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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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शिक्षाप्रद कहानी:- अहंकार का कुफल

Date : 21-Sep-2024

 मिरज का अधिकारी दिलेर खान रात में गश्त लगाता जयराम स्वामी के कीर्तन में जा पहुंचा | स्वामी कह रहे थे – “साधु के रास्ते से जाने पर तत्काल राम का दर्शन मिलता है |“

खान ने सुना और दूसरे दिन तड़के जयराम स्वामी को बुलवाया | खान ने उनसे कहा- “साधु जिस रास्ते से जाए,  मैं उस रास्ते से जाने को तैयार हूँ | मुझे आप राम का दर्शन करा दें | नहीं तो झूठा प्रचार करने के लिए आपको दंड भुगतना पड़ेगा | जाइये कल तक इसकी व्यवस्था कीजिए |”

जयराम स्वामी बड़े ही असमंजस में पड़ गए | कुछ सोचकर वे नदी किनारे पर गए |  समर्थ गुरु रामदास वहां पर स्नान आदि कर रहे थे | जयराम गुरु ने उनके सम्मुख अपनी समस्या प्रकट की और प्रार्थना  कि की किसी भी प्रकार से इस समस्या से उबरने में सहायता कीजिए | समर्थ ने पहले तो अपनी असमर्थता जताई, किन्तु फिर भी वे उनकी सहायता करने के लिए तैयार हो गए|

खान को सूचना भेजी गयी- “ आज ही तुम्हें राम के दर्शन कराये जायेंगे | हम लोग अपने नित्य की पूजा पाठ से निवृत्त होकर चल रहे हैं | तुम हमारे पीछे- पीछे आना |”

खान तैयार हो गया | समर्थ और जयराम स्वामी भी अपने- अपने कार्य से निवृत्त हो चल पड़े | खान उनके पीछे-पीछे चलने लगा |

कुछ दूर जाने पर मिरज का किला आया | किले के बाहर कुछ छेद बने थे, जो भीतर से बंदूकों का निशाना साधने के काम आते थे | समर्थ सूक्ष्म रूप बनाकर चट से उन छिद्रों के भीतर घुस गए | भीतर से ही जयराम स्वामी से कहा- “ चले आओ |”

यह सुनते ही वे भी भीतर चले गए | फिर समर्थ ने खान से कहा- “खान! तुम भी जल्दी इसी रास्ते से चले आओ, साधु संत इसी रास्ते से आये हैं | देखो ये रामचंद्र खड़े हैं | जल्दी आओ और उनके दर्शन कर लो |”

खान ने बहुत परिश्रम किया, किन्तु वह किसी भी प्रकार उन छिद्रों से पार जाने में समर्थ नहीं हो सका | उसको अपनी मूर्खता और दुष्टता पर बड़ी लज्जा आने लगी |

अंत में खान हार गया | उसने समर्थ से क्षमा याचना की और वचन दिया कि वह भविष्य में किसी हिन्दू साधु से छेड़छाड़ नहीं करेगा | इस प्रकार खान को अपने कथन से मुक्ति मिल गयी|

 
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