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" लक्ष्य निर्धारण एक सम्मोहक भविष्य का रहस्य है " -टोनी रॉबिंस

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आजादी का अमृतकाल और अखंड भारत के स्वप्न का विस्तार

Date : 02-Nov-2022

डॉ. अशोक कुमार भार्गव

संपूर्ण भारत के लिए अदम्य शक्ति और फौलादी संकल्प के महानायक लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल आधुनिक भारत निर्माण के मुख्य शिल्पकार हैं। उन्होंने 565 देसी रियासतों का स्वतंत्र भारत में एकीकरण कर राष्ट्र की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा की। इनके अतुल्य योगदान के बिना भारतीय मानचित्र का भव्य स्वरूप आज जैसा है वैसा दिखाई नहीं देता। उनके समग्र अवदान को कृतज्ञ राष्ट्र राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में नमन कर रहा है। वल्लभ भाई का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ था।

सरदार पटेल ने ब्रितानी हुकूमत की अमानवीय बेगार प्रथा समाप्त कराने के बाद 1918 में खेड़ा के किसानों के लिए सत्याग्रह किया। किन्तु सरकार ने कर वसूली स्थगित नहीं की। पटेल ने शांतिपूर्ण ढंग से संघर्ष का आह्वान किया और किसानों का विश्वास अर्जित करते हुए स्वयं विदेशी वस्तुओं का त्याग किया और धोती, कुर्ता और टोपी पहन किसानों के बीच साथ में बैठ संघर्ष किया । अंततः वे दृढ़ संकल्प के कारण अपने उद्देश्य में कामयाब हुए। गांधीजी ने कहा यदि मुझे वल्लभभाई न मिले होते तो जो काम आज हुआ है वह नहीं होता। सन 1928 में सरदार पटेल के नेतृत्व में बारदोली में सत्याग्रह प्रारंभ हुआ । इसकी वजह यह थी कि अंग्रेजों ने 1927 में किसानों पर 30 फीसदी लगान बढ़ा दिया था। पटेल ने किसानों में अद्भुत साहस का संचार किया और किसानों की संगठन शक्ति के समक्ष अंग्रेज सरकार कमजोर पड़ी और बढ़े हुए लगान को माफ कर दिया।इस आंदोलन की चमत्कारी कामयाबी से देशवासियों में नया आत्मविश्वास, स्वाभिमान, आशा और चेतना का संचार हुआ। गांधीजी ने आंदोलन की सफलता पर बारडोली के जननायक को सरदार कहकर संबोधित किया । तभी से वे समस्त भारतीय ह्रदय के सरदार हो गए ।

सरदार पटेल बापू के सजग अनुयायी थे किंतु अंधभक्त नहीं। उन्होंने गांधी के सभी आंदोलनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया । असहयोग, स्वदेशी, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन, भारतीय ध्वज फहराने पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून के विरुद्ध नागपुर में झंडा सत्याग्रह,नमक सत्याग्रह , रौलट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आदि में सरदार की संचालक और प्रबंधकीय भूमिका ने स्वाधीनता संघर्ष के फलक को व्यापक कर उसे नई ताकत दी और देशवासियों के स्वाभिमान को जागृत किया। जनसेवक और समाज-सुधारक के रूप में अस्पृश्यता निवारण, जातिगत भेदभाव, नशा मुक्ति, महिला मुक्ति,बोरसद तालुका को खुंखार डाकू के आतंक से मुक्ति गुजरात विद्यापीठ की स्थापना, सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, सत्याग्रह पत्रिका का प्रकाशन, सहकारी आंदोलन का मार्गदर्शन, कल्याणकारी राज्य,निवेश आधारित विकास और बाहरी संसाधनों पर निर्भरता कम करने की वकालत, भीषण बाढ़,अकाल,प्लेग महामारी आदि के समय स्वयं बीमार होते हुए पीड़ितों की सेवा उनके श्रेष्ठतम रचनात्मक कार्यों का प्रमाण है।

