गणेशोत्सव: भक्ति, बुद्धि और भारत की एकता का पर्व | The Voice TV

Quote :

" सुशासन प्रशासन और जनता दोनों की जिम्मेदारी लेने की क्षमता पर निर्भर करता है " - नरेंद्र मोदी

Editor's Choice

गणेशोत्सव: भक्ति, बुद्धि और भारत की एकता का पर्व

Date : 27-Aug-2025

गणेश शब्द का अर्थ होता है, जो समस्त जीव के ईश अर्थात् स्वामी हो। बाधाओं को दूर करें और सफलता का मार्ग प्रशस्त करें। इन्हीं को हम प्रेम से विनायक कहते हैं – एक ऐसा नायक जो विशेष है, अद्वितीय है।

गणेश चतुर्थी का पर्व केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति, सांस्कृतिक उत्सव और ऐतिहासिक आंदोलन का प्रतीक है।
हर साल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को देशभर में गणेश जी का जन्मोत्सव गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र, गोवा, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल से लेकर उत्तर भारत तक, हर गली में बाप्पा के स्वागत की तैयारियाँ महीनों पहले शुरू हो जाती हैं।
मूर्तिकार मिट्टी की सुंदर गणेश प्रतिमाएँ बनाते हैं। घर-घर गणेशजी की स्थापना होती है। लोग भक्ति-भाव से पूजा करते हैं और मोदक, लड्डू से गणपति बाप्पा को प्रसन्न करते हैं।
10 दिन बाद, भावुक विदाई के साथ "गणपति बाप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" की गूंज के बीच उनका विसर्जन होता है।
गणेश जी केवल विघ्नहर्ता नहीं, बल्कि बुद्धि और विवेक के देवता भी हैं। किसी भी शुभ कार्य से पहले उनका स्मरण करना हिंदू परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। उनके बिना शुरुआत अधूरी मानी जाती है। यही कारण है कि वे सभी देवताओं में अग्रपूज्य हैं।
शिवपुराण के अनुसार, एक बार माँ पार्वती ने स्नान करते समय अपने शरीर के मैल से एक बालक को जन्म दिया और उसे द्वारपाल बना दिया। जब भगवान शिव लौटे, और उस बालक ने उन्हें रोका, तो शिव ने क्रोध में आकर उसका सिर काट दिया। पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए शिव ने उत्तर दिशा में मिले पहले जीव – हाथी – का सिर लाकर बालक को पुनर्जीवित किया। वही बालक आज गजानन, गणपति, और श्रीगणेश के रूप में पूजे जाते हैं।
गणेश उत्सव का इतिहास सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है। जब अंग्रेजों ने धारा 144 लगाकर लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी, तब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को एक सामूहिक सांस्कृतिक आंदोलन बना दिया।
1894 में पुणे के शनिवारवाड़ा में पहली बार सार्वजनिक गणपति उत्सव मनाया गया, जिसमें हजारों लोग जुटे। अंग्रेज सरकार धार्मिक उत्सव में हस्तक्षेप नहीं कर सकती थी, और तिलक ने इस loophole का उपयोग कर स्वतंत्रता संग्राम को जन-जन तक पहुंचाया।
गणेश पंडाल अब भाषणों, कवि सम्मेलनों, नाटकों और जनजागरण का मंच बन चुके थे। धीरे-धीरे यह आंदोलन महाराष्ट्र के हर कोने में फैल गया और गणेश उत्सव बन गया आज़ादी की प्रेरणा।
लोकमान्य तिलक का उद्देश्य था सामाजिक एकता, जातिगत भेदभाव का अंत और राष्ट्र प्रेम को बढ़ावा देना। आज, जब हम गणेशोत्सव मनाते हैं, तो वो मूल भावना कहीं पीछे छूटती जा रही है। पंडाल सजते हैं, पर एकता की भावना फीकी पड़ जाती है। प्रतियोगिता की भावना, दिखावे की होड़ ने इस पावन पर्व को प्रभावित किया है।
हमें फिर से गणेशोत्सव को लोकोत्सव बनाना होगा — ऐसा उत्सव जो भाईचारा, समरसता और देशभक्ति को मजबूत करे। तभी यह पर्व सच्चे अर्थों में सफल होगा।
 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload

Advertisement









Advertisement