अंगूर का जूस पीने के फायदे के लिए नीचे पढ़ें अंगूर का जूस बनाने की विधि दो से तीन लोगों के लिए:
सामग्री :
लगभग 500 ग्राम हरे या काले अंगूर
एक से दो कप पानी
स्वादानुसार चीनी
स्वादानुसार काला नमक
चाट मसाला स्वादानुसार
बनाने की विधि :
· सबसे पहले सारे अंगूरों को अच्छे से एक बर्तन में निकालकर धो लें।
· अब इन अंगूरों को मिक्सी जार में डाल दें।
· फिर इसमें आवश्यकतानुसार पानी, स्वादानुसार चीनी, काला नमक व चाट मसाला डालकर मिक्स करें।
· जब जूस निकल आए, तो मिश्रण को छलनी से छानकर एक गिलास में निकाल लें।
अंगूर के नुकसान –
अंगूर के फायदे और नुकसान दोनों ही हैं। ज्यादा या गलत तरीके से सेवन करने से अंगूर खाने के नुकसान भी हो सकते हैं। ऊपर अंगूर के फायदे जानने के बाद, हो सकता है कई लोग इसका अधिक सेवन करने लगे, लेकिन ऐसी गलती न करें। इसलिए, हम अंगूर के नुकसान बताकर पाठकों को सावधान कर देना चाहते हैं।
कुछ अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि जिन व्यक्तियों ने अंगूर के बीज खाए थे, उनमें अपेंडिसाइटिस (पेट में मौजूद अपेंडिक्स में सूजन की समस्या) की समस्या सामने आई थी ।
अगर बात करें गर्भवती के अंगूर खाने की, तो इस संबंध में मिले-जुले अध्ययन हैं। एक अध्ययन में, रेस्वेराट्रोल की खुराक भ्रूण में अग्नाशय की समस्याओं का कारण बना है। हालांकि, अध्ययन में अंगूर के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है, लेकिन सावधानी बरतना बेहतर है |वहीं, कुछ प्रारंभिक अध्ययनों से पता चला है कि रेस्वेराट्रोल सप्लीमेंट वास्तव में गर्भावस्था के दौरान फायदेमंद हो सकता है। ऐसे में संतुलित मात्रा में अंगूर खाने की राय दी जा सकती है । इसलिए, बेहतर है कि गर्भावस्था के दौरान अंगूर का सेवन करने से पहले डॉक्टर से राय जरूर लें।
छोटे बच्चों को अंगूर देने से बचें, क्योंकि अंगूर छोटा फल है और यह बच्चे के गले में अटक सकता है ।
अंगूर में कैलोरी होती है, ऐसे में इसके अधिक सेवन से वजन बढ़ने का जोखिम हो सकता है। हालांकि, इस विषय में वैज्ञानिक शोध की कमी है। ऐसे में बेहतर वेट लॉस डाइट में अंगूर को शामिल करने से पहले इस बारे में डायटीशियन की सलाह ले लें।
अगर किसी को एलर्जी की समस्या आसानी से हो जाती है या किसी का पेट संवेदनशील है, तो अंगूर खाने से एलर्जी की या पेट की परेशानी हो सकती है ।
इस आर्टिकल में अंगूर के गुण पढ़ने के बाद कई लोग इस छोटे, लेकिन उपयोगी फल को अपने डाइट में शामिल करना चाह रहे होंगे। हालांकि, यह ध्यान में रखना भी जरूरी है कि अंगूर खाने के फायदे और नुकसान दोनों है। अंगूर के नुकसान बताकर हमारा उद्देश्य पाठकों को डराना नहीं, बल्कि जागरूक करना है, ताकि मजे-मजे में और अधिक गुण के चाहत में लोग इसका अधिक सेवन न कर लें। यह छोटा-सा दिखने वाला फल अंगूर विभिन्न रंगों में उपलब्ध हैं, लेकिन सभी अंगूर के लाभ लगभग एक समान हैं। इसे आसानी से डाइट में शामिल किया जा सकता है। ध्यान रहे, खुद को स्वस्थ रखने के लिए डाइट में सिर्फ अंगूर नहीं, बल्कि जीवनशैली और दिनचर्या में सुधार करना भी जरूरी है। इसलिए, सही आहार और दिनचर्या में सुधार ही स्वस्थ जीवन का आधार हो सकता है।
नींबू के रस (Lemon) के बिना जीवन का रस नीरस हो जाता है. इसीलिए पूरी दुनिया में नींबू की एक अलग ही पहचान है. यह आहार में ऐसा रस पैदा करता है जो शरीर में झनझनाहट भर देता है. कई उपयोग हैं नींबू के. विशेष बात यह है कि शरीर के लिए इसकी विशेष उपयोगिता है. विटामिन सी से भरपूर नींबू दिल को स्वस्थ रखता है और लिवर को मजबूत बनाए रखता है. स्वाद की दुनिया में हजारों वर्षों से अपना सिक्का जमाए हुए है नींबू.
