महालक्ष्मी व्रत एक अत्यंत पावन और श्रद्धा से किया जाने वाला व्रत है, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होता है और लगातार 16 दिनों तक चलता है। यह व्रत विशेष रूप से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने तथा जीवन में धन, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा, नियम और भक्ति से करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है।
एक लोककथा के अनुसार, एक निर्धन ब्राह्मणी की सच्ची श्रद्धा और निस्वार्थ भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे मां लक्ष्मी को अपने घर आमंत्रित करने का उपाय बताया। जब ब्राह्मणी ने एक साधारण-सी स्त्री को निमंत्रण दिया, तो वह स्त्री वास्तव में स्वयं महालक्ष्मी थीं। उसकी सेवा और पूजा से प्रसन्न होकर लक्ष्मीजी ने उसे 16 दिनों तक व्रत करने का आदेश दिया और अंततः उसके घर में वास किया। तभी से यह व्रत लोक परंपरा में प्रतिष्ठित हुआ और आज भी महिलाएं तथा भक्तजन इसे अपार श्रद्धा से करते हैं।
व्रत के आरंभ के दिन प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण किए जाते हैं। व्रत का संकल्प लेकर महालक्ष्मी की मूर्ति या चित्र की स्थापना की जाती है। साथ ही कलश स्थापित कर, उस पर नारियल और आम्रपत्र रखा जाता है। फूल, अक्षत, कुमकुम, हल्दी, दीप और नैवेद्य सहित पूजन किया जाता है। इसके बाद श्री महालक्ष्मी की आरती व व्रत कथा का पाठ या श्रवण किया जाता है। यह पूजन और कथा पाठ 16 दिनों तक प्रतिदिन किया जाता है। अंतिम दिन व्रत का विधिपूर्वक उद्यापन कर ब्राह्मण भोजन व दान दिया जाता है।
यह व्रत विशेष रूप से कुमारी लड़कियों, सुहागन स्त्रियों तथा गृहस्थ महिलाओं द्वारा किया जाता है, ताकि परिवार में सुख, शांति, धन-समृद्धि और देवी लक्ष्मी का स्थायी वास बना रहे।