भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान् क्रान्तिकारी थे। स्वतंत्रत भारत के निर्माण के लिए भारत-माता के कितने शूरवीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, उन्हीं महान् शूरवीरों में ‘अमर शहीद मदन लाल ढींगरा’ का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है। अमर शहीद मदन लाल ढींगरा महान् देशभक्त, धर्मनिष्ठ क्रांतिकारी थे। उन्होंने भारत माँ की आज़ादी के लिए जीवन-पर्यन्त अनेक प्रकार के कष्ट सहन किए, परन्तु अपने मार्ग से विचलित न हुए और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए फाँसी पर झूल गए।
मदनलाल ढींगरा का जन्म
मदन लाल ढींगरा का जन्म सन् 1883 में पंजाब में एक संपन्न हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता सिविल सर्जन थे और अंग्रेज़ी रंग में पूरे रंगे हुए थे; परंतु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था।
मदनलाल ढींगरा की शिक्षा
मदनलाल ने अमृतसर के म्युनिसिपल कालेज से आर्ट्स मे प्रथम वर्ष पास किया और आगे पढ़ने के लिए लाहौर के गवर्मेंट कालेज में भर्ती हो गए। वहां कुछ ही महीने पढ़े होंगे कि अमृतसर वापस बुला लिए गए और घर के व्यापार में लगा दिए गए। दुकान पर वह ज्यादा बैठ न सके और उन्होंने एक दो और दफ्तरों में नौकरियां कीं।
इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए मदनलाल को मई 1906 में ब्रिटेन भेजा गया था उनके भाइयों के अनुसार, उस समय तक राजनीति से उनका दूर का भी संबंध नहीं था। (मोहनलाल ढींगरा और बिहारीलाल ढीगरा द्वारा 7 जुलाई 1909 को वाइसराय को भेजे गए पत्र के अनुसार।) मदनलाल के सबसे बड़े भाई कुंदनलाल अपने व्यापार के संबंध में उन दिनों लंदन में ही थे, दोनों भाई कुछ समय तक साथ रहे और मदनलाल ने 19 अक्तूबर से लंदन के यूनिवर्सिटी कालेज आफ इंजीनियरिंग में पढ़ना शुरू कर दिया। वह जून 1909 के अंतिम दिन तक कालेज गए।
स्वतंत्रता संग्राम के लिए निकले तो परिवार ने नाता तोड़ा
वह कम उम्र से ही अंग्रेजों की बेड़ियों में जकड़े देश को आजाद कराना चाहते थे. वह देश में स्वतंत्रता संग्राम की अलख जलाने के लिए निकल पड़े थे. ऐसा करने के आरोप में उन्हें लाहौर के कॉलेज से निकाल दिया गया था. स्वतंत्रता संग्राम के पथ पर चलने के कारण परिवार ने भी उनसे नाता तोड़ दिया था. नतीजा, उन्हें अपना जीवन चलाने के लिए तांगा चलाना पड़ता था.
कुछ समय मुंबई में बिताने के बाद बड़े भाई की सलाह पर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड जाने का निश्चय किया. 1906 में उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में एडमिशन लिया. विदेश में पढ़ाई के लिए उन्हें भाई और इंग्लैंड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादियों ने मदद की. यहां रहते हुए ही वो राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा से मिले. कहा जाता है कि सावरकर ने मदनलाल ढींगरा को क्रांतिकारी संस्था भारत का सदस्य बनाया. इसके साथ हथियार चलाने का ट्रेनिंग दी.
मदनलाल और वीर सावरकर :
इंडिया हाउस नामक एक संगठन में, जो उन दिनों भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र था, वहां मदनलाल ढींगरा भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्णवर्मा के सम्पर्क में आए. उन दिनों सावरकर जी बम बनाने और अन्य शस्त्रों को हासिल करने की कोशिशें कर रहे थे. सावरकर जी मदनलाल की क्रांतिकारी भावना और उनकी इच्छाशक्ति से बहुत प्रभावित हुए. सावरकर ने ही मदनलाल को अभिनव भारत मण्डल का सदस्य बनवाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया.
इसके बाद मदनलाल, वीर सावरकर के साथ मिलकर काम करने लगे. कई लोग मानते हैं कि उन्होंने वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न को भी मारने की कोशिश की थी पर वह कामयाब नहीं हो पाए थे. इसके बाद सावरकर जी ने मदनलाल को साथ लेकर कर्ज़न वाईली को मारने की योजना बनाई और मदनलाल को साफ कह दिया गया कि इस बार किसी भी हाल में सफल होना है.