कभी-कभी सवाल किया जाता है कि नींबू फल है या सब्जी. तो यह स्पष्ट करें कि यह असल में फल ही है और इसकी एक लंबी जैनेटिक कड़ी है. संतरा, माल्टा, कीनू आदि नींबू के परिवार के ही माने जाते हैं. खास बात यह है कि यह ‘पारिवारिक’ फल पकने के बाद मिठास पकड़ लेते हैँ, लेकिन नींबू पकने के बाद अलग ही खटास पैदा करता है और यही खटास इसे अन्य फलों से अलग कर देती है. यह एक ऐसा फल है जो फ्रूट्स शॉप के बजाय सब्जी की दुकान या ठेले पर दिखाई देगा. यह ऐसा विशेष फल भी है जो बारह महीने बिकता और प्रयोग होता दिखाई देगा. यही एक ऐसा फल है जो पाककला (भोजन) में अपने जलवे कायम किए हुए है तो सफाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. नींबू की विशेषताओं से भरे पेय पदार्थ और डिटर्जेंट पाउडर और लिक्विड हर जगह बिकते हुए दिख जाएंगे. नॉनवेज आहार ‘लेमन चिकन’ और वेज ‘लेमन राइस’ व ‘नींबू का अचार’ तो पूरी दुनिया में मशहूर है.
सब्जियों में यह अलग ही तरह की खटास पैदा करता है तो नॉनवेज को स्पेशल डिश बनाने से पहले नींबू से इसलिए मैरिनेट किया जाता है, क्योंकि इसमें पाया गया विशेष एसिड नॉनवेज में मौजूद कोलेजन फाइबर (एक तरह की ठोस मसल्स) को तोड़ने का काम कर देता है, जिससे नॉनवेज जल्दी पकता है और उसमें स्वाद भी भर जाता है. नींबू के बिना कोल्ड ड्रिंक्स और कॉकटेल/मॉकटेल का मजा अधूरा है. इसके स्लाइज़ किसी भी डिश की सुंदरता व स्वाद को बढ़ाते हैं. कहते हैं कि इन्हीं विशेषताओं के चलते पुराने समय में नींबू दुर्लभ फल हुआ करता था और राज-दरबारों में एक दूसरे को भेंट किया जाता था.
विश्व कैंसर दिवस हर साल 4 फरवरी को दुनिया भर में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में कैंसर के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना और गुणवत्ता देखभाल, स्क्रीनिंग, शुरुआती पहचान, उपचार और उपशामक देखभाल तक पहुंच में सुधार की दिशा में कार्रवाई को मजबूत करना है।
विश्व कैंसर दिवस की पहल यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल द्वारा 2008 में लिखे गए विश्व कैंसर घोषणा के लक्ष्यों के प्रचार और समर्थन के लिए की गई थी। विश्व कैंसर दिवस लोगों को कैंसर की शुरुआती पहचान, उपचार और भावनात्मक समर्थन के माध्यम से बीमारी से लड़ने के लिए मिलकर काम करने का आह्वान करता है।
विश्व कैंसर दिवस 2023 थीम
विश्व कैंसर दिवस की इस वर्ष की थीम "क्लोज़ द केयर गैप" अभियान के दूसरे वर्ष को चिन्हित करती है जो कैंसर देखभाल में असमानताओं को समझने और उन्हें दूर करने के लिए आवश्यक प्रगति करने के लिए कार्रवाई करने के बारे में है।
कैंसर क्या है?
मानव कोशिकाएँ विभाजित होती रहती हैं ताकि उनके नष्ट होने के बाद नई कोशिकाएं उनकी जगह लेती रहें और हमारा शरीर सामान्य रूप से कार्य कर सके। परंतु किन्हीं कारणों से जब यही कोशिकाएं अनियंत्रित हो कर विभाजित होना शुरू कर देती हैं तो यह कैंसर का रूप ले लेती हैं। कैंसर-कोशिकाएं बढ़ कर एक गांठ या ट्यूमर बन जाती हैं तथा शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकती हैं।
कैंसर दुनिया भर में बीमारी से होने वाली मौतों का एक बहुत बड़ा कारण बनता जा रहा है। अक्सर आधुनिक जीवन-शैली को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है परंतु नए वैज्ञानिक साक्ष्य इसे काफी पुराना बताते हैं। कैंसर का सबसे पुराना साक्ष्य दक्षिण अफ्रीका में एक मानव संबंधी जीव की 17 लाख पुरानी हड्डी में मिला है। इंसानों में इसका प्राचीनतम प्रमाण मिश्र सभ्यता के अवशेषों में मिली कई हड्डियों में पाया गया है। मिस्र सभ्यता के लोग कैंसर से परिचित थे और अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के अनुसार इसका प्रमाण है- लगभग 3000 पुरानी पैपाइरस की छाल पर लिखी गई मिस्र की एक पांडुलिपि- ‘एडविन स्मिथ पैपाइरस’ । यह ट्रामा सर्जरी पर लिखी गयी एक पुस्तक का भाग थी जिसमें स्तन में होने वाले कुल 8 प्रकार के ट्यूमर का विवरण था। इन ट्यूमर को आग से दाग़ कर खत्म करने की विधि सुझाई गई थी जिसे कहा जाता है, साथ ही यह भी लिखा था कि इस स्थिति को ठीक करने का कोई कारगर इलाज नहीं है।
