महाराष्ट्र के नासिक शहर से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर गौतमी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्वर मंदिर हिन्दुओं के पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक हैं।
यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिगों में 10वें नंबर पर आता है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अपनी भव्यता और आर्कषण वजह से पूरे भारत में प्रसिद्ध है।
त्रयंबकेश्वर में विराजित ज्योर्तिलिंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह भगवान ब्रह्रा, विष्णु और महेश तीनों एक ही रुप में विराजित हैं।
त्रयंबकेश्वर का इतिहास एवं इससे जुड़ी प्रचलित कथा
विश्व प्रसिद्ध इस मंदिर के ज्यर्तिलिंग से गौतम ऋषि और गंगा नदी से प्रसिद्ध कथा जुड़ी हुई है। इस प्रचलित कथा के मुताबिक प्राचीन समय में त्रयंबकेश्वर में जब 24 सालों तक लगातार अकाल पड़ा था, तब कई लोग मरने लगे।
लेकिन उस समय बारिश के देवता इंद्र देव, ऋषि गौतम की भक्ति से बेहद खुश थे, इसलिए उनके आश्रम में ही वर्षा करवाते थे, जिसके चलते कई ब्राहाण, गौतम ऋषि के आश्रम में ही रहने लगे।
तभी एक बार अन्य ऋषियों की पत्नियां किसी बात को लेकर गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या देवी से गुस्सा हो गईं, जिसके बाद उन्होंने अहिल्या देवी की भावना को ठेस पहुंचाने के लिए अपने-अपने पति को गौतम ऋषि का अपमान करने के लिए प्रेरित किया।
जिसके बाद सभी ब्राह्राणों ने ऋषि गौतम को नीचा दिखाने की योजना बनाई। और फिर ब्राह्मणों ने गौतम ऋषि पर छल से गौ हत्या का आरोप लगा दिया एवं गौतम ऋषि को अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए देवी गंगा में स्नान करने की सलाह दी।
जिसके बाद गौतम ऋषि ने ब्रह्रागिरी पर्वत पर जाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की और देवी गंगा के उस जगह पर अवतरित करने का वरदान मांगा।
लेकिन देवी गंगा इस शर्त पर अवतरित होने के लिए राजी हुईं कि जब भगवान भोले शंकर इस स्थान पर रहेंगे, तभी वे इस स्थान पर प्रवाहित होंगी।
जिसके बाद देवी गंगा के कहने पर शिवजी त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप वहीं वास करने को तैयार हो गए और इस तरह त्रयंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग यहां खुद प्रकट हुए और गंगा नदी गौतमी के रूप में यहां से बहने लगी। आपको बता दें कि गौतमी नदी को गोदवरी के नाम से भी जाना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण
इतिहासकारों के मुताबिक भगवान भोलेशंकर को समर्पित इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण पेशवा नानासाहेब ने करवाया था। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक इस मंदिर को पेशवा ने एक शर्त के अनुसार बनवाया था।
उन्होंने यह शर्त लगाई थी कि ज्योतिर्लिंग में लगा पत्थर अंदर से खोखला है या नहीं। शर्त हारने पर उन्होंने इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर में विराजित शिव की प्रतिमा को उन्होंने नासक डायमंड से बनवाया था। हालांकि बाद में एंग्लो-मराठा युद्द के दौरान अंग्रेजो द्धारा इस डायमंड को लूट लिया गया था।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर की अद्भुत संरचना एवं भव्य बनावट
नासिक के पास गोदावरी नदी के किनारे बसा भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है। इस मंदिर की स्थापत्य कला काफी आर्कषक और अद्धितीय है।
इस मंदिर में बेहद सुंदर नक्काशी की गई है। यह मंदिर दुनिया भर में अपनी भव्यता और आर्कषण की वजह से मशहूर है। मंदिर में पूर्व की तरफ एक बड़ा सा चौकोर मंडप है एवं मंदिर के चारों तरफ दरवाजे बने हुए है, हालांकि मंदिर के पश्चिम की तरफ बना हुआ दरवाजा विशेष अवसरों पर ही खोला जाता है।
अन्य दिनों में सिर्फ तीन द्धारों द्धारा ही भक्तजन इस मंदिर में दर्शन के लिए प्रवेश कर सकते हैं। इस प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में बने शिखर में बेहद सुंदर स्वर्ण कलश बना हुआ है।
साथ ही भगवान शिव की प्रतिमा के पास हीरों और कई रत्नों से जड़ा मुकुट भी रखा हुआ है।
वहीं इस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग दिखाई देते हैं जो कि ब्रह्रा, विष्णु और महेश का अवतार माने जाते हैं।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पास तीन पर्वत भी स्थित हैं, जिन्हें नीलगिरी, ब्रह्मगिरी, और गंगा द्वार के नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्मगिरी को शिव का स्वरूप माना जाता है।
इस मंदिर के गंगा द्धारा पर देवी गंगा का मंदिर बना हुआ है तो नीलगिरि पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर स्थित है।
त्रयंबकेश्वर मंदिर में स्थापित शिव जी की मूर्ति के चरणों से बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है, जो कि मंदिर के पास में बने एक कुंड में एकत्र होता है।
त्रयंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग से जुड़ी मान्यताएं –
भगवान शिव के इस प्रसिद्ध त्र्यंबकेश्वर मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि त्रयंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं दूर होती हैं और पापों से मुक्ति मिलती है।
त्रयंबकेश्वर मंदिर में रुद्राभिषेक एवं कुछ विशेष पूजा करवाने का भी अपना अलग महत्व है।
इस मंदिर में कई लोग कालसर्प दोष की शांति एवं कुछ बीमारी एवं स्वस्थ जीवन के लिए महामृत्युंजय पूजा आदि करवाते हैं। इसके अलावा यहां गाय को हरा चारा खिलाने का भी विशेष महत्व है।
त्रयंबकेश्वर मंदिर के पास स्थित प्रमुख आर्कषण:
भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक त्रयंबेकेश्वर मंदिर के प्रमुख आर्कषणों में कालाराम मंदिर,मुक्तिधाम मंदिर, पंचवटी, पांडवलेनी गुफाएं, इगतपुरी आदि हैं।
यह मंदिर नील पर्वत के शीर्ष पर बना हुआ है। कहा जाता है की परशुराम की तपस्या देखने के लिए सभी देवियाँ (माताम्बा, रेणुका और मनान्म्बा) यहाँ आयी थी। तपस्चर्या के बाद परशुराम ने तीनो देवियों से प्रार्थना की थी के वे वही रहे और देवियों के रहने के लिए ही मंदिर की स्थापना की गयी थी।
भगवान दत्तात्रय (श्रीपाद श्रीवल्लभ) यहाँ कुछ वर्षो तक रहे, साथ ही दत्तात्रय मंदिर के पीछे दायी तरफ नीलकंठेश्वर महादेव प्राचीन मंदिर और नील पर्वत के तल पर अन्नपूर्णा आश्रम, रेणूकादेवी, खंडोबा मंदिर भी बना हुआ है।
शिव मंदिर से 1 किलोमीटर की दुरी पर अखिल भारतीय श्री स्वामी समर्थ गुरुपीठ, श्री स्वामी समर्थ महाराज का त्रिंबकेश्वर मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर वास्तु शास्त्र के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक है।