बलिदान दिवस 18 अगस्त : "स्वाधीनता के राष्ट्र नायक सुभाष बाबू को जीते जी क्यों मारा गया ?" | The Voice TV

Quote :

बड़ा बनना है तो दूसरों को उठाना सीखो, गिराना नहीं - अज्ञात

Editor's Choice

बलिदान दिवस 18 अगस्त : "स्वाधीनता के राष्ट्र नायक सुभाष बाबू को जीते जी क्यों मारा गया ?"

Date : 18-Aug-2025

 "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा" - 

काश!आपको मिले नेतृत्व में स्वाधीनता संग्राम होता तो,भारत 7 वर्ष पूर्व स्वाधीन हो गया होता, न विभाजन होता और न ही उसकी विभीषिका देखनी पड़ती। आपकी छत्र छाया में भारत पल्लवित और पुष्पित होता तो बंगाल, जहाँ माँ दुर्गा का माहात्म्य है , वहाँ एक महिला मुख्यमंत्री ममता दीदी, जिनके संरक्षण में सर्वत्र अराजकता और अलगाव का वातावरण है, हिन्दुओं के साथ दुष्कर्मों का अम्बार और उनकी वीभत्स हत्यायें न होती फिर न्याय के लिए भटकना न पड़ता! परंतु नेताजी आपके न रहने पर भारत में कांग्रेस ने एक ऐंसे व्यक्ति को सत्ता प्राप्ति की आड़ में राष्ट्र का मोहरा और रोल मॉडल बना दिया, जिनको आगे करके  पं.जवाहरलाल नेहरु और सत्ता के भूखे राजनीतिज्ञों ने शतरंज की ऐंसी बिसात बिछाई, जिसमें पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस और बाद में सरदार वल्लभभाई पटेल को गहरे षड्यंत्र के चलते शह और मात दी गई। वह रोल मॉडल भी भटक गए,उन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए विभाजन स्वीकार कर आधा रुपया भी दिलवाया और उसकी विभीषिका में भी मुसलमानों के साथ खड़े दिखाई दिए। उन्होंने हिन्दुओं के साथ सदैव दोयम दर्जे का व्यवहार किया। नेहरु और उनकी समर्थक कांग्रेस लॉबी ने सत्ता प्राप्ति के उतावलेपन में भारत के विभाजन स्वीकार किया और गाँधी जी को ढाल बनाया। तदुपरान्त इन्होंने गाँधी जी को ही दरकिनार कर दिया।


त्रिपुरी अधिवेशन में चुनाव के उपरांत भारत का नेतृत्व गाँधी जी और उनकी समर्थक कांग्रेस लाॅबी के हाथ से निकल गया क्योंकि अकेले सुभाष चंद्र बोस ने पट्टाभि सीतारमैय्या सहित इन सबको 203 मतों से धराशायी करते हुए भारत का नेतृत्व प्राप्त कर लिया परंतु फिर सुभाष बाबू को तबाह करने के लिए गांधी जी, कांग्रेस और अंग्रेजों ने मिलकर ऐंसे षड्यंत्र रचे हैं कि षड्यंत्र भी शर्मसार हो जाएगा। 


अब ये चित्र दुर्लभ हैं, और ऐंसी इच्छा शक्ति भी दुर्लभ है कि 105 डिग्री बुखार में स्ट्रेचर में लेटे - लेटे त्रिपुरी अधिवेशन में आए और फिर विष्णुदत्त नगर पहुंच कर अचेत होने तक भाषण भी दे - तो ये सुभाष चन्द्र बोस के अलावा और कौन हो सकता है? कैंसे स्वीकार करें?सुभाष बाबू कि आज आपका महा बलिदान दिवस है।


 क्या आप विमान हादसे में? या किसी गहरी साजिश का शिकार हुए?क्या आपकी आजाद हिंद सेना से सभी थर्रा गये थे? इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने क्यों स्वीकार किया था कि हमारा भारत छोड़ने का प्रमुख कारण आजाद हिंद सेना थी? आजाद हिंद सेना के कारण ब्रिटिश भारत की सेनाओं में विद्रोह के स्वर क्यों गूंजने लगे थे? सच तो ये है कि महात्मा गाँधी के आंदोलनों की असफलता से लोग विशेषकर युवा ऊब गये थे और वो अब सुभाष बाबू के साथ जाना चाहते थे। शेष प्रश्नों के उत्तर आप समझ ही गये होंगे।


परंतु आज उनके तथाकथित बलिदान दिवस पर जबलपुर के त्रिपुरी अधिवेशन की यादें ताज़ा हो जाती हैं, जब नेताजी सुभाष चंद्र ने भारत का शीर्ष नेतृत्व प्राप्त किया था। क्यों था त्रिपुरी अधिवेशन 1939 स्वाधीनता संग्राम के इतिहास का भूकंप? महात्मा गाँधी का ये बयान तत्कालीन विश्व की राजनीति का सबसे घातक बयान था "पट्टाभि की हार मेरी(व्यक्तिगत)हार है।"


गाँधी जी जान गये थे की देश की युवा पीढ़ी और नेतृत्व सुभाष चन्द्र बोस के हाथ में चला गया है अब क्या किया जाए? इसलिए उक्त कूटनीतिक बयान दिया गया।अब त्रिपुरी काँग्रेस अधिवेशन में पट्टाभि की हार को गाँधी जी ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था।


इसलिए कांग्रेस की कार्य समितियों ने सुभाष चंद्र बोस के साथ असहयोग किया।यह अलोकतांत्रिक था परंतु गांधी जी का समर्थन था और यही तानाशाही भी थी।साथ ही सुभाष बाबू को गांधी जी के निर्देश पर काम करने के लिए कहा गया, जबकि अध्यक्ष सुभाष चन्द्र बोस थे।


 सुभाष बाबू का विचार था कि अब अंग्रेजों को 6माह का अल्टीमेटम दिया जाए कि वो भारत छोड़ दें! इस बात पर गांधी जी और उनके समर्थकों के हांथ - पांव फूल गए, उधर अंग्रेजों भी भारी तनाव में आ गए और अंग्रेजों ने गांधी जी और कांग्रेस पर दवाब डाला की सुभाष बाबू का असहयोग किया जाए।इसलिए एक गहरी साजिश के चलते सुभाष बाबू का विरोध किया गया और अंतत:सुभाष बाबू ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।सुभाष बाबू ने कहा था कि द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ होने वाला इसलिए यही सही समय है जब अंग्रेजों से आरपार की बात की जाए परंतु गांधी जी और उनके तथाकथित चेलों ने विरोध किया।


 सच तो ये है कि सुभाष बाबू की बात मान ली गई होती तो देश 7 वर्ष पहले 1940 तक स्वाधीन हो जाता और विभाजन की विभीषिका नहीं देखनी पड़ती। इस्तीफे के बाद भी सुभाष बाबू चरमोत्कर्ष हुआ, उन्होंने 60 हजार योद्धाओं के साथ आजाद हिंद सेना का निर्माण किया और भारत की ओर कूच किया।आजाद हिंद सेना के जवानों से हुए दुर्व्यवहार से,भारतीय बरतानिया सेना ने भी स्वतंत्रता संग्राम का उद्घोष कर दिया, जिसके दवाब में अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए बाध्य हुए।

 

लेखक -  डॉ. आनंद सिंह राणा

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload

Advertisement









Advertisement