आधुनिक भारत के विश्वकर्मा के रूप में प्रतिष्ठित डॉ. मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरय्या देश सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले महान व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। वे अपने समय के बड़े इंजीनियर, वैज्ञानिक और राष्ट्र निर्माता रहे हैं। उनके महान कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1955 में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।उन्हीं की याद में भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे (अभियंता दिवस) मनाया जाता है। विश्वेश्वरय्या शिक्षा की महत्ता को भलीभांति समझते थे। लोगों की गरीबी व कठिनाइयों का मुख्य कारण वह अशिक्षा को मानते थे। वह किसी भी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने में विश्वास करते थे। डॉ. एम. विश्वेश्वरय्या का जन्म 15 सितम्बर 1861 को, बैंगलोर के कोलर जिले के मुदेनाहल्ली नामक गाँव में हुआ था।
उनके जीवन से जुड़ी यह रोचक घटना।
उस समय की बात है जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। यात्री से भरी एक रेलगाड़ी जा रही थी। यात्रियों में अधिकतर अंग्रेज थे। एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफिर गंभीर मुद्रा में बैठा था।
सांवले रंग और मंझले कद का वह यात्री साधारण वेशभूषा में था इसलिए वहां बैठे अंग्रेज उसे मूर्ख और अनपढ़ समझ रहे थे और उसका मजाक उड़ा रहे थे। पर वह व्यक्ति किसी की बात पर ध्यान नहीं दे रहा था। अचानक उस व्यक्ति ने उठकर गाड़ी की जंजीर खींच दी। तेज रफ्तार में दौड़ती वह गाड़ी तत्काल रुक गई। सभी यात्री उसे भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया और उसने पूछा, ‘जंजीर किसने खींची है?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘मैंने खींची है।’
कारण पूछने पर उसने बताया, ‘मेरा अनुमान है कि यहां से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।’ गार्ड ने पूछा, ‘आपको कैसे पता चला?’ वह बोला, ‘श्रीमान! मैंने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है। पटरी से गूंजने वाली आवाज की गति से मुझे खतरे का आभास हो रहा है। गार्ड उस व्यक्ति को साथ लेकर जब कुछ दूरी पर पहुंचा तो यह देखकर दंग रहा गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं। दूसरे यात्री भी वहां आ पहुंचे। जब लोगों को पता चला कि उस व्यक्ति की सूझबूझ के कारण उनकी जान बच गई है तो वे उसकी प्रशंसा करने लगे। गार्ड ने पूछा, ‘आप कौन हैं?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम है डॉ॰ एम. विश्वेश्वरय्या। नाम सुन सब स्तब्ध रह गए। दरअसल उस समय तक देश में डॉ॰ विश्वेश्वरय्या की ख्याति फैल चुकी थी। लोग उनसे क्षमा मांगने लगे। डॉ॰ विश्वेश्वरय्या का उत्तर था, आप सब ने मुझे जो कुछ भी कहा होगा, मुझे तो बिल्कुल याद नहीं है।
एक राष्ट्र के निर्माण का तरीका एक अच्छे नागरिक का निर्माण करना है। अधिकांश नागरिकों को कुशल, अच्छे चरित्र का होना चाहिए और उनके पास उचित ऊंचे कर्तव्य होने चाहिए। मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरय्या जी