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राष्ट्रीय खेल दिवस के नायक: मेजर ध्यानचंद

Date : 29-Aug-2025

मेजर ध्यानचंद सिंह, जिन्हें "हॉकी का जादूगर" कहा जाता है, भारतीय हॉकी के महानतम खिलाड़ियों में से एक थे। उनका योगदान भारतीय हॉकी को तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक (1928, 1932 और 1936) दिलाने में अमूल्य रहा है। उनके जन्मदिन को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

उनका खेल करियर ब्रिटिश भारतीय सेना के साथ 1922 में शुरू हुआ। उनके अद्भुत खेल कौशल ने उन्हें 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक के लिए भारतीय टीम में जगह दिलाई, जहाँ से भारतीय हॉकी के स्वर्ण युग की शुरुआत हुई।

1936 का बर्लिन ओलंपिक: ध्यानचंद की महानता

 

1936 का बर्लिन ओलंपिक ध्यानचंद के करियर का सबसे यादगार हिस्सा है। उस समय भारतीय टीम में अली दारा, अहमद खान जैसे दिग्गज खिलाड़ी थे, और माना जा रहा था कि वे आसानी से टूर्नामेंट जीत जाएंगे।

लेकिन टूर्नामेंट से पहले एक अभ्यास मैच में भारत को जर्मनी से 4-1 की करारी हार मिली, जिसने पूरी टीम को हिला दिया। खुद ध्यानचंद भी इस हार से बहुत आहत थे और उन्होंने अपनी आत्मकथा 'गोल!' में लिखा, "जब तक मैं जीवित हूँ, मैं इस मैच को कभी नहीं भूल पाऊँगा।"

यह हार एक चेतावनी थी, जिसने भारतीय खिलाड़ियों को और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित किया। ओलंपिक में भारत ने हंगरी को 4-0 से, अमेरिका और जापान को भी आसानी से हराया। ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन ने यूरोप भर के प्रशंसकों को आकर्षित किया। एक जर्मन अखबार ने तो यहाँ तक लिखा, "ओलंपिक कॉम्प्लेक्स में अब जादू का शो है।"

हिटलर के सामने विजय

 

सेमीफाइनल में भारत ने फ्रांस को 10-0 से हराया, जिसमें ध्यानचंद ने 4 गोल किए। फाइनल में भारत का मुकाबला फिर से जर्मनी से हुआ। मैच को देखने के लिए खुद जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर भी मौजूद थे।

भारत ने जर्मनी को 8-1 से करारी शिकस्त देकर अभ्यास मैच का बदला लिया। ध्यानचंद ने इस मैच में 3 गोल किए। मैच के बाद हिटलर उनकी खेल प्रतिभा से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उन्हें जर्मन नागरिकता और अपनी सेना में एक उच्च पद की पेशकश की। लेकिन ध्यानचंद ने विनम्रतापूर्वक इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

उन्होंने अपनी आत्मकथा में बताया कि वे फाइनल में जर्मनों को गेंद पर नियंत्रण का सबक सिखाना चाहते थे। इसलिए वह जान-बूझकर गेंद को डी में पास करते और स्कोर नहीं करते थे, ताकि विरोधी टीम के डिफेंडरों को परेशान किया जा सके। उनकी यह महानता और खेल के प्रति निष्ठा ही उन्हें विश्व भर में एक किंवदंती बनाती है।

 
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