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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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प्रेरक प्रसंग:- हेय कौन ?

Date : 30-Jul-2024

 भगवान् बुद्ध विचरते हुए वैशाली के वन - विहार में आये | नगर में उनके पहुंचने की खबर मिनटों में फ़ैल गयी | नगर के बड़े- बड़े श्रेष्ठिजन उनके दर्शन को गए | हर किसी की इच्छा थी की तथागत उसका निमंत्रण स्वीकार कर उसके घर भोजन करने पधारें | वैशाली की सबसे दूर गणिका आम्रपाली भी बुद्धदेव  के तपस्वी जीवन को देखकर प्रभावित हो चुकी थी तथा उसे अपने घृणित जीवन से घृणा हो चुकी थी | उसने भी तथागत को निमत्रण दिया और वे उसके घर भी आये | इस पर उनके शिष्यों ने बुरा मानकर उनसे स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने एक गणिका के घर जाकर बड़ा ही अनुचित कार्य किया है |

यह देखकर तथागत उन सबसे बोले, "श्रावकों  आप लोगों को आश्चर्य है कि मैंने गणिका के घर कैसे भोजन किया | उसका कारण यह है कि वह यद्यपि गणिका है, किन्तु उसने अपने को पश्चाताप की अग्नि में जलाकर निर्मल कर लिया है | जिस धन को पाने के लिए मनुष्य मनौतियां करता है और न जाने क्या-क्या तरीके इस्तेमाल करता है, उसी को आम्रपाली ने तुच्छ मानकर लात मारी है और अपना घृणित जीवन त्याग दिया है | क्या अब भी उसे हेय  माना जाये ?  यह सुन सभी शिष्यों को पश्चाताप हुआ और उन्होंने तथागत से क्षमा मांगी|

 
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