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चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से भारतीय नववर्ष का प्रारंभ

Date : 22-Mar-2023

विश्वभर में 1 जनवरी को नया साल मनाया जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि नव वर्ष केवल 1 जनवरी को ही होता है. दुनियाभर में अलग-अलग स्थानों पर नव वर्ष की तिथि भी अलग-अलग होती है. संप्रदाय और धर्म भी नव वर्ष को अपने हिसाब से अलग-अलग तिथियों को मनाते हैं. इन सभी में हिंदू नव वर्ष की मान्यता अधिक है. क्योंकि हिंदुओं का नया साल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नव वर्ष की तरह प्रतीत होता है.

कब मनाया जाता है हिंदू नव वर्ष

सनातन धर्म के मुताबिक, हिंदू नव वर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है.इस तिथि पर पूरी पृथ्वी नए रूप में निखर रही होती है. इस समय पतझड़ के बाद पेड़ पौधे बसंत ऋतु में प्रवेश कर रहे होते हैं. पेड़ों पर सूखे पत्तों की जगह नए और हरे-भरे पत्ते उग रहे होते हैं. मान्यताओं के मुताबिक, इसी तिथि को भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था. इसलिए प्रत्येक साल हिन्दू धर्म में चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को ही नव वर्ष मनाया जाता है.

हिंदू नव वर्ष की शुरुआत अखंड भारत के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य (विक्रम सेन परमार) के नाम पर हुई। विक्रमादित्य अपनी प्रजा के लिए बेहद न्यायप्रिय शासक था और वह अपनी प्रजा के हितों की रक्षा भी करता था।

विक्रमादित्य की पौराणिक कथा

बेताल पच्चीसी और सिंहासन-द्वात्रिंशिका में भी कहानियों के रूप में राजा विक्रमादित्य का जिक्र मिलता है। राजा विक्रम बेताल को बंदी बनाता है और बेताल राजा को भ्रम में डालने वाली कही कहानियां सुनाता है। हर कहानी के अंत में बेताल राजा से कुछ सवाल पूछता है। लेकिन राजा को हर बार स्थिति को चुप रहकर टालना होता है। क्योंकि अगर राजा बेताल की बातों का जवाब देता तो बेताल उसकी कैद से मुक्त हो जाता।

सिंध से सौराष्ट्र, गुजरात एवं महाराष्ट्र में फैल गए और दक्षिण गुजरात से इन लोगों ने उज्जयिनी पर आक्रमण किया। शकों ने समूची उज्जयिनी को पूरी तरह विध्वंस कर दिया और इस तरह इनका साम्राज्य शक विदिशा और मथुरा तक फैल गया। इनके कू्र अत्याचारों से जनता में त्राहि-त्राहि मच गई तो मालवा के प्रमुख नायक विक्रमादित्य के नेतृत्व में देश की जनता और राजशक्तियां उठ खड़ी हुईं और इन विदेशियों को खदेड़ कर बाहर कर दिया।

इस पराक्रमी वीर महावीर का जन्म अवन्ति देश की प्राचीन नगर उज्जयिनी में हुआ था जिनके पिता महेन्द्रादित्य गणनायक थे और माता मलयवती थीं। इस दंपत्ति ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान भूतेश्वर से अनेक प्रार्थनाएं एवं व्रत उपवास किए। सारे देश शक के उन्मूलन और आतंक मुक्ति के लिए विक्रमादित्य को अनेक बार उलझना पड़ा जिसकी भयंकर लड़ाई सिंध नदी के आस-पास करूर नामक स्थान पर हुई जिसमें शकों ने अपनी पराजय स्वीकार की।इस तरह महाराज विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर एक नए युग का सूत्रपात किया जिसे विक्रमी शक संवत्सर कहा जाता है।राजा विक्रमादित्य की वीरता तथा युद्ध कौशल पर अनेक प्रशस्ति पत्र तथा शिलालेख लिखे गए जिसमें यह लिखा गया कि ईसा पूर्व 57 में शकों पर भीषण आक्रमण कर विजय प्राप्त की।इतना ही नहीं शकों को उनके गढ़ अरब में भी करारी मात दी और अरब विजय के उपलक्ष्य में मक्का में महाकाल भगवान शिव का मंदिर बनवाया।

 
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