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ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी का आह्वान: "समावेशी और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था समय की मांग"

Date : 07-Jul-2025

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के पहले सत्र में वैश्विक मंचों पर गूंजने वाला एक सशक्त संदेश दिया। उन्होंने एक बहुध्रुवीय और समावेशी विश्व व्यवस्था की पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि इसकी शुरुआत वैश्विक संस्थाओं में वास्तविक और प्रभावशाली सुधारों से होनी चाहिए।

अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कहा कि सुधार केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि ठोस और व्यावहारिक परिणाम देने वाले होने चाहिए। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय शासन संरचनाओं, मतदान अधिकारों और नेतृत्व पदों में व्यापक परिवर्तन की मांग की, जिससे वैश्विक दक्षिण को निर्णय प्रक्रिया में उपयुक्त स्थान मिल सके।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर चिंता जताई कि वैश्विक दक्षिण के देशों को विकास, संसाधनों के वितरण और सुरक्षा जैसे अहम मुद्दों पर लगातार दोहरे मानदंडों का सामना करना पड़ता है। जलवायु वित्त, सतत विकास और प्रौद्योगिकी तक पहुंच के विषयों पर भी इन्हें केवल प्रतीकात्मक समर्थन ही मिलता है।

उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाने के बावजूद, कई देशों को निर्णय लेने की मेज पर अब तक उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। उन्होंने इसे सिर्फ प्रतिनिधित्व का नहीं, बल्कि इन संस्थाओं की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता का भी सवाल बताया।

एक सशक्त उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा: "ग्लोबल साउथ के बिना ये संस्थाएं ऐसे मोबाइल फोन की तरह हैं, जिनमें नेटवर्क न हो — मौजूद तो हैं, पर काम नहीं करते।"

प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन और बहुपक्षीय विकास बैंकों जैसे वैश्विक संस्थानों को 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने के लिए खुद को फिर से गढ़ना होगा। उन्होंने इसे इन शब्दों में संक्षेपित किया:
"21वीं सदी का सॉफ्टवेयर 20वीं सदी के टाइपराइटर पर नहीं चल सकता।"

उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि मौजूदा वैश्विक संस्थाएं महामारी, आर्थिक संकट, और साइबर व अंतरिक्ष क्षेत्र में उभरती चुनौतियों का प्रभावी समाधान देने में विफल रही हैं। ऐसे में अब समय आ गया है कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को अधिक न्यायसंगत, प्रतिनिधित्वकारी और परिणामदायी बनाया जाए।

प्रधानमंत्री का यह भाषण वैश्विक दक्षिण की आवाज को बुलंद करने और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में संतुलित सुधार की दिशा में एक स्पष्ट और निर्णायक पहल माना जा रहा है।

 
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