महान चिंतक, दार्शनिक एवं समाज सुधारक- दत्तोपंत ठेंगड़ी | The Voice TV

Quote :

" सुशासन प्रशासन और जनता दोनों की जिम्मेदारी लेने की क्षमता पर निर्भर करता है " - नरेंद्र मोदी

Editor's Choice

महान चिंतक, दार्शनिक एवं समाज सुधारक- दत्तोपंत ठेंगड़ी

Date : 10-Nov-2022

दत्तोपन्त ठेंगडी

भारत के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता एवं भारतीय मज़दूर संघ के संस्थापक थे। भारत के उज्ज्वल राष्ट्रनिर्माण की अभिलाषा रखकर उसके लिए सदैव प्रयत्नरत रहने वाले कुशल संघटक, राष्ट्रप्रेमी संगठनों के शिल्पकार, द्रष्टा विचारवंत, लेखक, संतों के समान त्यागी और संयमित जीवन जीने वाले आदरणीय दत्तोपन्त ठेंगडी ने भारतीय किसानों को सन्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर देने के साथ, राष्ट्र के उत्थान प्रक्रिया में सहयोगी बनने की प्रेरणा देने के मूल विचार से भारतीय किसान संघ की स्थापना की। दत्तोपंत ठेंगडी जी 'भारतीय किसान संघ' के कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्थान हैं।

जीवन परिचय

दत्तोपन्त ठेंगडी का जन्म 10 नवंबर, 1920 को भारत के महाराष्ट्र राज्य में, वर्धा ज़िले के आर्वी शहर में हुआ। इस गांव के एक प्रतिष्ठित नागरिक एवं सुप्रसिद्ध अधिवक्ता बाबुराव दाजीबा ठेंगडी थे तथा माताजी, श्रीमती जानकी देवी, गंभीर आध्यात्मिक अभिरूची से सम्पन्न, साक्षात करूणामूर्ति, और भगवान दतात्रेय की परम भक्त थी। दत्तोपन्त ठेंगडी muds ज्येष्ठ सुपुत्र थे। परिवार में एक छोटा भाई श्री नारायण ठेंगड़ी और एक छोटी बहन श्रीमती अनुसूया थी। बचपन से ही उनके कुशाग्र बुद्धि, और सामाजिक कार्य के संदर्भ में सच्ची लगन की झलक दिखने लगी थी। विद्यार्थी दशा में ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भारत माता के प्रति अपनी वचन बद्धता का परिचय दिया। केवल 15 वर्ष की आयु में ही वे आर्वी तालुका नगरपालिका हाईस्कूल के अध्यक्ष चुने गए। बतौर अध्यक्ष, उन्होंने इन स्कूलों में पढ़ने वाले ज़रूरतमंद छात्रों को आर्थिक मदद करने के लिए एक निधी के निर्माण की पहल की। 1935 में ही उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस केवानर सेनाइस युवा संगठन के आर्वी शहर शाखा का प्रमुख पद सौंपा गया। झुग्गी-झोपडियों में रहने वाले युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में सहभागी होने के लिए, उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना निर्माण करने का कार्य भी युवा दत्तोपंत ने किया। इसी कारण उन्हें 1936 मेंआर्वी गोवनी झुग्गी-झोपडी मंडलका प्रमुख पद भी सौंपा गया। इसी बीच, 1936 से 1938 तक वेहिंदुस्थान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी, नागपुरमें भी सक्रिय रहे।

शिक्षा

सामाजिक और राष्ट्रीय कार्य में सक्रिय होने के साथ ही दत्तोपंत जी ने नागपुर के तत्कालीन मॉरिस कॉलेज (विद्यमान- वसंतराव नाईक समाज विज्ञान संस्थान) से मास्टर ऑफ आर्टस् (एम..) और लॉ कॉलेज (विद्यमान - डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर विधि महाविद्यालय) से वकालत की पदवी (एल. एल. बी.) प्राप्त की। विद्यार्थी दशा में ही1942 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बतौर स्वयंसेवक के रूप में जुडे और आगे चलकर वहीं उनके सारे जीवन कार्य का मूल प्रेरणास्रोत बना।