अंग्रेजों ने कूटनीति से भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में 'लैप्स आफ पैरामाउंसी' से यह स्वतंत्रता दे दी कि वे चाहें तो आजाद रह सकते हैं अथवा भारत-पाकिस्तान किसी भी देश में अपना विलय कर सकते हैं । निसंदेह अंग्रेजों का यह षड्यंत्र अखंड भारत के निर्माण में लाइलाज नासूर के रूप में काम करता यदि सरदार पटेल ने दृढ़ता पूर्वक अपनी विलक्षण बुद्धि,अनोखी सूझ बूझ,दूरदर्शिता,आवश्यकतानुसार साम दाम दंड भेद की नीति तथा अंतिम विकल्प के रूप में बल प्रयोग कर जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसी रियासतों को भारत में सम्मिलित नहीं किया होता। वस्तुतः भारत की आजादी की घोषणा के साथ ही अधिकांश रियासतों ने यह अर्थ लगा लिया कि अब वे संप्रभुता संपन्न राज्य हो जाएंगे। 12 जून 1947 को त्रावणकोर राज्य ने बाद में हैदराबाद निजाम ने अपने स्वतंत्र अस्तित्व की घोषणा कर दी ।

सरदार पटेल के मन में पूर्व से ही एक अखंड भारत का स्वप्न था। उन्होंने संदेश में कहा- हमारी खंडित अवस्था और एक होकर मुकाबला न करने की हमारी अयोग्यता का ही परिणाम था कि भारत को आक्रमणकारियों का शिकार होना पड़ा। हम सभी रक्तभावना और हितों की समानता से बंधे हैं। हमें कोई भी खंडों में विभाजित नहीं कर सकता । ऐसी रुकावटें जो पार नहीं की जा सकें हमारे बीच खड़ी नहीं की जा सकतीं। चार दिन बाद विदेशी सरकार चली जाएगी । आपके राज्यों की भीतरी अशांति को दूर करने का केवल एक ही उपाय है कि आप अपने अपने राज्यों को भारत सरकार के नियंत्रण में सौंप दे। अन्यथा उनके साथ कठोर व्यवहार किया जाएगा। सरदार पटेल की चेतावनी का व्यापक असर हुआ और उनके अथक प्रयासों से 14 अगस्त तक तीन रियासतों को छोड़कर लगभग सभी रियासतें भारत में सम्मिलित हो गईं।

सरदार पटेल ने कतिपय रियासतों के उनके निकटवर्ती राज्यों में मिला दिया कुछ को भारत सरकार के सीधे नियंत्रण में ले लिया और कुछ को परस्पर मिलाकर एक नए संघ का रूप देकर स्वाधीन भारत को एकता के सूत्र में संगठित कर आधुनिक भारत के निर्माण का स्वप्न साकार कर दिया। यद्यपि जूनागढ़ नवाब ने जूनागढ़ को पाकिस्तान में विलय करने का ऐलान कर दिया वहां की प्रजा ने खुलेआम बगावत कर दी। इसके बाद पाकिस्तान से किसी प्रकार की सहायता न मिलने के कारण अकूत संपत्ति के साथ वह पाकिस्तान भाग गया और 9 नवंबर को जूनागढ़ का भारत संघ में विलय हो गया।

दूसरी बड़ी रियासत हैदराबाद थी जो स्वतंत्र रहना चाहती थी। किंतु पटेल ने इसे अस्वीकार कर दिया। निजाम ने षड्यंत्र रचने शुरू कर दिए । भारत की आजादी के समारोह में भाग लेने वाली निर्दोष जनता पर अत्याचार प्रारंभ किए और भारत की अनुमति के बिना पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपये का ऋण दे दिया। निजाम ने धमकी दी कि हैदराबाद में यदि हस्तक्षेप होगा तो वहां हिंदुओं की लाशों के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। हैदराबाद के हालात बहुत ज्यादा बिगड़ने पर सरदार पटेल ने पंडित नेहरू के विरोध के बावजूद जनरल चौधरी के नेतृत्व में 'ऑपरेशन पोलो' के तहत हैदराबाद में सेनाओं के भेज दिया। भारतीय सेनाओं ने हैदराबाद की सेनाओं को धूल चटा दी। निजाम की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। और 29 नवंबर को निजाम ने विलय पत्र समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए और इस प्रकार हैदराबाद भी भारत संघ में सम्मिलित हो गया।

