दिवंगत अभिनेत्री नादिरा अब बेशक इस दुनिया में नहीं है, लेकिन भारतीय सिनेमा में उन्होंने अपनी शानदार अदायगी और खूबसूरती की बदौलत एक खास और ऊंचा मुकाम हासिल किया था। आज भी नादिरा को भारतीय सिनेमा में खास योगदान देने के लिए जाना जाता है। पचास और साठ के दशक में अपने बोल्ड और निगेटिव रोल के लिए मशहूर नादिरा उस दौर की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियों में से एक थीं। उन्हें हिंदी सिनेमा में निगेटिव रोल निभाने वाली पहली महिला के रूप में भी जाना जाता है।
बग़दाद में 5 दिसंबर, 1932 को जन्मी नादिरा का असली नाम फ्लोरेंस एजेकेल था। नादिरा जब छोटी थी, तभी नियति उन्हें उनके परिवार के साथ भारत ले आई। महज 12 साल की उम्र में साल 1943 में आई हिंदी फिल्म ‘मौज’ से नादिरा ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की। फिल्मों में आने के बाद ही उन्होंने फ्लोरेंस एजेकेल की जगह नादिरा रख लिया और इसी नाम से मशहूर भी हुईं। नादिरा को साल 1952 में आई फिल्म ‘आन’ के जरिए बड़ा ब्रेक मिला। इस फिल्म में वह राजकुमारी की भूमिका में थीं।
पचास और साठ के दशक में नादिरा की शोहरत आसमान पर थी और राजकपूर की 'श्री चार सौ बीस' के एक गाने के बाद से तो उन्हें 'मुड़-मुड़ के न देख गर्ल' ही कहा जाने लगा था। नादिरा की कुछ प्रमुख फिल्मों में श्री चार सौ बीस, दिल अपना और प्रीत पराई, पाकीज़ा, जूली और सागर जैसी फ़िल्में शामिल हैं। नादिरा ने ज्यादातर फिल्मों में निगेटिव भूमिकाये ही निभाई, जिसके लिए उन्हें काफी सराहा भी गया। 9 फरवरी, 2006 में मुंबई में ही नादिरा का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया।