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भारत देश के महान व्यक्तियों में से एक थे-नानाजी देशमुख

Date : 27-Feb-2023

नानाजी देशमुख भारत देश के महान व्यक्तियों में से एक थे. नानाजी को मुख्यरूप से एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है. नानाजी ने भारत देश में फैली कुप्रथाओं को ख़त्म करने के लिए अनेक कार्य किये है. नानाजी ने भारत के ग्रामीण क्षेत्र को करीब से देखा था, इसके विकास के लिए उन्होंने अभूतपूर्व काम किये थे. गाँव में सारी सुख सुविधा मिल सके, इसके लिए नानाजी हमेशा तत्पर रहे थे. ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन को नानाजी एक नयी राह दी थी. नानाजी को देश विदेश में बहुत से सम्मान मिले है, लेकिन अब 2019 में भारत सरकार ने भारत देश का सबसे बड़ा पुरुस्कार भारत रत्न से नानाजी को सम्मानित किया है.

नानाजी देशमुख जीवन और शिक्षा

चंडिकादास अमृतराव देशमुख का जन्म 11अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली नामक गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था.  नानाजी के माता-पिता उनके कम उम्र में ही स्वर्गवासी हो गए. इसलिए बचपन से उनके मामाजी ने उनका पालन पोषण किया था. नानाजी ने गरीबी को बहुत ही करीब से देखा है.उनका परिवार दो वक्त का खाना नसीब हो इसलिए कड़ी मेहनत करते थे. नानाजी किसी के भी ऊपर बोझ नहीं बनना चाहते थे.इसलिए उन्होंने बहुत ही कम उम्र से काम करके पैसे कमाना शुरू कर दिया था. काम की तलाश में वे कई बार घर से निकल जाया करते थे.

नानाजी के पास पुस्तक खरीदने तक के पैसे नहीं थे, लेकिन उनके अन्दर पढ़ने लिखने की अभिलाषा थी. नानाजी ने हाई स्कूल की पढाई राजस्थान के सिकर जिले से पूरी की थी. हाई स्कूल की पढाई के दौरान उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली थी. उच्च शिक्षा के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. तभी उन्होंने पैसे जुटाके पिलानी के बिरला इंस्टिट्यूट से उच्च शिक्षा प्राप्त की.

आर.एस.एस  कार्यकर्ता

हाई स्कूल की पढाई के दौरान उनकी मुलाक़ात स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से हुई थी. डॉ. हेडगेवार नानाजी को आर.एस.एस संघ (राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ) में शामिल होने के लिए प्रेरित करते थे. 1930 के दशक में वे आर.एस.एस में शामिल हो गए और वे इससे जुड़े कार्यो में सक्रिय भाग लेते थे. नानाजी देशमुख लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के कार्यो और राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित थे. तिलक से प्रेरित हो कर नानाजी ने समाजसेवा और आदि गतिविधियों में सक्रिय सहभाग किया .

1940 में डॉ. हेडगेवार की मृत्यु के बाद नानाजी ने कई युवको को महाराष्ट्र के शाखाओ में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. नानाजी को प्रचारक के रूप में उत्तर प्रदेश भेज दिया गया था. आगरा और गोरखपुर में उन्होंने प्रचारक के रूप में कार्य किया. उत्तर प्रदेश की आम जनता तक संघ की विचारधारा को पहुंचाने में वे सफल रहे. हालाँकि यह काम करने में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था.

आगरा में उनकी मुलाक़ात दीनदयाल उपाध्याय से हुई. उत्तर प्रदेश के हाटा बाजार गांव में नानाजी ने बाबू जंग बहादुर चंद इस सन्यासी के यहां रहकर इस क्षेत्र की पहली शाखा की शुरूआत की. और फिर बाबू जंग बहादुर चंद को संघ का स्ववयंसेवक बनाया. तीन साल के अन्दर अन्दर ही गोरखपुर के आसपास संघ की ढाई सौ शाखायें खुल गयीं. और इसका श्रेय नानाजी को जाता है

राजनीतिक गतिविधियाँ

यद्यपि नानाजी का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र राजस्थान और उत्तर प्रदेश में ही रहा। उनकी श्रद्धा देखकर आर.एस.एस. के संघ संचालक गुरु जी ने उन्हें प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेज दिया, जहाँ वे उत्तर प्रदेश के प्रचारक नियुक्त कर दिये गये। नानाजी लोकमान्य तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार ने ही उन्हें संघ से जोड़ा। 1940 में महाराष्ट्र के सैकड़ों युवक प्रचारक बने। इनमें नानाजी भी थे। उनकी तीव्र बुद्धि तथा विलक्षण संगठन कौशल ने 1950 से 1977 तक भारतीय राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने विभिन्न विचार और स्वभाव वाले नेताओं को एक साथ लाकर कांग्रेस का सदा सत्ता में बने रहने का ज़ोरदार विरोध किया था। संघ के प्रचारक के रूप में उन्हें उत्तर प्रदेश में पहले आगरा और फिर गोरखपुर भेजा गया। उन दिनों संघ की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी। नानाजी एक धर्मशाला में रहते थे। वहाँ हर तीसरे दिन कमरा बदलना पड़ता था। अन्ततः कांग्रेस के एक नेता ने उन्हें इस शर्त पर स्थायी कमरा दिलवाया कि वे उसका खाना बना दिया करेंगे। नानाजी के परिश्रम से तीन साल में गोरखपुर के आस-पास 250 शाखाएँ खुल गयीं। विद्यालयों की पढ़ाई तथा संस्कारहीन वातावरण देखकर उन्होंने गोरखपुर में 1950 में पहला 'सरस्वती शिशु मन्दिर' स्थापित किया। आज तो ऐसे विद्यालयों की संख्या देश में 50,000 से भी अधिक है।

प्रबन्धक का पद

1947 में रक्षा बन्धन के शुभ अवसर पर लखनऊ मेंराष्ट्रधर्म प्रकाशन की स्थापना हुई, तो इसके प्रबन्धक नानाजी ही बनाये गए। वहाँ से मासिक 'राष्ट्रधर्म', 'साप्ताहिक पांचजन्य' तथा 'दैनिक स्वदेश' अख़बार निकाले गये। 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबन्ध लग गया। इससे प्रकाशन संकट में पड़ गया। ऐसे में नानाजी ने छद्म नामों से कई पत्र निकाले। 1952 में जनसंघ की स्थापना होने पर उत्तर प्रदेश में उसका कार्य नानाजी को सौंपा गया। 1957 तक प्रदेश के सभी ज़िलों में जनसंघ का काम पहुँच गया। 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरणसिंह के नेतृत्व में पहली संविद सरकार बनी। इसमें नानाजी की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। विनोबा भावे के भूदान यज्ञ तथा 1974 में इन्दिरा गांधी के शासन के विरुद्ध लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आन्दोलन में नानाजी खूब सक्रिय रहे। पटना में जब पुलिस ने जयप्रकाश आदि पर लाठियाँ बरसायीं, तो नानाजी ने उन्हें अपनी बाँह पर झेल लिया। इससे उनकी बाँह टूट गयी; पर जयप्रकाश जी बच गये।

महामन्त्री

1975 में कई विपक्षी नेताओं को जेल हुई, किंतु नानाजी हाथ नहीं आये। आपातकाल के विरुद्ध बनीलोक संघर्ष समिति के वे मन्त्री थे। उस समय हुए देशव्यापी सत्याग्रह में एक लाख से भी अधिक लोगों ने गिरफ़्तारी दी। यद्यपि बाद में नानाजी भी पकड़े गये। 1977 के चुनाव में इन्दिरा गांधी हार गयीं और दिल्ली में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। नानाजी ने सत्ता की बजाय संगठन को महत्व देते हुए अपने बदले ब्रजलाल वर्मा को मन्त्री बनवाया। इस पर उन्हें जनता पार्टी का महामन्त्री बनाया गया। उस समय नानाजी सत्ता या दल में बड़े से बड़ा पद ले सकते थे; लेकिन उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़करदीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से पहले गोंडा और फिर चित्रकूट में ग्राम विकास का कार्य प्रारम्भ किया।

राजनीति से सन्न्यास

नानाजी देशमुख ने 60 साल की उम्र पूरी होते ही राजनीति छोड़ दी थी, क्योंकि उनका मानना था कि 60 साल की उम्र के बाद व्यक्ति को राजनीति छोड़ देनी चाहिए। वह राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे भाजपा के नेताओं से वरिष्ठ थे और भाजपा के गठन के काफ़ी पहले राजनीति को अलविदा कह चुके थे। नानाजी ने अपने जीवनकाल में 'दीनदयाल शोध संस्थान', 'ग्रामोदय विश्वविद्यालय' और 'बाल जगत' जैसे सामाजिक संगठनों की स्थापना की। उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले में भी उल्लेखनीय सामाजिक कार्य किया था। उन्हें 1999 में 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया और इसी साल राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया। वे बलरामपुर से लोकसभा के लिये भी चुने गये थे। चित्रकूट स्थित 'दीनदयाल शोध संस्थान' में पधारे पूर्व राष्ट्रपति .पी.जे. अब्दुल कलाम ने नानाजी देशमुख द्वारा कमज़ोर वर्ग के उत्थान में उठाए गए क़दमों की सराहना की थी और इस क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों को अनुकरणीय बताया था।

नानाजी देशमुख से जोड़ी रोचक तथ्य

•           1950 के आते-आते आरएसएस से प्रतिबंध हट गया था, जिसके बाद संघ के लोगों ने भारतीय कांग्रेस के सामने खुद की पार्टी खड़ी करने का विचार किया. 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संघ के साथ मिल कर भारतीय जन संघ की स्थापना की थी. यही आगे चलकर देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी बनी.

          उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रचारक के लिए नानाजी को चुना गया था. वे वहां महासचिव के रूप में कार्यरत थे. 1957 तक नानाजी ने यूपी के हर जिले में जाकर पार्टी का प्रचार किया. लोगों को पार्टी से जुड़ने का आग्रह किया, जिसके फलस्वरूप पुरे प्रदेश के हर जिले में पार्टी की इकाई खुल गई थी.

          उत्तरप्रदेश में भारतीय जन संघ (BJS) एक बड़ी राजनैतिक पार्टी बनकर उभरी थी. उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्र भानु गुप्ता को प्रदेश के राजनैतिक युद्ध में देशमुख जी के नेतृत्व में बीजेएस से एक, दो नहीं बल्कि तीन बार बड़ी टक्कर दी थी. यह उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार था, जब कोई पार्टी कांग्रेस के सामने इतने बड़े रूप में खड़ी हो सकी थी. भारतीय जन संघ को यूपी में लोकप्रियता दिलाने का श्रेय अटल बिहारी बाजपेयी जी, दीनदयाल उपाध्याय जी एवं नानाजी को जाता है. तीनों की कड़ी मेहनत, दृष्टिकोण, कौशल से भारत की राजनीति में यह बड़ा फेरबदल हुआ था.

          नानाजी बहुत ही शांत और नम्र किस्म के इन्सान थे, वे सभी से बड़ी नम्रता से बात करते थे, फिर चाहे वो उनकी पार्टी का मेम्बर हो या विपक्ष का कोई इन्सान. यही वजह थी कि दूसरी पार्टी के लोग भी नानाजी के साथ बहुत ही आदर के साथ व्यवहार करते थे.

          नानाजी देशमुख ने विनोबा भावे द्वारा शुरू किये गए भू दान आन्दोलन में भी बढचढ कर हिस्सा लिया था.

          इंदिरा गाँधी जी की के समय जब देश में आपातकाल चल रहा था, तब देश की राजनीति में भी बहुत उठक पटक हुई थी. देशमुख जी ने इस दौरान अपनी समझ और हिम्मत का परिचय दिया था, जिसकी तारीफ़ बाद में बीजेएस के प्रधानमंत्री बने मुरारजी देसाई ने भी की थी.

          1977 में नानाजी यूपी के बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से बीजेएस पार्टी की तरफ से चुनाव में उतरे थे, जहाँ एक बड़े मार्जिन के साथ उनको जीत हासिल हुई थी.

          1980 में नानाजी ने राजनीति छोड़ कर सामाजिक और रचनात्मक कार्यों को करने का फैसला किया. इससे उनके चाहने वालों को बहुत दुःख हुआ था, लेकिन सभी ने उनके फैसले का सम्मान किया था.

          जब जनता पार्टी का गठन हुआ था, देशमुख इसके मुख्य वास्तुकारों में से एक थे. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ उन्होंने पार्टी के लिए रुपरेखा बनाई थी. कुछ ही सालों में आगे चलकर यही जनता पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से हटाकर, खुद देश की सरकार बना ली थी.

 

 

निधन एवं देह दान :

अपने राज्यसभा के सांसद काल में मिली सांसद निधि का उपयोग उन्होंने इन प्रकल्पों के लिए ही किया। कर्मयोगी नानाजी ने 27 फ़रवरी, 2010 को अपनी कर्मभूमि चित्रकूट में अंतिम सांस ली। उन्होंने देह दान का संकल्प पत्र बहुत पहले ही भर दिया था। अतः देहांत के बाद उनका शरीर आयुर्विज्ञान संस्थान को दान दे दिया।

 'दधीचि देह दान समिति' के अध्यक्ष आलोक कुमार के अनुसार- 'नानाजी ने सन् 1997 में इच्छा जताई थी कि उनकी मृत्यु के पश्चात् उनकी देह का उपयोग चिकित्सा शोध कार्य के लिए किया जाए। उनकी इच्छा पर विचार करते 11 अक्टूबर, 1997 को देहदान की एक वसीयत तैयार की गई, जिस पर उन्होंने साक्षी के रूप में श्रीमती कुमुद सिंह तथा हेमंत पाण्डे की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए थे। दोनों को नानाजी अपना पुत्र पुत्री मानते थे। आलोक कुमार ने बताया कि उनके हर अंग का देशहित में उपयोग हो, यही उनकी अंतिम इच्छा थी।

कुमार ने कहा कि हमने यह निश्चित किया था कि मृत्यु के पश्चात् नानाजी की देह को दिल्ली स्थित 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' में शोध कार्य के लिए दिया जाएगा। उन्होंने भावविह्वल होकर बताया कि नानाजी प्रवास पर रहते थे। ऐसे में मृत्यु होने पर उनकी पार्थिव देह दिल्ली लाने में कोई व्यवधान हो, इस हेतु नानाजी ने दधीचि देहदान समिति को 11,000 रुपए दिए, उनका कहना था कि मैं हमेशा प्रवास पर रहता हूँ, इसलिए मेरी मृत्यु कहीं भी हो सकती है। यह रुपए मेरी देह को कहीं से भी दिल्ली पहुँचाने की व्यवस्था के लिए हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
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