धज गाँव: पर्यावरण और प्रगति का संतुलन स्थापित करने वाला गुजरात का पहला इको विलेज
गांधीनगर – विश्व वन दिवस, जो 21 मार्च को मनाया जाता है, इस वर्ष ‘फॉरेस्ट्स एंड फूड’ थीम पर केंद्रित है, जिससे खाद्य सुरक्षा, पोषण और आजीविका में जंगलों की अहम भूमिका उजागर होती है। इसी संदर्भ में गुजरात के सूरत जिले का धज गाँव, जो राज्य का पहला इको विलेज घोषित हुआ, पर्यावरणीय संरक्षण और विकास का एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
धज गाँव: एक पर्यावरणीय क्रांति
सूरत जिले की मांडवी तहसील में स्थित धज गाँव पूर्णतः वनवासी बहुल क्षेत्र में आता है। 2016 में इसे गुजरात इकोलॉजी कमिशन (GEC) द्वारा इको विलेज घोषित किया गया था, जिससे यह सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण का केंद्र बना। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में अब ओलपाड तहसील के नघोई गाँव को भी इको विलेज के रूप में विकसित करने की योजना बनाई जा रही है।
पहले धज गाँव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव था। वहाँ न तो पक्की सड़कें थीं और न ही बिजली की सुविधा। ग्रामीणों की आजीविका मुख्य रूप से वन संसाधनों पर निर्भर थी। लेकिन इको विलेज प्रोजेक्ट के तहत गाँव में कई सुविधाएँ विकसित की गईं, जिससे इसका कायाकल्प हो गया।
इको विलेज बनने के बाद हुए प्रमुख बदलाव
धज गाँव में कई पर्यावरण हितैषी उपाय लागू किए गए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- बायोगैस और गोबर गैस यूनिट – इससे ग्रामीणों को धुएँ से मुक्त रसोई सुविधा मिली।
- भूमिगत जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन – जल संकट से निपटने के लिए जल प्रबंधन तकनीकों को अपनाया गया।
- सौर ऊर्जा से संचालित स्ट्रीट लाइट्स – स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा मिला।
- पशुपालन और महिला सशक्तिकरण – दूध मंडली और पशुपालन को बढ़ावा देकर ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई।
- प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ – गाँव में कच्चे मकानों के स्थान पर पक्के मकान बनाए गए।
वन विभाग और सामुदायिक भागीदारी का योगदान
मांडवी उत्तर रेंज के 10,000 हेक्टेयर क्षेत्र में 27 गाँव आते हैं, जिनमें से धज गाँव को इको विलेज के रूप में विकसित किया गया। वन विभाग ने गाँव में सोलर लाइट्स, मोबाइल कनेक्टिविटी के लिए टावर, श्मशान गृह, और ठोस कचरा प्रबंधन जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराईं।
वन विभाग के मार्गदर्शन में वन कल्याण समिति गठित की गई, जिसके सदस्य जंगलों का संरक्षण करते हैं। समिति के अध्यक्ष धर्मेशभाई वसावा के अनुसार, "मोबाइल टावर लगने से अब संचार व्यवस्था सुगम हो गई है, जिससे शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच आसान हुई है।"
महिलाओं और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम
- गोबर गैस यूनिट से धुएँ से मुक्ति: गाँव की सारूबेन वसावा बताती हैं कि अब उन्हें लकड़ी जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जिससे उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।
- पशुपालन और डेयरी से आय: उषाबेन वसावा, जो धज महिला दूध मंडली की सचिव हैं, कहती हैं कि "गाँव की महिलाएँ दूध बेचकर हर महीने 10-12 हजार रुपये कमा रही हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर बन रही हैं।"
- कृषि में नवाचार: प्राकृतिक खेती और टपक सिंचाई प्रणाली को बढ़ावा दिया गया है, जिससे किसान कम लागत में अधिक उत्पादन कर पा रहे हैं।
इको विलेज: सतत विकास की दिशा में एक प्रयास
इको विलेज परियोजना का उद्देश्य ग्रामीण समुदायों की पारंपरिक आजीविका को संरक्षित रखते हुए पर्यावरणीय संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना है। इस पहल में निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान दिया गया:
- जल संरक्षण के लिए तालाबों का निर्माण
- ऊर्जा स्रोतों में सौर ऊर्जा और बायोगैस का उपयोग
- ठोस कचरे के पुनरुपयोग की व्यवस्था
- जैविक खेती और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर जोर
भारत के अन्य मॉडल इको विलेज
भारत में कई गाँव सतत विकास के प्रतीक बन चुके हैं, जिनमें शामिल हैं:
- मध्य प्रदेश का भगुवार
- तमिलनाडु के ओरोविले व ओडनथुराई
- नागालैंड का खोनोमा
- राजस्थान के पिपलांत्री व आरनाजारना
- महाराष्ट्र के गोवर्धन व हिवारे बाजार
- ओडिशा का सिद्धार्थ
- जम्मू-कश्मीर का साग
- गुजरात का धज गाँव
निष्कर्ष
धज गाँव का इको विलेज मॉडल यह दर्शाता है कि पर्यावरण संरक्षण और विकास साथ-साथ चल सकते हैं। वन विभाग, सरकार और समुदाय के संयुक्त प्रयासों से यह गाँव सतत विकास और स्वावलंबन का प्रतीक बन चुका है। धज गाँव की सफलता अन्य ग्रामीण क्षेत्रों को भी पर्यावरण-संरक्षित विकास के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर रही है।