हालांकि इस पांडुलिपि में ‘कैंसर’ शब्द का उपयोग नहीं किया गया था। ‘कैंसर’ शब्द की उत्पत्ति ‘कार्सिनोमा’ या ‘कार्सिनोस’ से मानी जाती है जिसे महान यूनानी चिकित्सा शास्त्री हिप्पोक्रेट्स (460-370 BC) ने ट्यूमर के वर्णन में प्रयोग किया था। बाद में ‘कार्सिनोमा’ या ‘कार्सिनोस’ का लातिनी भाषा में अनुवाद करते समय रोम के चिकित्सक सेल्स (28 BC-50 AD) ने ‘कैंसर’ शब्द का प्रयोग किया।
15वीं-18वीं सदी के काल में आधुनिक विज्ञान एक विषय के रूप में उभर कर आया। नए-नए यंत्रों जैसे माइक्रोस्कोप तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से की गई शव-परीक्षाओं ने मानव शरीर के बारे में बहुत सी नई जानकारी दी। 1761 में पादुआ (इटली) के जियोवन्नी मोर्गग्नि ने कैंसर के अध्ययन की नींव रखी। स्कॉटलैंड के सर्जन जॉन हंटर ने बताया कि सर्जरी से कैंसर का इलाज संभव है। 1838 में जर्मनी के जोहान्स मुलर ने साबित किया कि कैंसर कोशिकाओं से बना है। 1860 के दशक में जर्मनी के एक दूसरे सर्जन कार्ल थियर्सच ने प्रमाणित किया कि प्रभावित कोशिकाओं के फैलने से कैंसर शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलता है।
कैंसर की जांच
यदि शुरुआती दौर में कैंसर का पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है। कैंसर की जांच के लिए सबसे पहले जॉर्ज पापनिकोलाउ ने पेप स्मियर को विकसित किया था जो स्त्रियों में होने वाले सर्वाइकल कैंसर को परखने में सक्षम था।
स्तन कैंसर की जांच के लिए 1976 में अमेरिकन कैंसर सोसाइटी ने आधुनिक मैमोग्राफी को सुझाया था। आज हर प्रकार के कैंसर की जांच संभव है और इसके लिए बहुत से तरीके हैं, जैसे- LDCT (Low dose computed tomography), MRI, colonoscopy, sigmoidoscopy इत्यादि।
कैंसर का इलाज
• सर्जरी यह कैंसर के सबसे पुराने इलाजों में से एक है। अत्याधुनिक तकनीक और एनेस्थीसिया के विकास के कारण आजकल सर्जरी ज़्यादा सटीक और प्रभावी है।
• रेडियेशन थेरेपी रेडियेशन थेरेपी में कैंसर कोशिकाओं पर अत्यधिक ऊर्जा वाली किरणों को डाल कर उन्हें नष्ट किया जाता है। इसमें X-rays, फोटॉन या किसी अन्य प्रकार की ऊर्जा का प्रयोग किया जा सकता है।
• कीमोथेरेपी कीमोथेरेपी में शरीर में उपस्थित कैंसर कोशिकाओं को दवाओं से खत्म किया जाता है। अनुसंधानों की मदद से वैज्ञानिकों ने कई ऐसी दवाओं की खोज की है जो कैंसर से लड़ने में सक्षम हैं।
कई और इलाज जैसे हार्मोन थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी भी कारगर हैं।
भारत में कैंसर का इतिहास
भारत में प्राचीन काल में कैंसर के कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिले हैं। परंतु कैंसर से मिलती-जुलती बीमारियों के इलाज यहाँ की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धतियों आयुर्वेद तथा सिद्ध की पांडुलिपियों में मिले हैं। भारत में कैंसर के केस 17वीं सदी से मिलते हैं। उसके बाद से ही कैंसर से ग्रसित लोगों के आंकड़े व्यवस्थित तौर पर रखे गए। 19वीं सदी तथा 20वीं सदी के शुरुआती दौर में भारत की जनसंख्या और जीवन-प्रत्याशा कम होने के कारण कैंसर से होने वाली मौतों का आंकड़ा बहुत कम था। 1960 के बाद से यह आंकड़ा तेजी से बढ़ने लगा और 21वीं सदी में तो भारत विश्व में कैंसर से होने वाली मौतों का एक बहुत बड़ा हिस्सेदार बन गया। आज हमारे देश में स्वास्थ्य सुविधाएं भले ही बेहतर हुई हैं परंतु बढ़ती जनसंख्या एवं लोगों में कैंसर के प्रति जागरूकता की कमी से इस बीमारी ने विकराल रूप धारण कर लिया है।
वैश्विक स्तर पर कैंसर मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष 10 मिलियन कैंसर के नए मामले सामने आते हैं। डब्ल्यूएचओ के नए अनुमानों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 10 भारतीयों में से एक को अपने पूरे जीवनकाल में कैंसर विकसित होने की संभावना है और 15 में से एक व्यक्ति की मौत कैंसर के कारण हो सकती है। डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट में भारत में कैंसर से संबंधित कुछ चौंकाने वाले आंकड़े भी सामने आए हैं:
भारत में प्रत्येक वर्ष 16 मिलियन कैंसर से संबंधित नए मामले दर्ज किए जाते हैं।
लगभग 7,84,800 लोगों की मौत कैंसर के कारण हो जाती है।
भारत में होने वाले छह मुख्य कैंसर में स्तन कैंसर, मुंह का कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, फेफड़े का कैंसर, पेट का कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर शामिल है।
क्या है कैंसर?