दत्तोपन्त ने 'गुरुजी' के कहने पर मजदूरों के बीच किया काम

दत्तोपन्त ठेंगड़ी ने संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरुजी के कहने पर मजदूर क्षेत्र में काम करना शुरू किया. इसके लिए उन्होंने 'शेतकरी कामगार फेडरेशन' जैसे संगठनों में जाकर काम सीखा. अपने प्रचारक जीवन की शुरुआत ही ठेंगड़ी ने केरल से की थी. केरल में वामपंथियों के प्रभाव और उनके काम के तरीक़ों को वे भलीभांति जानते थे. इसलिए वे साम्यवादी विचार के खोखलेपन को भी जानते थे. दत्तोपन्त ठेंगड़ी ने 'भारतीय मजदूर संघ' नाम से अराजनीतिक संगठन शुरू किया, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा मजदूर संगठन है. ठेंगड़ी के प्रयास से श्रमिक और उद्योग जगत के नए रिश्ते शुरू हुए. भारतीय मज़दूर संघ ने देश में वामपंथियों के बनाए मिल मालिक-मज़दूर के डिस्कोर्स को ही बदल दिया. वामदलों के नारे थे, 'चाहे जो मजबूरी हो, मांग हमारी पूरी हो' और दुनिया के मजदूरों एक हो, कमाने वाला खाएगा.' वहीं मजदूर संघ ने कहा, 'देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम' और 'मजदूरों दुनिया को एक करो, कमाने वाला खिलायेगा.'

 

भारतीय मज़दूर संघ की स्थापना

1942 से 1944 के दौरान उन्होंने श्री वागमल नंदा सोसायटी, कालीकट, आर्य समाज, कालीकट, हिंदू महासभा, ब्रिटिश मलबार पूअर होम, कालीकट आदि संस्थाओं का कार्यविस्तार बढाने के लिए बहुमूल्य कार्य किया। 1955 में दत्तोपंत जी नेभारतीय मज़दूर संघ’ (बी.एम.एस.) की स्थापना की। एक छोटे संगठन के रूप में शुरू हुए इस मज़दूर संगठन को आज केवल विशाल रूप मिला है, बल्कि आज वह देश का प्रथम क्रमांक का मज़दूर संगठन (यूनियन) बना है। सनातन धर्म के वैचारिक अधिष्ठान, आलौकिक संगठन कौशल्य, परिश्रम की पराकाष्ठा, अचल धयेयनिष्ठा, विजयी विश्वास, और पूज्य श्री गुरूजी के सतत मार्गदर्शन के बल पर, श्रद्धेय दत्तोपंत जी ने, मात्र तीन दशक में ही, उस समय के सबसे बड़े, और कांग्रेस से सम्बन्ध मजदूर संगठन इण्डियन नेशनल ट्रेड युनियन कॉग्रेस INTUC को पीछे छोड़ दिया। सन् 1989 में, भारतीय मजदूर संघ की सदस्य संख्या 31 लाख थी, जो कम्युनिस्ट पार्टियों से सम्बन्ध, एटक AITUC तथा सीटू CITU की fम्मलित सदस्यता के भी अधिक थी। सन् 2002 में, भारतीय मजदूर संघ 81 लाख सदस्यता के साथ भारत का विशालतम श्रम संगठन बन गया, देश के सभी अन्यान्य केन्द्रीय श्रम संगठनों की कुल सदस्यता से कहीं अधिक थी। आज 2012 की गणना के अनुसार भारतीय मजदूर संघ की सदस्य संख्या 1 करोड़ 71 लाख से अधिक है। उन्होंने बड़े परिश्रम किए, अपने कार्यकर्ताओं की सहानुभूति और सहायता थोड़ी बहुत होगी ही, परन्तु उन्होंने अकेले यह कार्य किया,जिसको अंग्रेजी मेंसिंगल हैंडिडकहते हैं। अब भारतीय मजदूर संघ का बोलबाला भी काफी हो गया है और श्रमिक क्षैत्र में यह एक शक्ति के रूप में खड़ा हो गया है। इसका प्रभाव बढता ही जा रहा है। अभी ऐसी स्थिति है कि मजदूर क्षैत्र में काम करने वाले जो अन्यान्य संगठन है, उनके पास, ठोस विचार देने वाले व्यक्ति कम है, वे केवल आंदोलन के भरोसे, ‘हो हल्लामचाकर अपनी लोकप्रियता बढाने का प्रयत्न करते हैं। मजदूर क्षैत्र के लिए ठोस, योग्य विचार देने की क्षमता अभी इस भारतीय मजदूर संघ में ही हमें अधिक मात्रा में दीखती है।’’

सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान कार्य

50 वर्ष से अधिक समय तक दत्तोपंत जी सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान के कार्य में सक्रिय रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सृजनात्मक कार्यो के लिए एक विस्तृत पृष्ठभूमि तैयार करते हुए उन्होंने भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच, सर्व पंथ समादर मंच, स्वदेशी जागरण मंच आदि कई प्रभावशाली संगठनों की स्थापना की, और उनके समृद्ध मार्गदर्शन से इन सभी संगठनों का निरंतर कार्यविस्तार होता रहा। उनके ही प्रयासों से संस्कार भारती, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद, भारतीय विचार केंद्र, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत आदि संगठनों का निर्माण हुआ। देश का शायद ही कोई ऐसा मज़दूर संगठन होगा जिसे दत्तोपंत जी का मार्गदर्शन मिला हो। दलित संघ, रेलवे कर्मचारी संघ, उसी प्रकार कृषि, शैक्षणिक, साहित्यिक आदि विविध क्षेत्रों के संगठनों को उनके सक्रिय और वैचारिक मार्गदर्शन का लाभ मिला।

भारतीय किसान संघ की स्थापना

3-4 मार्च 1979 में, कोटा, राजस्थान में भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय अधिवेशन का आयोजन कर, किसानों के अखिल भारतीय संगठन की स्थापना की। देश के बहुत बड़े, शौषितपीड़ित और असंगठित जन समुदाय में आत्म विश्वास जाग्रत करते हुए उन्होंने आव्हान किया कि, ‘‘हर किसान हमारा नेता है’’ और नारा दिया कि, ‘‘देश के हम भंडार भरेंगे, लेकिन कीमत पूरी लेगें।’’ महापुरूषों के संकल्प सत् संकल्प होते है, और सत् संकल्प, भगवान को पूरे करने होते हैं। सनातन हिन्दू धर्म के अधिष्ठान पर, पूर्णतः गैरराजनैतिक, और प्रखर राष्ट्रवाद से प्रेरित, देश का सबसे बड़ा, सबसे सक्षम, जन संगठन खड़ा हुआ। सामुहिक चर्चा, सामुहिक निर्णय और सामुहिक नेतृत्व के सिद्धान्त और व्यवहार की सफलता की स्थापना की। आज भारतीय किसान संघ, किसानों और राष्ट्र के हितों का सबल, सजग प्रहरी के नाते सभी को ध्यान में आता है।

रचनाएँ

प्रखर बुद्धिमत्ता के धनी दत्तोपन्त ठेंगडी जी का संपूर्ण जीवन - सादी जीवनशैली, अखंड कार्यमग्नता, अपने कार्य से संबंधित विषय का गहरा अध्ययन, सुस्पष्ट विचार और ध्येय निष्ठा - से परिपूर्ण था। उन्होंने 26 हिंदी, 12 अंग्रेज़ी और 2 मराठी पुस्तकों का लेखन किया। उनकी ये पुस्तकें उनके राष्ट्र कार्य की मनोगाथा हैं। उनकी ‘राष्ट्र’ और ‘ध्येयपथ पर किसान’ ये दो पुस्तकें तो कार्यकर्ताओं के लिए गीता के समान पथ-प्रदीपक मानी जाती हैं।