कश्मीर नरेश हरि सिंह भी स्वतंत्र राज्य का सपना देख रहा था । इसकी भनक लगते ही पाकिस्तान ने कबाइलों को उकसाया और कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर नरेश को अपनी गलती का एहसास हुआ और भारत सरकार से सहायता की अपील की। सरदार पटेल ने कश्मीर को भारत संघ में सम्मिलित होने की शर्त पर मदद की। 27 अक्टूबर, 1947 को सैकड़ों भारतीय सैनिकों ने आक्रमणकारियों को कश्मीर से पीछे खदेड़ दिया और इस तरह से कश्मीर की स्थिति पर नियंत्रण पा लिया गया। कश्मीर नरेश ने तुरंत भारत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये । सरदार पटेल ने बहुत दुख के साथ कहा था- 'यदि पंडित नेहरू और गोपाल स्वामी आयंगर ने कश्मीर को अपना व्यक्तिगत विषय बनाकर मेरे गृह तथा रियासत विभाग से अलग न किया होता, तो कश्मीर की समस्या उसी प्रकार हल होती, जैसे कि हैदराबाद की।'

भारत के इस महान सपूत के लिए लौह पुरुष की संज्ञा विश्लेषण की हर कसौटी खरी उतरती है। जिसमें अपने संकल्पों के प्रति मर मिटने का जज्बा हो ,जिसके व्यक्तित्व का एक-एक अणु लोहे के कण कण से बना हो,जो चुनौतियों के हिमालय को विंध्याचल की तरह नतमस्तक करना जानता हो, जो घोर तमस में भी अपने संघर्ष के दीप को निर्वापित न होने दे, जिसके फौलादी इरादों को किसी मौसम में बदलने की ताकत न हो, जो अपने मूल्यों से समझौता न करता हो,जो एक बार ठान ले तो उसे पूर्ण करके ही दम लेता हो, जिसका पराक्रम अपराजेय, आस्था अडिग, संकल्प अटल हो वही व्यक्ति लोह पुरुष हो सकता है। अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पण की जिसमें पराकाष्ठा हो, जो किसी मुकदमे में पैरवी के दौरान अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार पाकर भी कर्तव्य पथ से विचलित न हो, जो जेल में रहते हुए अपनी पूज्य मां और बड़े भाई के निधन पर उनके अंतिम संस्कार के लिए फिरंगियों की शर्तों पर पैरोल पर रिहा होने से इनकार कर सकता हो वही व्यक्ति लोहपुरुष हो सकता हो।निसंदेह सरदार पटेल इसके हकदार हैं ।

अतः उनके विराट व्यक्तित्व को शब्दों की सीमा में बांधना संभव नहीं है। उनके व्यक्तित्व में शिवाजी की दूरदर्शिता, कौटिल्य जैसी नीति कुशलता, बिस्मार्क जैसी संगठन क्षमता और राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। एक और महत्वपूर्ण कार्य कर सरदार पटेल ने आजाद भारत में प्रशासनिक सेवाओं को स्टील फ्रेम की संज्ञा देते हुए अखिल भारतीय प्रशासनिक, पुलिस और केंद्रीय सेवाओं का भारतीयकरण किया व भारतीय सेनाओं के पुनर्गठन में अपूर्व कौशल का परिचय दिया। आजादी के अमृत काल में 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की परिकल्पना सरदार पटेल के अखंड भारत के स्वप्न का ही विस्तार है। गुजरात में निर्मित (182 मीटर) विश्व की सबसे ऊंची भारत रत्न सरदार पटेल की प्रतिमा उनकी अजेय इच्छाशक्ति की ही अर्चना है। उनका कृतित्व राष्ट्र की अनमोल धरोहर हैंजो चिर अनुकरणीय और प्रासंगिक है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार और पूर्व आईएएस अधिकारी हैं।)

हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद

 

 
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