पेशवा बाजीराव प्रथम भारतीय इतिहास के एक महान और यशस्वी सेनानायक माने जाते हैं। उन्होंने 1720 ईस्वी से 1740 ईस्वी तक मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति, शाहूजी महाराज, के प्रधान मंत्री (पेशवा) के रूप में सेवा की। बाजीराव का जन्म एक चितपावन ब्राह्मण परिवार में 18वीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ था। उनके पिता, बालाजी विश्वनाथ, स्वयं मराठा साम्राज्य के पहले पेशवा थे, और उनके संरक्षण में ही बाजीराव ने राजनीति और सैन्य कला की शिक्षा प्राप्त की।
बाजीराव को विशेष रूप से उनकी सैन्य कुशलता और रणनीतिक दूरदृष्टि के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग चालीस से अधिक सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया और उल्लेखनीय बात यह है कि वे इनमें से एक भी युद्ध में पराजित नहीं हुए। इसी कारण उन्हें "अपराजित हिन्दू सेनानी सम्राट" के रूप में भी सम्मानित किया गया। इतिहास में उन्हें 'बाजीराव बल्लाळ' और 'थोरले बाजीराव' जैसे नामों से भी जाना जाता है, जिसमें 'थोरले' का अर्थ है 'बड़े' — ताकि उन्हें उनके छोटे भाई पेशवा नानासाहेब से भिन्न किया जा सके।
बाजीराव का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने मराठा साम्राज्य को केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि उसे उत्तर भारत, बंगाल, राजस्थान और मालवा जैसे क्षेत्रों तक विस्तार दिया। उनका उद्देश्य दिल्ली तक हिन्दवी स्वराज स्थापित करना था, और उन्होंने मुगल साम्राज्य की गिरती स्थिति का लाभ उठाकर मराठों को एक अखिल भारतीय शक्ति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका प्रसिद्ध उत्तर भारत अभियान, विशेषकर 1737 में दिल्ली के निकट मुगल सेनाओं को दी गई पराजय, इस बात का प्रमाण है कि वे अपने युग के सबसे सफल सैन्य रणनीतिकारों में से एक थे।
उनकी मृत्यु 1740 में केवल 39 वर्ष की आयु में हुई, लेकिन इतने कम समय में भी उन्होंने जो इतिहास रचा, वह आज भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। बाजीराव न केवल एक महान सेनापति थे, बल्कि एक दूरदर्शी नेता भी थे, जिनके कार्यों ने मराठा साम्राज्य को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाया।