अग्रसेन जयंती एक महान समाज सुधारक और आदर्श शासक महाराजा अग्रसेन के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाती है। यह पर्व हर वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। देशभर में इस अवसर पर उत्सव होते हैं, लेकिन विशेष रूप से दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भव्य आयोजन किए जाते हैं।
महाराजा अग्रसेन प्रतापनगर के राजा वल्लभ के पुत्र थे और उन्होंने अग्रोहा (वर्तमान हिसार, हरियाणा) पर शासन किया। वे वैश्य समाज के प्रमुख मार्गदर्शक माने जाते हैं, लेकिन उनके सिद्धांत और कार्य पूरे समाज के लिए प्रासंगिक रहे हैं। वे समानता, दया, करुणा और दूरदर्शिता जैसे गुणों से सम्पन्न थे, जिसके कारण समाज के हर वर्ग ने उन्हें सम्मान दिया। उन्होंने सदैव जात-पात, ऊँच-नीच और भेदभाव का विरोध किया और एक ऐसे समाज की परिकल्पना की जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर मिले और सब मिल-जुलकर आगे बढ़ें।
महाराजा अग्रसेन का शासन केवल सैन्य विजय या विस्तार तक सीमित नहीं था, बल्कि वे समाज के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने निःशुल्क शिक्षा, चिकित्सा सुविधाएं, सामुदायिक भवन, निर्धन कन्याओं के विवाह जैसे अनेक कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं। उनके नाम से आज भी देशभर में कई अस्पताल, विद्यालय, महाविद्यालय और सामाजिक संस्थान संचालित हो रहे हैं, जो उनके विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं। हर वर्ष अग्रसेन जयंती पर धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य समाज में सेवा, समरसता और सहयोग की भावना को सशक्त करना है।
महाराजा अग्रसेन का "एक ईंट और एक रुपया" का विचार आज भी सामाजिक सहयोग और आपसी समर्थन का प्रतीक माना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार, अग्रोहा में जब कोई नया परिवार बसता था, तो वहाँ पहले से बसे प्रत्येक परिवार को उसे एक ईंट और एक रुपया देना होता था। यह छोटी-सी मदद उस परिवार को घर बनाने और अपना व्यवसाय शुरू करने में सहयोग करती थी। इस विचार ने समाज में आत्मनिर्भरता, सहयोग और एकता की भावना को मजबूत किया और यह सिद्धांत आज भी सामाजिक समरसता का उदाहरण बना हुआ है।
महाराजा अग्रसेन केवल एक राजा नहीं थे, बल्कि समाज के लिए एक आदर्श, प्रेरणास्त्रोत और मार्गदर्शक थे। उनका जीवन और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमें यह सिखाते हैं कि समाज को संगठित, समर्पित और समरस बनाकर ही सच्ची प्रगति संभव है। अग्रसेन जयंती महज एक स्मरण का दिन नहीं, बल्कि यह उन मूल्यों को अपनाने का अवसर है, जिनके बल पर एक समर्पित और सशक्त समाज की नींव रखी जा सकती है।