विदेश यात्रा

दत्तोपन्त ठेंगडी जी भारतीय संसद के वरिष्ठ सभागृह राज्यसभा के एक बार सदस्य भी रह चुके थे। वे 1969 में संसदीय शिष्टमंडल के साथ तत्कालीन सोवियत संघ और हंगरी गये थे। 1977 में स्विटज़रलैंड में आयोजित अंतरराष्ट्रीय मज़दूर संघटनाओं के परिषद में, और जिनेवा में हुए द्वितीय अंतरराष्ट्रीय वर्णभेद विरोधी परिषद में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया। 1979 में उन्हें युगोस्लाविया में, वहाँ के मज़दूर संगठन ने, उनके देश के रोजगार नीति के संदर्भ में अभ्यास करने के लिए आमंत्रित किया था। अमेरिका ने भी दत्तोपंत जी को, अमेरिकी मज़दूर संगठनों के आंदोलनों का अभ्यास करने के लिए आमंत्रित किया था। उसी वर्ष उन्हें कनाडा और ब्रिटेन में भी आमंत्रित किया गया था। 1985 में ये ऑल चाइना फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स के आमंत्रण पर चीन गये और भारतीय मज़दूर संघ के प्रतिनिधियों का नेतृत्व भी किया था। जकार्ता (इंडोनेशिया) में हुए अंतरराष्ट्रीय मज़दूर संगठन के दसवें क्षेत्रीय परिषद में भी वे उपस्थित थे। इसी वर्ष वे बांगला देश, ब्रह्मदेश (म्यांमार), थाइलैंडमलेशियासिंगापुरकेन्या, युगांडा, टांझानिया आदि देशों में भी गये थे। जर्मनी के फ्रँकफर्ट में अगस्त1992 में हुए पाँचवें यूरोपियन हिंदू परिषद में, और अमेरिका में आयोजित वर्ल्ड विज़न 200 परिषद में भी वे शामिल हुए थे।

चीन और रूस दत्तोपन्त से करते थे विचार-विमर्श


ठेंगड़ी दुनिया में कहीं भी जाते थे तो हर जगह मजदूर आंदोलनों के साथ-साथ वहां की सामाजिक स्थिति का अध्ययन भी करते थे. इसी कारण चीन और रूस जैसे कम्युनिस्ट देश भी उनसे श्रमिक समस्याओं पर परामर्श करते थे. 26 जून, 1975 को देश में आपातकाल लगने पर ठेंगड़ी ने भूमिगत रहकर 'लोक संघर्ष समिति' के सचिव के नाते तानाशाही विरोधी आंदोलन को संचालित किया. जनता पार्टी की सरकार बनने पर जब अन्य नेता कुर्सियों के लिए लड़ रहे थे, तब ठेंगड़ी ने मजदूर क्षेत्र में काम करना पसंद किया.

दत्तोपन्त ने 2002 में ठुकरा दिया था 'पद्मभूषण'

एनडीए सरकार की ओर से 2002 में दिए जा रहे 'पद्मभूषण' को उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि जब तक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार और गुरुजी को 'भारत रत्न' नहीं मिलता, तब तक वह कोई सम्मान स्वीकार नहीं करेंगे. दत्तोपंत ठेंगड़ी कई भाषाओं के जानकार थे. इनमें लक्ष्य और कार्य, एकात्म मानवदर्शन, ध्येयपथ, बाबासाहब भीमराव अंबेडकर, सप्तक्रम, हमारा अधिष्ठान, राष्ट्रीय श्रम दिवस, कम्युनिज्म अपनी ही कसौटी पर, संकेत रेखा, राष्ट्र, थर्ड वे प्रमुख हैं.

निधन

दत्तोपन्त ठेंगडी जी का निधन 14 अक्टूबर, 2004 को महाराष्ट्र के पुणे नगर में हुआ।

 

 

 

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload

Advertisement









Advertisement