कैंसर शरीर में होने वाली एक असामान्य और खतरनाक स्थिति है। कैंसर तब होता है, जब शरीर में कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने और विभाजित होने लगती हैं। हमारा शरीर खरबों कोशिकाओं से बना है। स्वस्थ कोशिकाएं शरीर की आवश्यकताओं के अनुसार बढ़ती और विभाजित होती हैं। कोशिकाओं की उम्र जैसे-जैसे बढ़ती या क्षतिग्रस्त होती है, ये कोशिकाएं मर भी जाती हैं। इनकी जगह नई कोशिकाओं का निर्माण होता है। जब किसी को कैंसर होता है, तो कोशिकाएं इस तरह से अपना काम करना बंद कर देती हैं। पुरानी और क्षतिग्रस्त कोशिकाएं मरने की बजाय जीवित रह जाती हैं और जरूरत नहीं होने के बावजूद भी नई कोशिकाओं का निर्माण होने लगता है। ये ही अतिरिक्त कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विभाजित होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ट्यूमर होता है। अधिकतर कैंसर ट्यूमर्स होते हैं, लेकिन ब्लड कैंसर में ट्यूमर नहीं होता है। हालांकि, हर ट्यूमर कैंसर नहीं होता है। कैंसर शरीर के किसी भी हिस्से में विकसित हो सकता है। आमतौर यह आस-पास के ऊतकों में फैलता है। असामान्य और क्षतिग्रस्त कैंसर कोशिकाएं शरीर के दूसरे भागों में पहुंचकर नए घातक व मैलिग्नेंट ट्यूमर बनाने लगती हैं।
ब्रेस्ट कैंसर , ओवेरियन कैंसर ,स्किन कैंसर ,लंग कैंसर ,कोलोन कैंसर ,प्रोस्टेट कैंसर ,लिंफोमा सहित सौ से अधिक प्रकार के कैंसर होते हैं। इन सभी कैंसर के लक्षण और जांच एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। कैंसर का इलाज मुख्यरूप से कीमोथेरेपी ,रेडिएशन और सर्जरी द्वारा की जाती है।
कैंसर के लक्षण
सभी कैंसर के लक्षण एक-दूसरे से अलग होते हैं। ऐसे में इसके संकेतों और लक्षणों के बारे में हर किसी को जानकारी होनी चाहिए, ताकि समय रहते लक्षणों को पहचानकर निदान और इलाज शुरू की जा सके। कैंसर के कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं:-
अचानक वजन कम होना : बिना कोई कारण नजर आए यदि आपका वजन तेजी से कम होने लगे, तो यह कैंसर के पहले संकेतों में से एक हो सकता है। अग्न्याशय ,पेट या फेफड़ों में होने वाले कैंसर से पीड़ित लोगों में वजन कम होने की समस्या होती है। हालांकि, अन्य प्रकार के कैंसर से पीड़ित लोगों में भी वजन कम हो सकता है।
अत्यधिक थकान: सारा दिन थकान महसूस होना भी कैंसर के महत्वपूर्ण लक्षणों में शामिल है। ल्यूकेमिया कोलन कैंसर होने पर थकान अधिक महसूस होती है।
गांठ: त्वचा में किसी भी तरह की गांठ या लम्प नजर आए, तो संभवत: यह कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। स्तन कैंसर, लिम्फ नोड्स, सॉफ्ट ऊतक और अंडकोष में होने वाले कैंसर में आमतौर पर गांठ होते हैं।
त्वचा में बदलाव: यदि आपकी त्वचा का रंग बदलकर पीला, काला या लाल हो गया है, तो ये कैंसर का संकेत हो सकता है। इसके साथ ही शरीर के किसी भी हिस्से पर हुए मोल्स या मस्से के रंग और आकार में बदलाव नजर आए, तो इसे नजरअंदाज ना करें। इस बात पर भी गौर करें कि कोई भी घाव ठीक होने में अधिक समय तो नहीं ले रहा है।
तेज दर्द: तीव्र दर्द आमतौर पर हड्डी या वृषण कैंसर का शुरुआती लक्षण हो सकता है, जबकि पीठ दर्द कोलोरेक्टल ,अग्नाशय या डिम्बग्रंथि के कैंसर के संकेत होते हैं। जिन लोगों को मैलिग्नेंट ब्रेन ट्यूमर होता है, उनमें तेज सिरदर्द होने की शिकायत रहती है।
बाउल मूवमेंट और ब्लैडर फंक्शन में बदलाव: कब्ज, दस्त, मल में खून आना कोलोरेक्टल कैंसर के संकेत हो सकते हैं। पेशाब करते समय दर्द के साथ खून आना ब्लैडर और प्रोस्टेट कैंसर के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं।
लिम्फ नोड्स में सूजन: तीन से चार सप्ताह तक ग्रंथियों में सूजन बने रहना ठीक नहीं। लिम्फ नोड्स के आकार में वृद्धि भी कैंसर का संकेत होती है।
