बाहुवीर्यं बलं राजा ब्राह्मणो ब्रह्मविद् बली।
रूपयौवनमाधुर्यं स्त्रीणां बलमुत्तमम् ॥
आचार्य चाणक्य स्त्रियों के गुणों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि बाजुओं में शक्तिवाले राजा बलवान होते हैं। ब्रह्म को जाननेवाला ब्राह्मण ही बलवान माना जाता है। सुन्दरता, यौवन और मधुरता ही स्त्रियों का श्रेष्ठ बल है।
आशय यह है कि जिस राजा की बाजुओं में शक्ति होती है वही राजा बलवान मात्र जाता है। ब्रह्म को जाननेवाला ब्राह्मण ही बलवान है। ब्रह्म को जानना ही ब्राह्मण का बल है। सुन्दरता, जवानी तथा वाणी की मधुरता ही स्त्रियों का सबसे बड़ा बल है।
नात्यन्तं सरलेन भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम् ।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः ॥
जीवन का सिद्धान्त है कि अति सर्वत्र वर्जित होती है फिर चाहे वह जीवन के संदर्भ में सादगी या सीधेपन के स्तर पर ही क्यों न हो। अतः आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अधिक सीधा नहीं होना चाहिए। जंगल में जाकर देखने से पता लगता है कि सीधे वृक्ष काट लिए जाते हैं, जबकि टेढ़े-मेढ़े पेड़ छोड़ दिए जाते हैं।
अर्थात् व्यक्ति को अधिक सीधा,' भोला-भाला नहीं होना चाहिए। अधिक सीधे व्यक्ति को सभी मूर्ख बनाने की कोशिश करते हैं। उसका जीना दूभर हो जाता है। जबकि अन्य गुसैल तथा टेढ़े किस्म के लोगों से कोई कुछ नहीं कहता। यह प्रकृति का ही नियम है। वन में जो पेड़ सीधा होता है, उसे काट लिया जाता है, जबकि टेढ़े-मेढ़े पेड़ खड़े रहते हैं।
