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पुण्यतिथि विशेष :अटल बिहारी बाजपेयी

Date : 16-Aug-2025

आज की उथली राजनीति और हल्के नेताओं के आचरण के विपरीत अटल बिहारी बाजपेयी के व्यक्तित्व की गहराई को समझ पाना बड़े से बड़े प्रेक्षक, विश्लेषक और समालोचक के लिए भी चुनौतीपूर्ण है। बाजपेयी जी सुचिता की राजनीति के जीवंत प्रतिमूर्ति थे। आज उनकी पुण्यतिथि है।

स्वतंत्रता के बाद जिन नेताओं के व्यक्तित्व का प्रभाव देशवासियों पर गहरा रहा, उनमें अटल बिहारी बाजपेयी शीर्ष स्थान पर हैं। हमारी पीढ़ी ने पंडित नेहरू के बारे में पढ़ा और सुना है, जबकि अटलजी को विकट परिस्थितियों का सामना करते हुए देखा है।

पंडित नेहरू स्वप्नदर्शी थे, जबकि अटलजी ने जिये हुए यथार्थ को भोगा है। एक अत्यंत धनाढ्य वकील के वारिस पंडितजी पर महात्मा गांधी जैसी महान हस्ती की छाया थी और उनके आभामंडल में स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास था। वहीं, अटलजी की राजनीति गांधीजी की हत्या के बाद शुरू हुई ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में हुई, जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ के खिलाफ शंका का माहौल था।

जनता के प्रति अटलजी की निष्ठा और समर्पण ने 1960 के दशक में प्रतिपक्ष की राजनीति को नई दिशा दी। बचपन में हमने सुना था — "अटल बिहारी दिया निशान, मांग रहा है हिन्दुस्तान"। ऐसा था कि जिन लोगों को संघ या जनसंघ पसंद नहीं था, वे भी अटलजी को आंखों के तारे की तरह देखते थे।

अटलजी 1957 में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से उपचुनाव के जरिए लोकसभा पहुंचे और 1977 तक भारतीय जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। अगर किसी के चरित्र में 'अजातशत्रु' शब्द फिट बैठता है तो वे अटल बिहारी बाजपेयी हैं। वे समाजवादियों से भरे प्रतिपक्ष में अपनी अलग पहचान बनाते थे। पंडित नेहरू और डॉ. राम मनोहर लोहिया दोनों उनके मित्र थे।

उनकी वाक्चातुर्य और गंभीरता संस्कारों से उपजी थी। वे श्रेष्ठ पत्रकार और कवि भी थे, जिसने राजनीति में उन्हें और निखारा। अपनी कविताओं के जरिए उन्होंने कहा था — "मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य निनाद नहीं, वह आत्मविश्वास का जयघोष है।"

राजनीति में भी उन्होंने इसी भावना को अपनाया। उनकी वक्तृत्व कला मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी, जो भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह और जोश भरती रही। उनकी मशहूर उक्ति, जो भाजपा कार्यकर्ताओं को आज भी याद है, वह है — "अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।" 1980 के भाजपा के मुंबई अधिवेशन में उन्होंने यह उद्घोष किया था, और इसके बाद से कमल खिलता रहा।

यह उनकी दूरदृष्टि थी कि भाजपा के सिद्धांतों में "गांधीवादी समाजवाद के प्रति निष्ठा" को शामिल किया गया। अटलजी को एहसास था कि भाजपा को राजनीतिक अस्पृश्यता से बाहर निकालना है तो गांधी के मार्ग पर चलना होगा।

वे 1977 के जनता पार्टी के गठन और उसके बाद के टूटने से आहत थे, लेकिन समझते थे कि बिना गठबंधन के सत्ता हासिल नहीं हो सकती। उन्होंने गठबंधन की राजनीति को सांझे चूल्हे की संस्कृति माना, जिसमें हर कोई अपनी भूमिका निभाता है, और फिर भी अहंकार या अवहेलना नहीं होती।

उनका व्यक्तित्व इतना व्यापक था कि 24 दलों के गठबंधन को वे सफलतापूर्वक निभा सके, जिसमें पहली बार दक्षिण की पार्टियां भी शामिल थीं। 1998 में जयललिता की हठधर्मिता से सरकार एक वोट से गिर गई, लेकिन अटलजी ने कहा कि "जनभावनाएं संख्याबल से पराजित हो गईं, हम फिर लौटेंगे," और वे सचमुच एक साल के भीतर सत्ता में लौट आए।

अपने राजनीतिक जीवन में अटलजी ने कभी किसी के प्रति व्यक्तिगत टिप्पणी या कटुता नहीं दिखाई। अपनी पार्टी में उनकी विराटता के सामने सभी छोटे थे, फिर भी उन्होंने आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को बराबर समझा। कई मामलों में वे आडवाणी के सामने भी विनम्र थे।

1971 के बांग्ला विजय पर उन्होंने इंदिरा गांधी की खुले दिल से प्रशंसा की और लोकसभा में उनका अभिनंदन किया। वही इंदिरा गांधी उन्हें आपातकाल में जेल भी भेज चुकी थीं।

अटलजी ने कभी व्यक्तिगत कटुता से भरे राजनीतिक हमले नहीं किए। राष्ट्रहित की बातों को वे सभी से स्वीकार करते थे। इंदिरा गांधी के परमाणु कार्यक्रम को उन्होंने आगे बढ़ाया और 1998 में अपनी सरकार के दौरान पोखरण विस्फोट कर देश को वैश्विक शक्ति बनाने में योगदान दिया।

उनका जन्म 25 दिसंबर को हुआ था, जो ईसा मसीह के जन्मदिन के साथ मेल खाता है। 'वही करुणा, वही क्षमा' के गुण उनमें भी थे। उन्होंने दिल्ली से लाहौर तक बस की यात्रा की, जिसका जवाब कारगिल के संघर्ष के रूप में मिला। पाकिस्तान को छोटा भाई मानते हुए भी जब भी गले लगाने की कोशिश की, उसका परिणाम उल्टा ही हुआ। इसके बावजूद उन्होंने जनरल परवेज मुशर्रफ को आगरा वार्ता के लिए बुलाया। लगता है वे अचेतन मन से कहते थे, "हे प्रभु, उन्हें माफ कर क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।"

अटल बिहारी बाजपेयी का व्यक्तित्व और उनके आदर्श आज भी राजनीति में मिसाल हैं, जो सच्चे नेतृत्व और राष्ट्रभक्ति की ज्वाला को दर्शाते हैं।

 
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