एनीमिया : एनीमिया होने पर लाल रक्त कोशिका में भारी कमी आ जाती है। यह हेमटोलॉजिकल कैंसर का संकेत हो सकता है।
कैंसर के कारण
कैंसर क्यों होता है, इसके पीछे कोई ज्ञात कारण नहीं है। हालांकि, कुछ कारक कैंसर होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं। हमें इस घातक स्थिति से खुद को बचाने के लिए संभावित कार्सिनोजेनिक कारकों के संपर्क में आने से बचना होगा। हालांकि, अनुवांशिक कारणों से होने वाले कैंसर को रोकना हमारे बस में नहीं है, जो कैंसर होने का एक प्रमुख जोखिम कारक है। बावजूद इसके, जिनके परिवार में कैंसर होने का इतिहास है, उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए स्क्रीनिंग जरूर करवानी चाहिए। इससे कैंसर का पता जल्दी चलने से उपचार भी समय रहते शुरू किया जा सकता है। कुछ प्रमुख कारक, जो कैंसर होने की संभावनाओं को बढ़ा सकते हैं:-
तंबाकू चबाना या सिगरेट पीना: इन चीजों में मौजूद निकोटीन के सेवन से शरीर के किसी भी अंग में कैंसर हो सकता है। तंबाकू और धूम्रपान करने से आमतौर पर मुंह का कैंसर , फेफड़ों का कैंसर ,एलिमेंटरी ट्रैक्ट और पैंक्रियाटिक कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
जीन: परिवार में यदि कैंसर होने की हिस्ट्री है, तो इस खतरनाक बीमारी के होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। कैंसर एक दोषपूर्ण जीन के कारण भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, स्तन कैंसर ,वंशानुगत गैर पॉलीपोसिस कोलोरेक्टल कैंसर आदि वंशानुगत हो सकते हैं।
पर्यावरण में कार्सिनोजेन्स का होना: हम जो कुछ भी खाते या पीते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उनमें कई ऐसे तत्व या पदार्थ मौजूद होते हैं, जो कैंसर होने की जोखिम को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। एज्बेस्टस बेंजीन आर्सेनिक निकल जैसे कम्पाउंड फेफड़े के कैंसर के अलावा कई अन्य कैंसर होने के जोखिम को बढ़ाते हैं।
फूड्स: आजकल अधिकतर फल और सब्जियां कीटनाशकों से दूषित होते हैं, जिनके सेवन से शरीर पर अवांछनीय प्रभाव पड़ता है। दोबारा गर्म किए गए भोजन, अधिक पके हुए फूड्स, दोबारा गर्म किए गए तेल कार्सिनोजेनिक हो जाते हैं। कल-कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों की वजह से प्रदूषित जल भी काफी नुकसानदायक होता है, क्योंकि इसमें भारी खनिजों की मात्रा अधिक होती है।
वायरस : हेपेटाइटिस बी और सी वायरस लिवर कैंसर के लिए 50 प्रतिशत तक जिम्मेदार होते हैं, जबकि ह्यूमन पैपिलोमा वायरस 99.9% मामलों में सर्वाइकल कैंसर होने के लिए जिम्मेदार होता है। साथ ही, रेडिएशन और सन एक्सपोजर भी कैंसर के जोखिम को काफी हद तक बढ़ाते हैं।
कैंसर के स्टेज
अधिकांश कैंसर में ट्यूमर होता है और इन्हें पांच चरणों में विभाजित किया जा सकता है। कैंसर के ये सभी स्टेजेज दर्शाते हैं कि आपका कैंसर कितना गंभीर रूप ले चुका है।
स्टेज 0: यह दर्शाता है कि आपको कैंसर नहीं है। हालांकि, शरीर में कुछ असामान्य कोशिकाएं मौजूद होती है, जो कैंसर में विकसित हो सकती हैं।
पहला चरण: इस स्टेज में ट्यूमर छोटा होता है और कैंसर कोशिकाएं केवल एक क्षेत्र में फैलती हैं।
दूसरा और तीसरा चरण : पहले और दूसरे स्टेज में ट्यूमर का आकार बड़ा हो जाता है और कैंसर कोशिकाएं पास स्थित अंगों और लिम्फ नोड्स में भी फैलने लगती हैं।
चौथा चरण : यह कैंसर का आखिरी और बेहद खतरनाक स्टेज होता है, जिसे मेटास्टेटिक कैंसर भी कहते हैं। इस स्टेज में कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में फैलना शुरू कर देता है।
कैंसर का निदान