मदनलाल ढींगरा द्वारा कर्जन वायली की हत्या
मदनलाल व्यक्तिगत रूप से भी कर्जन वायली से असंतुष्ट थे, क्योंकि उसने उनके पिता के अनुरोध पर, उन्हें इंडिया हाउस के प्रभाव से दूर रहने की सलाह दी थी। मदनलाल के छोटे भाई भजनलाल उन दिनों कानून पढ़ने के लिए लंदन में ही थे और वह अपने पिता को अपने बड़े भाई की गतिविधियों के बारे में नियमित रूप से जानकारी देते रहते थे। कर्जन वायली की हत्या के निश्चय के बाद, मदनलाल ने चांदमारी का अभ्यास शुरू कर दिया और कुछ ही समय में वह रिवाल्वर चलाने में सिद्धहस्त हो गए। ऐन हत्या के दिन तक उन्होंने, चांदमारी का अभ्यास करके ११ शाट मारे थे।
कर्जन वायली को 1 जुलाई1909 को लंदन के इम्मीरियल इंस्टीट्यूट के जहांगीर हाल में एक समारोह में भाग लेना था। उसी दिन उनकी हत्या करने का निश्चय किया गया। मदनलाल जेब में छः चेम्बर का रिवाल्वर लेकर समारोह में सम्मिलित हुए। संगीत कार्यक्रम के अंत में जब कर्जन वायली चलने को हुए तब मदनलाल ने उनकी ओर बढ़कर, अत्यंत निकट से, लगातार पांच गोलियां चलाई जिससे कर्जन वायली फौरन ही मर गया। एक पारसी डाक्टर कावस ललकाका ने मदनलाल को पकड़ना चाहा, किंतु छठी गोली उनको मार दी गई। वह कुछ दिनों के बाद मर गए। कर्जन वायली की हत्या से हाल में खलबली मच गई। मदनलाल के रिवाल्वर फेंकते ही उन्हें पकड़ लिया गया था।
उस समय घटना स्थल पर एक और डाक्टर उपस्थित था। उसने मुकदमें के दौरान यह स्वीकार किया कि हत्या के बाद जब हाल में प्रत्येक व्यक्ति का दम फूल रहा था, मदनलाल शांत एवं अक्षुब्ध थे, जैसे कुछ हुआ ही न हो। इस प्रकार मदनलाल ने कर्जन वायली की हत्या करके ब्रिटिश अधिकारियों को सचेत कर दिया कि खुदीराम बसु (1889-1908), कन्हाई लाल दत्त (1887-1908)और सत्येंद्रनाथ बसु को (फांसी 1908) फांसी पर चढ़ा देने वाले ब्रिटिश अधिकारी अब अपने देश में भी सुरक्षित नहीं है। भारतीय क्रांतिकारियों ने इस घटना के पूर्व भारत में कई ब्रिटिश अत्याचारी अधिकारियों की हत्याएं की थीं, किंतु किसी भारतीय द्वारा ब्रिटेन में की गई यह पहली हत्या थी। ब्रिटेन में इसी तरह की दुसरी घटना लगभग 31 वर्ष बाद 13मार्च 1940 को हुई, जब उधमसिंह (1898-1940) ने जलियांवाला बाग कांड का बदला लेने के लिए पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सर माइकल ओ-डायर की लंदन के कैक्सटन हाल में हत्या की। इस कांड के बाद उधमसिंह को भी फांसी दी गई थी।
कर्जन वायली की हत्या से, ब्रिटेन और भारत में सनसनी फैल गई। मदनलाल के पिता ने, 4 जुलाई को वाइसराय के निजी सचिव को भेजे गए पत्र में लिखा कि मदनलाल मेरा लड़का नहीं है। उस मुर्ख ने मेरे मुंह पर कालिख पोत दी है। मजे की बात यह है कि घर वालों ने, मदनलाल को बचाने की अपेक्षा अदालत में अपनी राजभक्ति प्रदर्शित करने के लिए वकील नियुक्त किया। कर्जन वायली की हत्या की निंदा करने के लिए ब्रिटिश भक्तों ने कैक्सटन हाल में सभा की। ब्रिटेन में उपस्थित मदनलाल के दोनों भाइयों ने सबके सामने घटना की निंदा की। सभा में निंदा प्रस्ताव पढ़ा गया। विनायक दामोदर सावरकर ने प्रस्ताव का विरोध किया। तब पास खड़े एक अंग्रेज ने सावरकर के मुंह पर मुक्का मारा। सावरकर के मित्र एम.पी.बी.टी. आचार्य (मन्डयम प्रतिवादी थिरुमल आचार्य) पास ही खड़े थे, उन्होंने लाठी से अंग्रेज़ पर प्रहार किया। सभा में गड़बड़ी मच गई और प्रस्ताव पास न हो सका। इसके विपरीत, रविवार 4जुलाई1909 को इंडिया हाउस सोसाइटी की बैठक में मदनलाल की, उनके कार्य के लिए प्रशंसा की गई।
