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राष्ट्र सेवा के समर्पित योद्धा: पंडित रविशंकर शुक्ला

Date : 02-Aug-2025

पंडित रविशंकर शुक्ला राष्ट्रीय स्तर के आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और देश के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। उनका जन्म 2 अगस्त 1877 को सागर जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम जगन्नाथ शुक्ला था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सागर में ही पूरी की और फिर रायपुर, जबलपुर तथा नागपुर से उच्च शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने खैरागढ़ राज्य के हाईस्कूल में तीन वर्षों तक प्रधानाध्यापक के रूप में कार्य किया और बस्तर, कवर्धा एवं खैरागढ़ के राजकुमारों को शिक्षा दी।


पंडित रविशंकर शुक्ला प्रारंभ से ही सार्वजनिक कार्यों में रुचि रखते थे। जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन शुरू हुआ, तब उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी और सक्रिय रूप से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। इस आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 1930 में उन्हें तीन साल की सजा हुई। वे एक विद्वान, अनुभवी नेता, प्रतिबद्ध लोकतांत्रिक और देशभक्त थे, जिन्होंने राष्ट्र की सेवा को अपना जीवन समर्पित कर दिया।

उन्होंने 1906 से रायपुर में वकालत शुरू की और स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की। स्वराज पार्टी की ओर से वे राज्यसभा के सदस्य चुने गए। 1926 से 1937 तक वे रायपुर जिला बोर्ड के सदस्य रहे। 1923 में नागपुर में आयोजित झंडा सत्याग्रह में उन्होंने छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। 4 जुलाई 1937 को खरे के प्रथम कांग्रेसी मंत्रीमंडल में वे शिक्षा मंत्री बने और विद्या मंदिर योजनाओं को कार्यान्वित किया। 15 अगस्त 1947 को वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 1956 तक इस पद पर बने रहे।

पंडित रविशंकर शुक्ला 31 अक्टूबर 1956 तक मध्य भारत के मुख्यमंत्री रहे। उसी समय राज्य पुनर्गठन आयोग का कार्य भी चल रहा था, और 1 नवंबर 1956 को नया राज्य ‘मध्य प्रदेश’ अस्तित्व में आया, जिसमें छत्तीसगढ़ भी शामिल था। उन्हें नए मध्य प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया और इस तरह उन्होंने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, हालांकि उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा था।

पंडित रविशंकर शुक्ला का निधन 31 दिसंबर 1956 को दिल्ली में हुआ। उनकी स्मृति में विधानसभा सचिवालय द्वारा 1995-1996 से ‘उत्कृष्ट मंत्री पुरस्कार’ स्थापित किया गया। उन्होंने दो बार मध्य भारत और एक बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा दी, लेकिन चुनाव मात्र एक बार ही लड़ा। कुल मिलाकर वे छह साल और 340 दिन तक मुख्यमंत्री रहे।
 
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