शारीरिक लक्षणों और संकेतों को देखते हुए डॉक्टर कैंसर का पता लगाने की कोशिश करते हैं। आपकी मेडिकल हिस्ट्री को देखने के बाद शारीरिक परीक्षण की जाती है। टेस्ट के लिए मूत्र ,रक्त या मल का सैंपल लिया जाता है। कैंसर की आशंका होने पर एक्स-रे, कंप्यूटेड टोमोग्रैफी ,एमआरआई, अल्ट्रासाउंड और फाइबर-ऑप्टिक एंडोस्कोपी परीक्षणों से आपको गुजरना पड़ सकता है। इन सभी टूल्स के जरिए डॉक्टर आसानी से ट्यूमर के स्थान और आकार के बारे में जान पाते हैं। किसी को कैंसर है या नहीं इसका पता बायोप्सी के जरिए आसानी से चल जाता है। बायोप्सी में जांच के लिए ऊतक के नमूने लिए जाते हैं। यदि बायोप्सी के परिणाम सकारात्मक आते हैं, तो कैंसर के प्रसार का पता लगाने के लिए आगे कई अन्य टेस्ट भी किए जाते हैं।
कैंसर का इलाज
डॉक्टर कैंसर के प्रकार, स्थान या अवस्था के आधार पर इलाज का विकल्प तय कर सकता है। आमतौर पर, कैंसर के उपचार में मुख्य रूप से सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन, हार्मोन थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट्स शामिल हैं।
सर्जरी
डॉक्टर सर्जरी के जरिए कैंसर के ट्यूमर, ऊतकों, लिम्फ नोड्स या किसी अन्य कैंसर प्रभावित क्षेत्र को हटाने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी डॉक्टर बीमारी की गंभीरता का पता लगाने के लिए भी सर्जरी करते हैं। यदि कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में नहीं फैला है, तो सर्जरी इलाज का सबसे अच्छा विकल्प है।
कीमोथेरेपी
कीमोथेरेपी को कई चरणों में किया जाता है। इस प्रक्रिया में ड्रग्स के जरिए कैंसर कोशिकाओं को खत्म की जाती है। हालांकि, उपचार का यह तरीका किसी-किसी के लिए काफी कष्टदायक होता है। इसके कई साइड एफेक्ट्स भी नजर आते हैं, जिसमें बालों का झड़ना मुख्य रूप से शामिल है। दवाओं को खाने के साथ ही नसो में इंजेक्शन के जरिए भी पहुंचाया जाता है।
रेडिएशन थेरेपी
रेडिएशन कैंसर कोशिकाओं पर सीधा असर करता है और उन्हें दोबारा बढ़ने से रोकता है। इस प्रक्रिया में, उच्च ऊर्जा कणों या तरंगों का उपयोग करके कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने की कोशिश की जाती है। कुछ लोगों को इलाज में सिर्फ रेडिएशन थेरेपी तो किसी-किसी को रेडिएशन थेरेपी के साथ सर्जरी और कीमोथेरेपी भी दी जाती है।
इम्यूनोथेरेपी
इम्यूनोथेरेपी आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं से लड़ने में सक्षम बनाती है।
हार्मोन थेरेपी
इस थेरेपी का उपयोग उन कैंसर के उपचार के लिए किया जाता है, जो हार्मोन से प्रभावित होते हैं। हार्मोन थेरेपी से स्तन और प्रोस्टेट कैंसर में काफी हद तक सुधार होता है।
देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर, ये कहावत तो आपने सुनी होगी, अब एक बार इसी कहावत को थोड़ा बदल कर देखें कि देखन में छोटन लगे, मगर काम करे गंभीर, तो सच बात यह है कि हमारे किचन में ऐसी कई चीज़ें हैं, जिनके बारे में हमें ख़ुद भी पता नहीं होता है, हम अमूमन उसके उपयोग के बारे में या उसकी पौष्टिकता के बारे में नहीं जानते और उसे किचन के डिब्बे में ही रहने देते हैं। कलौंजी उर्फ़ मंगरेला हमारे किचन में रखी जाने वाली ऐसी ही छोटी-सी चीज़ है, जिसे हम अमूमन केवल छौंक लगाने के ही काम में लाते हैं। जबकि हमें इसका रोज़ाना सेवन करना चाहिए। काले रंग के दिखने वाला कलौंजी मसालों में ही गिना जाता है, लेकिन इसके और भी गुण हैं। तो आइये, विस्तार से जानते हैं कलौंजी के उपयोग से जुड़ी सारी महत्वपूर्ण बातों के बारे में ।
क्या है कलौंजी
कलौंजी एक तरह का बीज होता है, जो काले रंग का होता है। इसका पेड़ लगभग 12 इंच का होता है। मुख्य रूप से यह दक्षिण-पश्चिम एशिया में पाया जाता है और कई जगहों पर इसको काला बीज भी कहा जाता है तो बिहार के इलाकों में इसे मंगरेला भी कहा जाता है। भारत के अलावा बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी इसका सेवन किया जाता है। इसका उपयोग औषधि में भी किया जाता है। इसका सेवन हर दिन कम से कम दो ग्राम करना ही चाहिए। इसे आप सब्ज़ी मे, सलाद, आटे , पुलाव और अन्य कई खाद्य पदार्थ में कर सकते हैं। भारत में अचार बनाने में इसका ख़ूब उपयोग होता है।
कलौंजी की ख़ास बात यह है कि इसमें आयरन, सोडियम, पोटाशियम, फाइबर और कई सारे मिनरल्स मिलते हैं। इसमें अमिनो एसिड भी रहता है। साथ ही यह शरीर को ज़रूरी प्रोटीन भी देता है। इसका तेल भी बनता है और यह बीज के रूप में भी इस्तेमाल होता है। यह एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट भी माना जाता है।
कलौंजी का सेवन सेहतमंद
कलौंजी के अनेक फ़ायदे होते हैं। यह सिर्फ़ खाने में तड़का या छौंके के लिए नहीं, बल्कि अन्य पौष्टिक गुणों से भी उपयुक्त होता है।
1. कलौंजी के बीज बुजुर्गों के साथ-साथ युवाओं की सेहत के लिए भी अच्छा होता है। इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है और काम में फोकस करने में आसानी होती है। कलौंजी के साथ, थोड़ा शहद मिला कर खाने से काफ़ी फ़ायदा होता है, अगर इसे गर्म पानी में पिया जाए, तो यह और लाभदायक होता है।
2. अस्थमा और खांसी जैसी बीमारी होने पर अगर कलौंजी का सेवन, लगातार दो महीने तक किया जाये, तब भी काफी लाभ पहुंचता है।
3. यह हैरानी की बात है, लेकिन सच है कि कलौंजी का सेवन हृदय रोगों से मुक्ति दिलाता है। आयुर्वेद के अनुसार अगर कलौंजी का सेवन गाय के दूध या बकरी के दूध के साथ करें, तो एक हफ़्ते में ही काफी आराम मिलता है।
4. कलौंजी में ऐसे कई तत्व होते हैं, जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक होते हैं। माना जाता है कि अगर लगातार तीन महीने तक, हर दिन दो से तीन ग्राम तक इसका सेवन किया जाए, तो गुड कोलेस्ट्रॉल बढ़ते में मदद मिलती है।
5. जो लोग अपना वज़न कम करना चाहते हैं, उन्हें भी एक्सपर्ट्स कलौंजी का सेवन करने की राय देते हैं। दरअसल, इसमें एंटी-ओबेसिटी वाले गुण होते हैं, जिससे वज़न घटने में काफी आसानी होती है। इसके तेल का इस्तेमाल वज़न घटाने वाले मसाज में किया जाता है।
6. ऐसा भी माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति कैंसर से पीड़ित है तो उसमें भी कलौंजी का सेवन करना चाहिए। लेकिन डॉक्टर से सलाह लेकर। ज़ाहिर-सी बात है कि कैंसर को यह जड़ से नहीं मिटा सकता, लेकिन एंटी ऑक्सीडेंट होने के कारण यह ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और फ्री रेडिकल्स की समस्या को कम कर देता है।
7. कलौंजी की ख़ासियत यह भी है कि इसे डायबिटीज़ के रोगी भी खा सकते हैं। डायबिटीज़ को कंट्रोल करने के लिए कलौंजी का तेल काफी प्रभावशाली होता है। ऐसे में इसका सेवन ब्लैक टी में करना चाहिए।
8. कलौंजी का सेवन ब्लड-प्रेशर कंट्रोल करने के लिए भी करना चाहिए। यहीं नहीं किडनी के लिए भी यह अच्छा होता है। इस समस्या से जूझ रहे लोगों को कलौंजी तेल के साथ शहद, और गर्म पानी पीने की सलाह दी जाती है।
9. महिलाओं के लिए कलौंजी एक बेहतरीन चीज़ है। प्रसव के बाद उन्हें खीरे के रस के साथ, इसे लेने की सलाह दी जाती है। इससे कमज़ोरी खत्म होती है। यहीं नहीं अगर महिलाओं में सफ़ेद पानी, पीरियड में दर्द या पीएमएस जैसी प्रॉब्लम है, तब भी कलौंजी के पानी का सेवन करने से आराम मिलता है।
10. कलौंजी के सेवन से आंखों की रोशनी भी बढ़ती है। खासतौर से अगर आंखों से पानी आने या फिर आंखों के बार-बार लाल हो जाने की समस्या आती है, तो इसका सेवन करना चाहिए। यह मोतियाबिंद जैसी परेशानी को दूर करने में सहायक होता है।
