भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी और क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह का जन्म 28 दिसंबर, 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम टहल सिंह और माता का नाम नारायण कौर था, जिन्होंने उनका नाम शेर सिंह रखा था। दुर्भाग्यवश, जन्म के दो साल बाद उनकी माँ का निधन हो गया और 1907 में उनके पिता की भी मृत्यु हो गई। माता-पिता के निधन के बाद, उधम और उनके भाई को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय भेज दिया गया, जहाँ उन्हें नए नाम मिले: शेर सिंह 'उधम सिंह' बन गए और मुख्ता सिंह 'साधू सिंह'। भारतीय समाज की एकता के प्रतीक के रूप में, सरदार उधम सिंह ने बाद में अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आज़ाद रख लिया, जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों को दर्शाता है। 1917 में उनके भाई का भी निधन हो गया, और 1918 में उधम ने मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया, और वे शहीद भगत सिंह को अपना गुरु मानते थे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड और उधम सिंह का संकल्प
13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया था। शहर में कर्फ्यू के बावजूद, सैकड़ों लोग, जिनमें बैसाखी मेला देखने आए परिवार भी शामिल थे, सभा की खबर सुनकर वहाँ पहुँच गए। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े होकर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ वहाँ पहुँच गया। उनके हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। नेताओं ने सैनिकों को देखकर लोगों से शांत रहने को कहा। सैनिकों ने बाग को घेरकर बिना किसी चेतावनी के निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियाँ चलाई गईं। जलियांवाला बाग एक संकरे रास्ते वाला खुला मैदान था, जहाँ से भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएँ में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआँ भी लाशों से भर गया। ब्रिटिश अभिलेखों के अनुसार, इस घटना में 200 लोग घायल हुए और 379 लोग शहीद हुए, जिनमें 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा शामिल था। अनौपचारिक आँकड़ों के अनुसार, 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। इस हत्याकांड के समय उधम सिंह वहीं मौजूद थे और उन्हें भी गोली लगी थी। इस घटना ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया और उन्होंने इसका बदला लेने का दृढ़ निश्चय किया।
क्रांतिकारी यात्रा और प्रतिशोध
इस घटना के बाद, उधम सिंह क्रांतिकारी राजनीति में शामिल हो गए और स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह से गहराई से प्रभावित हुए। 1924 में, उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए ग़दर पार्टी में शामिल हो गए और इसके लिए विदेशों में भारतीयों को संगठित किया। 1927 में, भगत सिंह से आदेश मिलने के बाद, उधम सिंह 25 साथियों और गोला-बारूद के साथ भारत आए। हालाँकि, जल्द ही उन्हें 25 साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी के समय, उनके पास से हथियार, गोला-बारूद और ग़दर पार्टी के प्रतिबंधित अखबार "ग़दर-ए-गंज" की प्रतियाँ जब्त की गईं, जिसके कारण उन्हें पाँच साल की जेल हुई।
1931 में रिहा होने के बाद, उन्होंने उधम सिंह के नाम से पासपोर्ट बनवाया और इंग्लैंड की यात्रा की। द्वितीय विश्व युद्ध से पहले के वर्षों में उन्होंने कई यूरोपीय देशों का दौरा किया। युद्ध की शुरुआत क्रांतिकारियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण अवसर बन गई, जो मानते थे कि भारत में ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकने का यह सही समय है।
माइकल ओ'डायर की हत्या और शहादत
सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुँचे और वहाँ 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वे 6 सालों तक लंदन में रहे और 13 मार्च, 1940 को उन्हें उस नरसंहार का बदला लेने का मौका मिल ही गया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद, 13 मार्च, 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में एक बैठक थी, जहाँ माइकल ओ'डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुँच गए। उन्होंने अपनी रिवॉल्वर एक मोटी किताब में छिपा ली थी, जिसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में काट लिया था ताकि हथियार आसानी से छिपाया जा सके।
बैठक के बाद, दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए, उधम सिंह ने माइकल ओ'डायर पर गोलियाँ दाग दीं। दो गोलियाँ माइकल ओ'डायर को लगीं, जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहाँ से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। ब्रिटेन में ही उन पर मुकदमा चला और 4 जून, 1940 को उन्हें हत्या का दोषी ठहराया गया। अंततः, 31 जुलाई, 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फाँसी दे दी गई।