स्वराज्य-प्राप्ति के पूर्व की घटना है यह ! सरदार पटेल गाँधीजी के पास गये और उन्होंने पूछा, "अखबार में आया है कि लार्ड लिनलिथगो ने अपने भाषण की एक प्रति आपको पहले से ही भेज दी थी। क्या उन्होंने आपको सूचना मात्र देने हेतु भेजी थी या संशोधन करने को ?"
गाँधीजी ने उत्तर दिया, "बिलकुल झूठी बात है यह। मेरे पास उनके भाषण की कोई प्रति नहीं आयी थी। वास्तव में तो उस भाषण में कोई सुधार या परिवर्तन की गुंजाइश भी न थी। वह भाषण तो फाड़कर फेंकने योग्य था!" सरदार बोले, "वह तो ठीक है, मगर मैंने यह देखा है कि आप सबको एक साथ खुश रखना चाहते हैं। आपने एक लेख में तो वाइसराय और सोशलिस्टों की भी प्रशंसा कर दी है।"
इस पर गाँधीजी हँसते हुए बोले, "बात यह है कि यह मेरी माताजी की दी हुई सीख का परिणाम है। वह मुझे वैष्णव मन्दिर और शिव मन्दिर दोनों स्थानों पर जाने को कहती थीं और हाँ, जब मेरा विवाह हुआ, तो हम सिर्फ हिन्दू-मन्दिर में ही नहीं गये थे, बल्कि फकीर की दरगाह पर भी दर्शन करने गये थे।"