भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण के इतिहास में कुछ ऐसे नाम हैं, जो न केवल एक विचारधारा के वाहक बने, बल्कि अपने व्यक्तिगत आचरण, सेवा और समर्पण से समाज में बदलाव लाने वाले प्रेरणास्रोत भी बने। ऐसा ही एक नाम है लक्ष्मणराव इनामदार, जिन्हें स्नेहपूर्वक और सम्मान से ‘वकील साहब’ कहा जाता था। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के समर्पित प्रचारक थे और गुजरात में संघ कार्य को मजबूत करने में उनकी भूमिका अतुलनीय रही है।
प्रारंभिक जीवन और संघ से जुड़ाव
लक्ष्मणराव इनामदार का जन्म एक मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में हुआ था। प्रारंभिक जीवन से ही वे अध्ययनशील, अनुशासित और समाज के प्रति संवेदनशील थे। उन्होंने कानून की पढ़ाई की और इसी कारण उन्हें ‘वकील साहब’ के नाम से जाना जाने लगा। लेकिन उनका जीवन केवल एक पेशेवर अधिवक्ता तक सीमित नहीं रहा — वे जल्द ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए और पूर्णकालिक प्रचारक बनकर समाज सेवा को अपने जीवन का ध्येय बना लिया।
जब गुजरात जैसे राज्य में संघ की गतिविधियाँ सीमित थीं, तब लक्ष्मणराव इनामदार ने वहाँ प्रचारक बनकर काम शुरू किया। वे न केवल शाखाओं की स्थापना करते, बल्कि हर स्तर पर कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करते और सामाजिक मुद्दों पर उन्हें जागरूक करते। उनकी संगठकीय क्षमता, विनम्रता और अनुशासन ने उन्हें संघ में एक आदर्श प्रचारक के रूप में स्थापित किया।
गुजरात में संघ को एक सुदृढ़ जमीनी ढांचा देना उनका सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। वे कार्यकर्ताओं के मनोबल को ऊँचा रखते थे और स्वयं साधारण जीवन जीकर संघ की विचारधारा का जीवंत उदाहरण बनते थे।
इनामदार आजीवन अविवाहित रहे और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सादा जीवन बिताया। उनके जीवन में अनुशासन, सादगी और ईमानदारी के उच्च मानक देखने को मिलते हैं। उन्होंने न कभी पद की लालसा की, न ही व्यक्तिगत लाभ की चाह रखी। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि विचारों की शक्ति, आत्मसंयम और सेवा की भावना से ही सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है।
लक्ष्मणराव इनामदार समाज के आर्थिक पक्ष को लेकर भी उतने ही जागरूक थे। उन्हें यह अच्छी तरह समझ था कि यदि समाज को आत्मनिर्भर बनाना है, तो आर्थिक रूप से सशक्त बनाना अनिवार्य है। इसी सोच से उन्होंने 'सहकार भारती' की स्थापना की, जो सहकारिता आंदोलन को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में फैलाने वाला एक बड़ा संगठन बना।
उनका मानना था कि यदि आम नागरिकों को स्वावलंबी बनाया जाए तो न केवल गरीबी दूर हो सकती है, बल्कि आत्मसम्मान और सामाजिक एकता भी बढ़ेगी। उन्होंने सहकारी बैंकों, समाजिक वित्तीय संस्थाओं और लघु उद्योगों को बढ़ावा देकर हजारों लोगों को आत्मनिर्भर बनने का मार्ग दिखाया।
लक्ष्मणराव इनामदार केवल एक संगठन के नेता नहीं थे, वे एक विचार थे — ऐसा विचार जो समाज को एकजुट करने, आत्मनिर्भर बनाने और सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। आज जब देश विकास की नई ऊँचाइयाँ छू रहा है, तब इनामदार जैसे व्यक्तित्वों को स्मरण करना आवश्यक है, ताकि हम उस मूल आत्मा को न भूलें जो राष्ट्रनिर्माण की नींव में छिपी है।
