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बॉलीवुड के अनकहे किस्से - अमिताभ बच्चन की यादें इलाहाबाद के घर की

Date : 07-Nov-2022

हाल ही में अमिताभ बच्चन ने अपने जीवन के 80 वर्ष पूरे किए हैं। इस बीच सदी के इस महानायक पर कई किताबें देखने में आई हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण किताब है पुष्पा भारती द्वारा लिखित अमिताभ बच्चन: जीवन गाथा। इसमें अमिताभ के बचपन, उनके दिल्ली कलकत्ता, बंबई के जीवन, उनके विवाह, इलाहबाद के चुनाव आदि से जुड़े तथ्यों को उनके कई नए-पुराने इंटरव्यू के द्वारा प्रस्तुत किया गया है । पुष्पा भारती प्रख्यात लेखक और संपादक धर्मवीर भारती की पत्नी हैं। उनके बच्चन परिवार के साथ बहुत आत्मीय संबंध हैं। इस कारण अमिताभ बच्चन से बातचीत के आधार पर लिखी उनकी यह पुस्तक विश्वसनीय है। यह किताब एक अलग भावुक अमिताभ से परिचय कराती है। इस पुस्तक का सबसे अच्छा हिस्सा है इलाहाबाद में बिताए उनके बचपन की यादों का जो बहुत ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा हुआ है।

अमिताभ इलाहाबाद में सबसे पहले एडल्फी में रहे थे। इस मकान को याद करते हुए वे बताते हैं कि यहां से पिताजी यानी हरिवंश राय बच्चन साइकिल पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय जाया करते थे । इस मकान में उन्हें होली की याद है और यह भी याद है कि वह रंग लगाने से बहुत डरते थे और चुपचाप अपने कमरे में बैठे हुए एक-दूसरे को रंग लगाते हुए देखा करते थे । इसी मकान में उनको एक बैल ने सींग मार दिया था और सिर से काफी खून निकला था लेकिन वे बिल्कुल भी नहीं रोए थे । यहां उन्हें यह भी याद है कि उनके घर में एक ग्रामोफोन भी था जो उनके नाना ने उनकी मां को दिया था जिसमें हैंडल घुमा कर और चाबी देकर रिकॉर्ड बजा करते थे। भारत का विभाजन भी इसी दौरान हुआ और उन्हें याद है मां के कुछ रिश्तेदार उनके साथ आकर इसी मकान में ठहरे थे। उन्हें अपनी मां के पुराने नौकर सुदामा का बेटा मनवर भी याद है जिसके साथ वह खेला कूदा करते थे।

इसके बाद बच्चन परिवार 17 क्लाइव रोड के एक बड़े बंगले में चला गया था। उसके बारे में वे बताते हैं कि उसके पास ही एक बहुत बड़ी कोठी थी जिसे बूढ़ी रानी की कोठी कहते थे जो रानी बेतिया का निवास था। उसको देखने की जिज्ञासा में उन्होंने मां की ड्रेसिंग टेबल से चार आने की चोरी भी की थी जिसे वह चौकीदार को दे सके और वह अंदर से कोठी को दिखा सके। उन्हें इस मकान में रहने वाले दाढ़ी वाले सांप की कहानी और लॉन के पीछे तालाब में कमल लगाने की बातें भी याद हैं। अपने बचपन के दोस्तों शशि मुखर्जी, नरेश दास का भी जिक्र किया है। नरेश का देहांत बहुत कम उम्र में हो गया था। उसी के कहने पर उन्होंने शेरवुड (नैनीताल) में पढ़ने का फैसला किया था।

उन्होंने वहां के कच्चे इलाहाबादी अमरूदों का भी जिक्र करते हुए कहा है कि आज तक जब अमरूद खाना होता है तो वह कच्चा ही खाते हैं क्योंकि पके हुए अमरूद का स्वाद उन्होंने कभी चखा ही नहीं। उन्हीं दिनों हरिवंश राय बच्चन पीएचडी के लिए कैंब्रिज गए थे तो उन्होंने उनसे एयरगन लाने के लिए चिट्ठी लिखी थी और उनके पिता जब गन लेकर आए तो उन्हें बहुत गर्व का अनुभव हुआ। उन्होंने साइकिल चलाना यहीं सीखा। अपने छोटे भाई बंटी (अजिताभ) को वह अपनी साइकिल पर बैठा कर स्कूल तक ले जाते थे। अपने नौकरों के साथ रात को कोटपीस खेलना भी याद है। उन्हें अपने नौकर श्यामा, एक बूढ़ी आया, उसकी बहू और महाराजिन के अलावा इनके साथ मकान के बरांडे में माता-पिता के न रहने पर छोटे-मोटे नाटक भी करना याद है। इसी मकान में उन्हें अपनी मां तेजी बच्चन का बीमार होना भी याद है जब रात में पिता के न होने पर उन्होंने डॉक्टर को बुलाया था और रातभर मां के सिरहाने बैठे रहे थे। इसी मकान में उनकी पहली गाड़ी जो कि फोर्ड प्रीफैक्ट थी नीले रंग की थी आई। उसका नंबर तक उन्हें याद है 3882। इसे उनकी मां तेजी बच्चन चलाया करती थीं।

इसी मकान में बैडमिंटन, गुल्ली डंडा और पतंग उड़ाने की यादें भी हैं। पास ही धोबीघाट में बहुत बड़ा मैदान था। वहां पर भी वे पतंग उड़ाने जाया करते थे। उन्हें फोटोग्राफी का भी शौक यहीं हुआ। मां के पास एक छोटा बॉक्स कैमरा देखकर जो आज तक बरकरार है। मां द्वारा लॉन में बनाए गए रोज गार्डन को पुरस्कार मिलने, बरसात में पानी में नहाने और यहीं से संगम जाकर नहाने की यादें भी साझा की हैं। उन्होंने अपने स्कूल में एथलीट में बहुत सारे कप जीते थे और पहली बार एक बॉक्सिंग रिंग में रनर्स अप रहना भी याद है।

चलते चलते

अमिताभ के इसी घर में पृथ्वीराज कपूर भी आए थे सफेद चादर ओढ़े हुए दोपहर के खाने पर। शाम को पूरा परिवार उनके नाटक दीवार और पठान देखने गए थे। शो के बाद पृथ्वीराज कपूर अपनी चादर फैलाकर गेट के पास आकर खड़े हो गए थे और लोगों ने उसमें पैसे डाले थे। उन्हें याद है कि पहली फिल्म जिसे उन्होंने पैलेस सिनेमाघर में देखी। यह लॉरेल एंड हार्डी की थी। इसका नाम था द फ्लाइंग ड्यूसेज ।

(लेखक, राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)

 

 

लेखक - अजय कुमार शर्मा

 
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