भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपरा में गोस्वामी तुलसीदास का स्थान अत्यंत ऊँचा है। वे न केवल एक महान संत थे, बल्कि एक ऐसे युगप्रवर्तक कवि भी थे, जिन्होंने रामभक्ति को जन-जन तक पहुँचाया। हर वर्ष उनकी जयंती श्रावण मास की सप्तमी तिथि को श्रद्धा व भक्ति से मनाई जाती है।
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म वर्ष 1532 ई. में उत्तर प्रदेश के राजापुर गांव में हुआ था। कहा जाता है कि वे जन्म से ही "राम" नाम का उच्चारण करते थे, इसलिए उनका नाम रामबोला रखा गया। उनके जन्म के कुछ समय बाद ही माता-पिता का निधन हो गया। उनका पालन-पोषण एक संत नारायण दास ने किया। उन्होंने वाराणसी में वेद-पुराण, ज्योतिष और संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया और विद्वान बने। उनका विवाह रत्नावली नाम की एक युवती से हुआ। तुलसीदास अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करते थे और संसारिक प्रेम में इतने डूब गए कि भक्ति से दूर हो गए।
एक बार जब उनकी पत्नी मायके गईं, तो वे उनसे मिलने एक अंधेरी और तूफानी रात में जा पहुँचे। रास्ते में नदी आई, नाव नहीं थी, तो उन्होंने एक लाश को लकड़ी समझकर नदी पार की और साँप को रस्सी समझकर पकड़ लिया। रत्नावली यह देखकर चौंक गईं और उन्होंने तुलसीदास से कहा – “लाज न आई आपको, इतनी रात में आने की? जितना प्रेम मेरे शरीर से है, उतना यदि राम से होता, तो इस भवसागर से पार हो जाते।” रत्नावली के इन वचनों ने तुलसीदास की आत्मा को झकझोर दिया। उसी क्षण उन्होंने गृहस्थ जीवन का त्याग किया और रामभक्ति के मार्ग पर चल पड़े।
तुलसीदास ने जीवन का शेष समय भक्ति, सेवा और लेखन में बिताया। उन्होंने भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित महान ग्रंथ रामचरितमानस की रचना की, जिसे उन्होंने अवधी भाषा में लिखा ताकि सामान्य जन भी इसे पढ़ और समझ सकें। रामचरितमानस न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों, संस्कारों और जीवन दर्शन का सार भी है। इस ग्रंथ के माध्यम से तुलसीदास ने श्रीराम के चरित्र को जन-जन तक पहुँचाया और उन्हें जीवन जीने की प्रेरणा दी।
रामचरितमानस के अतिरिक्त तुलसीदास ने कई और प्रसिद्ध रचनाएँ कीं, जिनमें हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका, कवितावली, दोहावली, गीतावली, और रामलला नहछू प्रमुख हैं। हनुमान चालीसा आज भी भारत में सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला स्तोत्र है। उनकी रचनाओं में भक्ति, प्रेम, नीति और जीवन के गूढ़ तत्वों की झलक मिलती है।
तुलसीदास जी का निधन संवत 1680 (ई. 1623) में वाराणसी में हुआ। काशी स्थित तुलसी घाट आज भी उनके तप और साधना की याद दिलाता है। उनका संपूर्ण जीवन ईश्वर की भक्ति, सच्चाई और सेवा का प्रतीक है।
तुलसीदास जयंती के दिन लोग भजन-कीर्तन, रामचरितमानस पाठ और हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन कर तुलसीदास की शिक्षाओं को याद किया जाता है, और लोग सदाचार, भक्ति और सेवा को अपनाने का संकल्प लेते हैं।
तुलसीदास जी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम और सुख केवल भगवान की भक्ति में है। उन्होंने धर्म, नीति, और प्रेम को कविता और भक्ति से जोड़कर करोड़ों लोगों को भगवान राम से जोड़ा। उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि जब मनुष्य संसार के मोह को त्यागकर ईश्वर की भक्ति में लीन होता है, तभी वह सच्चे अर्थों में आत्मज्ञान प्राप्त करता है।