ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के पहले सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बहुध्रुवीय और समावेशी वैश्विक व्यवस्था की जोरदार पैरवी की। उन्होंने इस दिशा में सबसे पहले वैश्विक संस्थाओं में व्यापक और वास्तविक सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इन सुधारों को केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि प्रभावी और ठोस होना चाहिए। उन्होंने विशेष रूप से वैश्विक शासन व्यवस्था, निर्णय लेने की प्रक्रिया, मताधिकार और नेतृत्व के ढांचे में बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित किया।
उन्होंने नीति निर्माण में वैश्विक दक्षिण (Global South) की भागीदारी बढ़ाने का आग्रह करते हुए कहा कि इन देशों को अक्सर विकास, संसाधनों के बंटवारे और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर दोहरे मानकों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि वैश्विक दक्षिण को जलवायु वित्त, सतत विकास और तकनीकी पहुंच जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अब तक केवल सांकेतिक आश्वासन ही मिले हैं।
प्रधानमंत्री ने ज़ोर देते हुए कहा कि वैश्विक संस्थानों में इन देशों को उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए, क्योंकि वे वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन अभी भी निर्णायक मंचों से बाहर हैं। उन्होंने कहा कि यह केवल प्रतिनिधित्व का विषय नहीं, बल्कि वैश्विक संस्थाओं की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता से भी जुड़ा हुआ मुद्दा है।
अपनी बात को सशक्त रूप में रखते हुए प्रधानमंत्री ने तुलना की कि “वैश्विक दक्षिण के बिना ये संस्थाएँ ऐसे मोबाइल फोन के समान हैं जिनमें नेटवर्क के बिना सिम कार्ड हो”।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान वैश्विक संस्थाएँ आज की जटिल समस्याओं — जैसे युद्ध, महामारी, आर्थिक संकट, और साइबर तथा अंतरिक्ष की चुनौतियों — का प्रभावी समाधान देने में विफल रही हैं।
अंत में प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन और बहुपक्षीय विकास बैंकों जैसे संस्थानों में व्यापक और निर्णायक सुधार की पुरज़ोर मांग की। उन्होंने कहा, "21वीं सदी का सॉफ़्टवेयर 20वीं सदी के टाइपराइटर पर नहीं चल सकता", इस वाक्य के ज़रिए उन्होंने पुरानी संरचनाओं में बदलाव की तत्काल ज़रूरत को रेखांकित किया।