11. दांतों के मसूड़ों में सूजन होने पर भी अगर इसके तेल का सेवन किया जाए तो अच्छा रहता है। इससे दांत भी मज़बूत हो जाते हैं।
12. कई लोगों को बार-बार उल्टी आने की प्रॉब्लम रहती है, ऐसे में कलौंजी इन समस्याओं को भी रोकने का काम करता है।
ख़ूबसूरती से जुड़े हैं, कलौंजी के बेहतरीन फ़ायदे
· अगर आप मुंहासे या पिग्मेंटेशन जैसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो आपको कलौंजी के सेवन से फ़ायदा मिलेगा। कलौंजी में एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं और यह एंटी-इंफ्लेमेटरी भी होता है। इसके लिए 2 चम्मच नींबू के रस में कलौंजी का तेल मिलाकर सुबह- शाम लगाएं। इससे चेहरे के दाग-धब्बे भी ख़त्म हो जाते हैं।
· अगर आप फ़टी एड़ियों से परेशान हैं, तो फ़टी एड़ियों पर कलौंजी का तेल लगाया जाना चाहिए।
· कलौंजी ऑयली स्किन के साथ-साथ, ड्राई स्किन के लिए भी काफी अच्छी होती है। इसके लिए एक चम्मच कलौंजी पाउडर, एक चम्मच ओट्स, आधा चम्मच शहद, आधा चम्मच बादाम तेल और दूध की क्रीम मिला कर एक मास्क तैयार कर लें और फिर उसे अपने चेहरे और गर्दन पर लगाएं।
· कलौंजी चेहरे की टैनिंग हटाने में भी सहायक होता है, इसके लिए दो चम्मच कलौंजी पाउडर, संतरे का रस, पांच बूंद लेमन ऑयल मिलाएं और फिर उसे चेहरे पर लगा कर दस मिनट तक रहने दें, फिर चेहरा धोएं, चेहरा निखर जायेगा।
बालों के लिए कलौंजी
· कलौंजी के तेल को बालों के लिए भी लाभदायक माना गया है। माना गया है कि बालों को झड़ने से रोकने के लिए इसके तेल का इस्तेमाल करना चाहिए। कलौंजी में एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं, जो बालों को झड़ने से बचाते हैं और उन्हें मज़बूती देते हैं। इसलिए इसके तेल से रोज़ाना स्कैल्प पर मालिश करनी चाहिए और कलौंजी का पेस्ट बालों में लगाना चाहिए।
· कलौंजी के इस्तेमाल से बाल घने होते हैं। लंबे बाल करने के लिए भी इसका तेल हफ्ते में एक बार लगाना ही चाहिए। इस तेल में आप चाहें तो कपूर भी मिला कर लगा सकती हैं।
· कलौंजी बालों की कंडीशनिंग के लिए भी बहुत अच्छा होता है। यह सिर में नमी बनाये रखता है। इसलिए, जिनके बाल रुखे होते हैं, उन्हें इसके तेल को लगाने की राय दी जाती है।
· कलौंजी स्कैल्प के लिए भी अच्छा होता है। यह स्कैल्प को गंदा होने से बचाता है। रूसी की समस्या को भी दूर करता है। आप चाहें तो घर पर ही इसके तेल बना सकती हैं। इसके लिए कलौंजी और मेथी के दानों को पीस कर पाउडर बना लें। फिर उसमें नारियल तेल, अरंडी तेल डाल कर मिक्स करें, फिर उसे सूरज की रोशनी में रखें। दो-तीन हफ़्तों तक ऐसा करें, इसके बाद बालों में लगाएं।
कलौंजी से होने वाले नुकसान
यह सच है कि कलौंजी में स्वास्थ्य का खज़ाना होता है। लेकिन इसके कुछ नुकसान भी होते हैं, उन्हें भी जान लेना जरूरी है।
1. एक्सपर्ट की राय होती है कि गर्भवती महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिए, क्योंकि अब तक इसके प्रमाण नहीं मिले हैं कि यह किस हद तक सुरक्षित है। इसलिए डॉक्टर से सलाह लेने पर ही इसका सेवन करें।
2. यह भी देखा गया है कि कलौंजी में थाइमोक्विनोन पाए जाते हैं और इसकी मात्रा बढ़ जाने से कई बार ब्लड क्लॉट हो जाता है। ऐसे में कलौंजी का सेवन नहीं किया जाना चाहिए।
3. अगर कोई व्यक्ति पित्त से परेशान है या फिर वह बहुत गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है, तब भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा पेट में बहुत जलन हो तब भी इसका सेवन न करें।
4 . जिन महिलाओं को पीरियड देर से आने की प्रॉब्लम है, उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए या फिर उन महिलाओं को भी नहीं, जिन्हें अधिक पीरियड होते हैं।