मदनलाल ने न्यायालय के सामने जो वक्तव्य दिया था उससे भी खलबली मची थी। उस ऐतिहासिक दस्तावेज में उन्होंने एक अंग्रेज की हत्या के जुर्म को स्वीकार करते हुए कहा था कि यह कदम मैने जानबूझकर और विशेष उद्देश्य से उठाया है। भारतीय नवयुवकों को काला पानी और फांसी की अमानुषिक सजाओं के विरुद्ध यह मेरा नम विरोध है। उन्होंने अपने वक्तव्य में स्पष्ट कर दिया था कि इस विषय में उन्होंने सिवाय अपनी अंतरात्मा के किसी से मंत्रणा नहीं की, सिवाए अपने कर्तव्य के किसी के साथ षड्यंत्र नहीं किया। मुकदमें में भी यह सिद्ध न हो सका कि वायली हत्याकांड में किसी और का हाथ था।
मदनलाल ढींगरा के कोर्ट को दिए गए बयान
मदनलाल ने आपने वक्तव्य में कहा था – “मेरी धारणा है कि जिस राष्ट्र को उसकी इच्छा के विरुद्ध विदेशी भालों की सहायता से गुलाम बनाया जाता है वह सदा ही युद्ध की अवस्था में रहता है। मेरे लिए खुली लड़ाई संभव न थी। इसलिए मैंने एकाएक प्रहार किया। मुझे तोप न मिली, रिवाल्वर निकाला और गोली मार दी।“
“हिंदू होने के कारण मैं अनुभव करता हूं कि मेरे राष्ट्र का दासत्व मेरे परमात्मा का अपमान है। मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए किया गया कार्य कृष्ण की सेवा है। मैं न धनी हूं न ही योग्य। इसलिए मैरे जैसा गरीब बेटा माता की मुक्ति की वेदी पर अपने रक्त को छोड़कर अन्य कुछ भेंट नहीं कर सकता। इस कारण मैं अपने को बलि देने के विचार पर प्रसन्न हो रहा हूँ।“
“आत्मा अमर है। यदि मेरे देशवासियों में से हर एक मरने से पूर्व कम से कम दो अंग्रेजों की जान ले ले तो माता की मुक्ति एक दिन का काम है|”
“जब तक हमारा देश स्वतंत्र नहीं हो जाता-श्रीकृष्ण इन शब्दों के द्वारा हमें प्रबोधित करते ही रहेंगे-यदि तुम युद्ध करते हुए मर जाते हो तो तुम्हें स्वर्ग प्राप्त होगा, यदि सफल होते हो तो पृथ्वीतल पर राज्य करोगे।“
“मेरी हार्दिक प्रार्थना है-मैं अपनी माता से फिर जन्म लूं और फिर इसी पुनीत कार्य के लिए मरू, जब तक कि मेरा उद्देश्य पूरा न हो जाए और मातृभूमि, मानवता के हित तथा परमात्मा के गौरव के लिए, मुक्त न हो जाए।“
मदनलाल ढींगरा की फांसी
2 जुलाई को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किए जाने पर उन्हें एक सप्ताह के लिए पुलिस हिरासत में दे दिया गया। तत्पश्चात् ओल्ड बैली की सेशन अदालत में उन पर मुकदमा चला। मुकदमे के निर्णय के बारे में किसी को संदेह नहीं था। उन दिनों लंदन में ही दीवारों पर लगे पोस्टरों में कहा गया था कि “ढीगरा को फांसी दी जाए। उन्होंने स्वयं ही इसकी इच्छा व्यक्त की है।“ न्यायालय ने भी 23 जुलाई 1909को फांसी की सजा सुना दी और 17 अगस्त 1909फांसी का दिन निश्चित कर दिया।
मदनलाल ने निर्णय के पूर्व इच्छा व्यक्त की कि उसके शरीर का दाह-संस्कार हिंदू रीति के अनुसार किया जाए। किसी अहिंदु या उनके सगे भाइयों को उसे छने न दिया जाए। संस्कार के समय वेद मंत्रों का उच्चारण किया जाए, और उनकी सभी वस्तुओं का नीलाम करके प्राप्त धन को राष्ट्र कोश में जमा कर दिया जाए। किंतु अधिकारियों ने इनमें से किसी भी इच्छा को पूरा नहीं किया। मदनलाल के यथोचित दाह-संस्कार के लिए आए निवेदन पत्रों को भी अस्वीकार कर दिया गया। निर्धारित दिन 17 अगस्त 1909 को पेटनविले जेल में 22 वर्षीय मदनलाल ढींगरा को फांसी देकर उनके पार्थिव शरीर को चहारदीवारी में दफना दिया गया। फांसी के समय जेल अधिकारियों के अतिरिक्त केवल एक पारसी उपस्थित था।