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शिशु सुरक्षा दिवस व 7 नवंबर विशेष मृत्यु दर में कमी सुखद संकेत

Date : 07-Nov-2022

 हर साल सात नवंबर को शिशु सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में शिशुओं की सुरक्षा से संबंधित जागरुकता फैलाना और शिशुओं की उचित देखभाल कर के उनके जीवन की रक्षा करना है। उचित सुरक्षा न हो पाने के कारण दुनिया में बहुत सारे नवजात मौत के आगोश में चले जाते है। हमारे देश में नवजात मृत्यु दर अधिक रही है। मगर सरकार ने इस दिशा में बेहतर प्रयास किए हैं जिसकी बदौलत इसमें कमी आई है। नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) सांख्यिकीय रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत में पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर 2019 में प्रति एक हजार जीवित शिशुओं में से 35 के मुकाबले 2020 में घटकर 32 रह गई है। सबसे अधिक गिरावट उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में दर्ज की गई है। भारत के महापंजीयक द्वारा हाल ही में जारी की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 2014 से शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) पांच वर्ष से कम उम्र के शिशुओं की मृत्यु दर (यू5एमआर) और नवजात मृत्यु दर (एनएमआर) में कमी आई है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया के अनुसार देश 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) प्राप्त करने की दिशा में बढ़ रहा है। मांडविया ने इस उपलब्धि पर देश को बधाई देते हुए सभी स्वास्थ्यकर्मियों, सेवा से जुड़े लोगों तथा समुदाय के सदस्यों को शिशु मृत्यु दर कम करने में अथक कार्य करने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होने कहा एसआरएस 2020 ने 2014 से शिशु मृत्यु दर में लगातार गिरावट दिखाई है। भारत केन्द्रित कार्यक्रमों, मजबूत केंद्र-राज्य साझेदारी तथा सभी स्वास्थ्यकर्मियों के समर्पण से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में शिशु मृत्यु दर के 2030 एसडीजी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तैयार है।

देश में पांच वर्ष से कम उम्र के शिशुओं की मृत्यु दर (यू5एमआर) में 2019 से तीन अंकों की (वार्षिक कमी दर 8.6 प्रतिशत) देखी गई है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर 2019 में प्रति 1,000 जीवित शिशुओं में से 35 के मुकाबले 2020 में घटकर 32 रह गई है। रिपोर्ट के अनुसार शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में भी 2019 में प्रति 1000 जीवित शिशुओं में से 30 के मुकाबले 2020 में प्रति 1000 जीवित शिशुओं में से 28 के साथ दो अंकों की गिरावट दर्ज की गई है और वार्षिक गिरावट दर 6.7 प्रतिशत रही।

रिपोर्ट के अनुसार अधिकतम आईएमआर मध्य प्रदेश (43) और न्यूनतम केरल (6) में देखा गया है। देश में आईएमआर 2020 में घटकर 28 हो गया है। जो 2015 में 37 था। पिछले पांच वर्ष में नौ अंकों की गिरावट और लगभग 1.8 अंकों की वार्षिक औसत गिरावट आई है। इसमें कहा गया है इस गिरावट के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक 35 शिशुओं में से एक ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक 32 शिशुओं में से एक और शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक 52 शिशुओं में से एक की अभी भी जन्म के एक वर्ष के भीतर मृत्यु हो जाती है। रिपोर्ट के अनुसार देश में जन्म के समय लिंग अनुपात 2017-19 में 904 के मुकाबले 2018-20 में तीन अंक बढ़कर 907 हो गया है। केरल में जन्म के समय उच्चतम लिंगानुपात (974) है जबकि उत्तराखंड में सबसे कम (844) है।

