संत विनोबा भावे का जीवन परिचय
भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और गांधीवादी नेताओं में संत विनोबा भावे का नाम अग्रणी है। संत विनोबा भावे को महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माना जाता है और भारत का राष्ट्रीय अध्यापक भी कहा जाता है, जिस कारण लोग संत विनोबा भावे को आचार्य कहकर भी संबोधित करते हैं। आचार्य विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा ज़िले के गागोड गांव में, एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका मूल नाम विनायक नरहरि भावे था। उनके पिता का नाम, नरहरि शंभू राव व माता का नाम, रुक्मिणी देवी था। उन
की माता, एक विदुषी महिला थी। आचार्य विनोबा भावे का ज़्यादातर समय धार्मिक कार्य व आध्यात्म में बीतता था। बचपन में वह अपनी मां से संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर और भगवत् गीता की कहानियां सुनते थे। इसका प्रभाव, उनके जीवन पर काफी गहरा पड़ा और इस वजह से उनका रुझान आध्यात्म की तरफ बढ़ गया। शिक्षा
विनोबा भावे ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रकृति के बीच अपने घर गागोडे में प्राप्त की। उसके पिता बड़ौदा में अकेले रह रहे थे।
उन्होंने 1905 में अपने परिवार को वहां बुलाया। तीन साल तक विनोबा भावे के पिता ने उन्हें अंग्रेजी, गणित और अन्य विषय पढ़ाया।
विनोबा ने 1910 में कक्षा 4 के छात्र के रूप में औपचारिक शिक्षा शुरू की। प्रारंभ में, उन्होंने अपनी कक्षा की क्विज़ और परीक्षाओं में सराहनीय प्रदर्शन किया। हालाँकि, जैसे-जैसे उनका सामान्य अध्ययन विस्तृत होता गया, वैसे-वैसे उनका पाठ्यक्रम कार्य कम होता गया। तब भी वह अन्य छात्रों से बहुत होशियार थे।
वे समाचार पत्रों के भी बड़े प्रशंसक थे, विशेषकर लोकमान्य तिलक के प्रसिद्ध मुखपत्र केसरी के। उन्होंने संतों के लेखन और घोषणाओं के अलावा राष्ट्रवादी और राजनीतिक साहित्य का भी सेवन किया।
विनोबा भावे का निजी जीवन और देश सेवा की ओर आकर्षण
गांधी की शिक्षाओं ने भावे को भारतीय गांव के जीवन में सुधार के लिए समर्पित तपस्या के जीवन का नेतृत्व किया।
विनोबा भावे का शिक्षा में योगदान
आचार्य विनोबा ने शैक्षिक लक्ष्यों को स्थापित किया है जो सर्वोदय समाज के अनुरूप हैं। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों में ज्ञान की इच्छा, स्वतंत्र रूप से सोचने की क्षमता, आज्ञाकारिता, स्वतंत्रता, आत्म-नियंत्रण, परोपकारिता , विनय और सामाजिक कर्तव्य की भावना पैदा करना होना चाहिए।
विनोबा भावे कहते थे कि मनुष्य को निरंतर सक्रिय रहना चाहिए क्योंकि केवल गतिविधि के माध्यम से ही वह ज्ञान प्राप्त कर सकता है, और केवल ज्ञान के माध्यम से ही वह सत्य को प्राप्त कर सकता है।
जेल यात्रा
गाँधी जी के सानिध्य और निर्देशन में विनोबा के लिए ब्रिटिश जेल एक तीर्थधाम बन गई। 1921 से लेकर 1942 तक अनेक बार जेल यात्राएं हुई। 1922 में नागपुर का झंडा सत्याग्रह किया। ब्रिटिश हुकूमत ने सीआरपीसी की धारा 109 के तहत विनोबा को गिरफ़्तार किया। इस धारा के तहत आवारा गुंडों को गिरफ्तार किया जाता है। नागपुर जेल में विनोबा को पत्थर तोड़ने का काम दिया गया। कुछ महीनों के पश्चात अकोला जेल भेजा गया। विनोबा का तो मानो तपोयज्ञ प्रारम्भ हो गया। 1925 में हरिजन सत्याग्रह के दौरान जेल यात्रा हुई। 1930 में गाँधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय कांग्रेस ने नमक सत्याग्रह को अंजाम दिया।
गाँधी जी और विनोबा भावे
12 मार्च 1930 को ने दांडी मार्च शुरू किया। विनोबा फिर से जेल पंहुच गए। इस बार उन्हें धुलिया जेल रखा गया। राजगोपालाचार्य जिन्हें राजाजी भी कहा जाता था, उन्होंने विनोबा के विषय में ‘यंग इंडिया’ में लिखा था कि विनोबा को देखिए देवदूत जैसी पवित्रता है उसमें। आत्मविद्वता, तत्वज्ञान और धर्म के उच्च शिखरों पर विराजमान है वह। उसकी आत्मा ने इतनी विनम्रता ग्रहण कर ली है कि कोई ब्रिटिश अधिकारी यदि पहचानता नहीं तो उसे विनोबा की महानता का अंदाजा नहीं लगा सकता। जेल की किसी भी श्रेणी में उसे रख दिया जाए वह जेल में अपने साथियों के साथ कठोर श्रम करता रहता है। अनुमान भी नहीं होता कि यह मानव जेल में चुपचाप कितनी यातनाएं सहन कर रहा है।
11 अक्टूबर 1940 को गाँधी द्वारा व्यक्तिगत सत्याग्रह के प्रथम सत्याग्रही के तौर पर विनोबा को चुना गया। प्रसिद्धि की चाहत से दूर विनोबा इस सत्याग्रह के कारण बेहद मशहूर हो गए। उनको गांव गांव में युद्ध विरोधी तक़रीरें करते हुए आगे बढ़ते चले जाना था। ब्रिटिश सरकार द्वारा 21 अक्टूबर को विनोबा को गिरफ़्तार किया गया। 9 अगस्त 1942 को वह गाँधी और कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं के साथ गिरफ़्तार किये गये। इस बार उनको पहले नागपुर जेल में फिर वेलूर जेल में रखा।
भूदान आन्दोलन
विनोबा भावे का ‘भूदान आंदोलन’ का विचार 1951 में जन्मा। जब वह आन्ध्र प्रदेश के गाँवों में भ्रमण कर रहे थे, भूमिहीन अस्पृश्य लोगों या हरिजनों के एक समूह के लिए ज़मीन मुहैया कराने की अपील के जवाब में एक ज़मींदार ने उन्हें एक एकड़ ज़मीन देने का प्रस्ताव किया।
विचार
· मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है।
· जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती।
· प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोपलें फूटते रहना। नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं।
· जब तक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है।
· हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है।
· सिर्फ धन कम रहने से कोई गरीब नहीं होता, यदि कोई व्यक्ति धनवान है और इसकी इच्छाएं ढेरों हैं तो वही सबसे गरीब है।
· हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है।
· तगड़े और स्वस्थ व्यक्ति को भीख देना, दान करना अन्याय है। कर्महीन मनुष्य भिक्षा के दान का अधिकारी नहीं हो सकता।
· संघर्ष और उथल पुथल के बिना जीवन बिल्कुल नीरस बन कर रह जाता है। इसलिए जीवन में आने वाली विषमताओं को सह लेना ही समझदारी है।
पुरस्कार
· विनोबा को 1958 में प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
· भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1983 में मरणोपरांत सम्मानित किया।
मृत्यु
विनोबा भावे की मृत्यु 15 नवंबर 1982 को वर्धा, महाराष्ट्र में हुआ था। ।