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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक: स्वराज के अग्रदूत और भारतीय चेतना के प्रेरणास्रोत

Date : 01-Aug-2025
बाल गंगाधर तिलक एक महान राष्ट्रवादी, समाज सुधारक और जन नेता थे, जिन्होंने अपने विचारों और आदर्शों से कई पीढ़ियों को गहराई से प्रभावित किया। उनका जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था। उनके पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक संस्कृत के विद्वान और शिक्षक थे, जबकि माता पार्वतीबाई एक धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। तिलक का विवाह 1871 में तपिबाई से हुआ, जिनका नाम विवाह के बाद सत्यभामा रखा गया। तिलक का प्रसिद्ध नारा—"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा"—भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया।

तिलक बचपन से ही अध्ययन में तेज थे। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा रत्नागिरी में प्राप्त की और फिर पिता के पुणे स्थानांतरण के बाद वहां की एंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल में दाखिला लिया। 1877 में पुणे के डेक्कन कॉलेज से उन्होंने संस्कृत और गणित में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई पूरी की। कुछ समय उन्होंने एक निजी स्कूल में गणित और अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में भी काम किया, लेकिन शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजी के वर्चस्व और भेदभावपूर्ण रवैये के कारण जल्द ही वह शिक्षण कार्य छोड़कर सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हो गए।

1891 में जब 'मालाबारी प्रस्ताव' के तहत ‘आयु सम्मति अधिनियम’ लाया गया, जिसमें 12 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं के विवाह पर रोक लगाई गई, तब तिलक ने इस अधिनियम का विरोध किया। उनका मानना था कि सामाजिक सुधारों को जबरदस्ती कानून के जरिए थोपने के बजाय समाज की सहमति से लागू किया जाना चाहिए।

1893 में तिलक ने महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की। इस आयोजन का उद्देश्य था सामाजिक एकता और राष्ट्रीय चेतना का निर्माण। उनके प्रयास से यह उत्सव समाज के हर वर्ग को जोड़ने का माध्यम बन गया। इसके अलावा उन्होंने बंबई में पड़े अकाल और पुणे में प्लेग के समय भी कई सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के बाद तिलक जल्दी ही नरमपंथी नेताओं की नीतियों से असहमत हो गए। 1907 में कांग्रेस दो धड़ों—गरम दल और नरम दल—में बंट गई। गरम दल के प्रमुख नेता तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल थे। इन तीनों को ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से जाना गया। 1908 में क्रांतिकारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी द्वारा किए गए बम हमले का समर्थन करने के कारण तिलक को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर छह साल की सजा सुनाई गई और उन्हें म्यांमार (तब बर्मा) के मांडले जेल भेजा गया। जेल में रहते हुए उन्होंने ‘गीता रहस्य’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की, जिसमें भगवद्गीता के कर्मयोग सिद्धांत की व्याख्या की गई।

जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने फिर से राजनीतिक सक्रियता शुरू की और अप्रैल 1916 में एनी बेसेंट के सहयोग से ‘होम रूल लीग’ की स्थापना की। इस आंदोलन का उद्देश्य भारत में स्वराज की स्थापना करना था। इस आंदोलन से उन्हें अपार लोकप्रियता मिली और वे ‘लोकमान्य’ के रूप में प्रसिद्ध हुए।

बाल गंगाधर तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को मुंबई में हुआ। उनके निधन पर महात्मा गांधी ने उन्हें "आधुनिक भारत का निर्माता" कहा, जबकि जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें "भारतीय क्रांति का जनक" बताया। तिलक का जीवन और कार्य आज भी भारतीय राष्ट्रवाद और सामाजिक चेतना के प्रेरणा स्रोत हैं।
 
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