नवजात मृत्यु दर भी 2019 में प्रति 1,000 जीवित शिशुओं में से 22 के मुकाबले दो अंक घटकर 2020 में 20 रह गई। रिपोर्ट के अनुसार देश के लिए कुल प्रजनन दर (टीएफआर) भी 2019 में 2.1 से घटकर 2020 में 2.0 हो गई है। बिहार में 2020 के दौरान उच्चतम टीएफआर (3.0) दर्ज गई जबकि दिल्ली, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में न्यूनतम टीएफआर (1.4) दर्ज की गई। इसके अनुसार छह राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों, केरल (4), दिल्ली (9), तमिलनाडु (9), महाराष्ट्र (11), जम्मू और कश्मीर (12) और पंजाब (12) ने पहले ही नवजात मृत्यु दर के एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। रिपोर्ट के अनुसार ग्यारह राज्य और केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) - केरल (8), तमिलनाडु (13), दिल्ली (14), महाराष्ट्र (18), जम्मू कश्मीर (17), कर्नाटक (21), पंजाब (22), पश्चिम बंगाल (22), तेलंगाना (23), गुजरात (24) और हिमाचल प्रदेश (24) पहले ही यू5एमआर के एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त कर चुके हैं।

देश में स्वास्थ्य संबंधी संसाधनों की कमी के कारण यह समस्या और बढ़ जाती है। सरकारों ने इस समस्या से निपटने के लिए बहुत सी योजनाएं लागू की है। मगर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी तथा जागरुकता की कमी के कारण शिशुओं की मृत्यु दर में पूर्णतः कमी नहीं आई है। उचित पोषण के भाव में अब भी कई बच्चे दम तोड़ देते है। ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की कमी एवं प्रशिक्षित नर्सों व दाइयों की कमी के कारण भी विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती है। भारत में नवजात बच्चों की मौतों के मामले सरकार के लिए बीते 75 साल बड़ी चुनौती भरे रहे हैं। हालांकि इसमें लगातार कमी आ रही है। सरकार की ओर से जो डाटा जारी किया गया है उसके मुताबिक 1951 में जहां प्रति 1000 नवजात बच्चों में 146 की मौत हो जाती थी। वहीं 2022 में घटकर अब 28 तक आ गई है। ये आंकड़ा उन बच्चों से जुड़ा है जिनकी मौत जन्म के एक साल के अंदर ही कमजोर इम्युनिटी, देखरेख, दवाओं की कमी, वायरस से होने वाली बीमारियां और कुपोषण के चलते हो जाती है।

भारत ने पिछले पांच दशकों में भले ही चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति करते हुए शिशु मृत्यु दर को नियंत्रित किया है। लेकिन आज भी शिशुओं की मौत बड़ा सवाल है। वर्तमान में प्रत्येक एक हजार शिशुओं में से 28 की मौत एक साल का होने से पहले ही हो जाती है। भारत के महापंजीयक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार साल 1971 में भारत की शिशु मृत्यु दर 129 थी। जो साल 2020 में बड़े सुधार के साथ 28 पर आ गई है। पिछले 10 सालों में तो इस में 36 प्रतिशत का सुधार देखने को मिला है। साल 2011 में देश की शिशु मृत्यु दर 44 थी जो अब 28 पर आ गई है। ऐसे में कहा जा सकता है कि देश ने चिकित्सा क्षेत्र में बहुत अधिक उन्नति की है।

आंकड़ों के अनुसार पिछले एक दशक में ग्रामीण क्षेत्र की शिशु मृत्यु दर में सबसे अधिक सुधार हुआ है। 2011 में ग्रामीण क्षेत्र में 48 पर रहने वाली शिशु मृत्यु दर साल 2020 में 31 पर आ गई थी। इसी तरह शहरी क्षेत्रों में 2011 में यह 29 पर पर रहने वाली शिशु मृत्यु दर 2020 में 19 पर आ गई थी। पिछले एक दशक में ग्रामीण क्षेत्रों की शिशु मृत्यु दर में 35 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 34 प्रतिशत की गिरावट आई है। देश के सकल घरेलू उत्पाद का 3.01 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाता है। जो काफी कम है। शिशु सुरक्षा सिर्फ सरकार की ही नहीं वरन हम सभी की जिम्मेदारी है। हम सभी को एकजुट होकर इसके लिए आगे आना होगा तब जाकर हम अपने देश के शिशुओं की सुरक्षा के मामले में अन्य देशों की तुलना में ऊपरी पायदान पर आएंगे।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

 
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