"स्वदेश के लिए सर्वस्व अर्पित : उपेक्षित स्वयंसेवक महारथी राजगुरु" | The Voice TV

Quote :

बड़ा बनना है तो दूसरों को उठाना सीखो, गिराना नहीं - अज्ञात

Editor's Choice

"स्वदेश के लिए सर्वस्व अर्पित : उपेक्षित स्वयंसेवक महारथी राजगुरु"

Date : 27-Aug-2025

17 दिसंबर 1928 को महारथी राजगुरु ने, पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के हत्यारे, जे. पी. सांडर्स पर पहला फायर खोल दिया। उसके उपरांत सरदार भगत सिंह और महारथी सुखदेव ने सांडर्स का वध कर दिया। आज महा महारथी श्रीयुत शिवराम हरि राजगुरु (रघुनाथ/एम महाराष्ट्र)की जयंती पर शत् शत् नमन है। शिवराम हरि राजगुरु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान् क्रान्तिकारी थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु का बलिदान एक महत्वपूर्ण घटना थी।


शिवराम हरि राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, सन् 1908 में पुणे जिला के खेड़ा गाँव (अब राजगुरु नगर) में हुआ था।6 वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे। इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे। वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ।

 चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं चन्द्रशेखर आज़ाद,सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु, हिदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में सबसे बेहतरीन निशानेबाज माने जाते थे। 

साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी।23 मार्च सन् 1931 को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को भारत के अमर बलिदानियों में अपना नाम को प्रमुखता से साथ दर्ज करा दिया।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक एवं पत्रकार नरेंद्र सहगल जी ने प्रामाणिक स्रोतों के आधार पर  ‘भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’ पुस्तक लिखी है, जिसके अनुसार, ‘सरदार भगत सिंह और राजगुरु ने अंग्रेज अफसर सांडर्स को लाहौर की मालरोड पर गोलियों से उड़ा दिया। फिर दोनों लाहौर से निकल गए। राजगुरु नागपुर आकर डॉ. हेडगेवार से मिले। राजगुरु संघ के स्वयंसेवक थे’।

नरेंद्र सहगल की पुस्तक में प्रमाणित किया गया है कि राजगुरु संघ की मोहित बाड़े शाखा के स्वयंसेवक थे। सहगल की लिखी पुस्तक के अनुसार नागपुर के भोंसले वेदशाला के छात्र रहते हुए राजगुरु, संघ संस्थापक हेडगेवार के बेहद करीबी रहे। पुस्तक में  यह भी दावा किया गया है कि सुभाष चंद्र बोस भी संघ से काफी प्रभावित थे। भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’ की भूमिका सर संघ चालक मोहन भागवत जी ने लिखी है। 

यह इसलिए भी प्रमाणित है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आद्य संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार, कलकत्ता में अपने अध्ययन कल से ही क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति के अंतरंग समिति के सदस्य थे, और विभिन्न क्रांतिकारी संगठनों के क्रान्तिकारी ,बरतानिया सरकार की पकड़ से दूर रहकर गुप्त प्रवास हेतु बुंदेलखंड,महाकौशल और नागपुर आते थे। नागपुर उस समय मध्य प्रांत और बरार की राजधानी था, तथा भौगोलिक दृष्टि से गुप्त प्रवास के लिए अत्यंत सुरक्षित था और डॉ. हेडगेवार ने भी नागपुर आकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कर ली थी, इसलिए क्रांतिकारियों का बरतानिया सरकार की पकड़ से दूर रहने के लिए,डॉ. हेडगेवार के पास गुप्त प्रवास पर आना स्वाभाविक था, साथ ही शाखाओं में स्वयंसेवक के रुप भाग लेना, गुप्त प्रवास का ही एक हिस्सा रहा होगा।महारथी राजगुरु निश्चित ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे और इसलिए उन्होंने संघ में प्रचलित काली टोपी सदैव धारण की।

परंतु दुर्भाग्य देखिये जब इतिहास लिखा गया तो अंग्रेजी इतिहासकारों के साथ उनकी लीक पर चलकर एक दल विशेष के समर्थन से भारतीय परजीवी इतिहासकारों ने और वामपंथी इतिहासकारों ने इन महारथियों को - आतंकवादी बताया और स्कूल के पाठ्यक्रमों में भी यही पढ़ाया गया। अब न्याय करना होगा और असली नायकों को इतिहास में समुचित स्थान देना होगा ताकि भावी पीढ़ी को भारत के वीरोचित इतिहास पर गर्व हो सके। 
 

लेखक -  डॉ आनंद सिंह राणा

 

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload

Advertisement









Advertisement