कलकत्ता के कालेज के कुछ विद्यार्थी एक दिन वहाँ फोर्ट विलियम्स किला देखने गए। सहसा उनके एक साथी के शरीर में कुछ पीड़ा होने लगी। उसने अपने मित्रों को अपनी पीड़ा के बारे में बताया और वह सीढ़ियों पर बैठ गया, आगे जाने में असमर्थ था। किन्तु उसके साथियों ने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया। उसकी हँसी उड़ाते हुए वे ऊपर चले गए। ऊपर पहुंचकर एक विद्यार्थी के मन में संदेह हुआ – “कहीं सच में ही तो उसे पीड़ा नहीं है।” वह लौट पड़ा।
नीचे आकर देखता है कि वह विद्यार्थी सीढ़ियों पर मूर्छित पड़ा है। ज्वर से उसका शरीर जल रहा है । उसने अपने साथियों को नीचे बुलाया और उनमें से किसी से दौड़कर एक गाड़ी मंगवाई और उसको गाड़ी में रखकर घर ले गया। अन्य साथियों को अब उसकी दशा देखकर पश्चाताप होने लगा था।
जो विद्यार्थी बीमार था, उसका नाम तो ज्ञात नहीं, किन्तु जिसने उसकी सहायता कि थी,उसको घर तक पहुँचाया था, उस विद्यार्थी का नाम था नरेन्द्र । आगे चलकर उसी नरेन्द्र को संसार में स्वामी विवेकानंद के नाम से जाना गया, जिसने भारत की गौरवशाली संस्कृति से विश्व को अवगत कराया।